मैं मैं मेरी जिनि करै मेरी मूल बिनास मीनिंग
मैं मैं मेरी जिनि करै मेरी मूल बिनास मीनिंग
मैं मैं मेरी जिनि करै, मेरी मूल बिनास।मेरी पग का पैषड़ा, मेरी गल की पास॥
Main Main Meri Jini Kare, Meri Mool Binas,
Meri Pag Ka Pekhada, Meri Gal Ki Paas.
Main Main Meri Jini Kare, Meri Mool Binas,
Meri Pag Ka Pekhada, Meri Gal Ki Paas.
मैं मैं : निज भाव, अहम्, अहंकार, अभिमान, गरूर, घमंड.
मेरी जिनि करै : मेरी / मेरा करना, अहम् प्रदर्शित करना.
मेरी मूल बिनास : अहम् भाव ही विनाश का मूल (जड़) है.
पग का पैषड़ा : पांवों का बंधन, अवरोध.
मेरी गल की पास : गले का फांस, फंद (रस्सी)
मेरी जिनि करै : मेरी / मेरा करना, अहम् प्रदर्शित करना.
मेरी मूल बिनास : अहम् भाव ही विनाश का मूल (जड़) है.
पग का पैषड़ा : पांवों का बंधन, अवरोध.
मेरी गल की पास : गले का फांस, फंद (रस्सी)
कबीर साहेब की वाणी है की मैं भाव जो अहम् को प्रदर्शित करता है यह भक्ति मार्ग में बढ़ने के लिए एक तरह से पांवों में पड़ा बंधन है जो तुम्हे आगे नहीं बढ़ने दे रहा है तथा यही विनाश का मूल कारण भी है.
अतः आत्मिक उत्थान के लिए और भक्ति मार्ग में बढ़ने के लिए तुमको इस अहम् भाव को छोड़ना होगा. प्रेम गली अति सांकरी से भी यही आशय है की भक्ति मार्ग की गली बहुत संकरी है जिसमे स्वंय के होने का भाव और इश्वर दोनों एक साथ नहीं समा सकते हैं. साधक को चाहिए की वह स्वंय एक तरह से कोरा कागज बन जाए जिस पर पहले से कुछ भी ना लिखा हो. जो लिखे वह राम और जो लिखा गया है वह भी राम. माया के भ्रम का शिकार व्यक्ति ही यह सोचता है की मैंने अमुक कार्य किया है, जबकि करने वाला तो वह पूर्ण परमात्मा है.
माया को भी तभी पूर्ण रूप से छोड़ पाना संभव हो पायेगा जब हम अहम् भाव को छोड़ देंगे. प्रस्तुत साखी में उल्लेख और अनुप्रास अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
अतः आत्मिक उत्थान के लिए और भक्ति मार्ग में बढ़ने के लिए तुमको इस अहम् भाव को छोड़ना होगा. प्रेम गली अति सांकरी से भी यही आशय है की भक्ति मार्ग की गली बहुत संकरी है जिसमे स्वंय के होने का भाव और इश्वर दोनों एक साथ नहीं समा सकते हैं. साधक को चाहिए की वह स्वंय एक तरह से कोरा कागज बन जाए जिस पर पहले से कुछ भी ना लिखा हो. जो लिखे वह राम और जो लिखा गया है वह भी राम. माया के भ्रम का शिकार व्यक्ति ही यह सोचता है की मैंने अमुक कार्य किया है, जबकि करने वाला तो वह पूर्ण परमात्मा है.
माया को भी तभी पूर्ण रूप से छोड़ पाना संभव हो पायेगा जब हम अहम् भाव को छोड़ देंगे. प्रस्तुत साखी में उल्लेख और अनुप्रास अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |