जब लग पीव परचा नहीं कन्या कंवारी जानी मीनिंग
जब लग पीव परचा नहीं, कन्या कंवारी जानी,
हथलेवा होंसे लिया, मुसकल पड़ी पछानी,
Jab Lag Peev Parcha Nahi, Kanya Kanvari Jani,
Hathleva Honse Liya, Muskal Padi Pachhani.
जब लग पीव परचा नहीं : जब तक प्रियतम से परचा नहीं होता है, परिचय नहीं होता है.कन्या कंवारी जानी : कन्या कुँवारी ही रहती है.हथलेवा होंसे लिया: पानिग्रहण संस्कार तो बड़े ही उल्लास के साथ किया.मुसकल पड़ी पछानी : बाद में बड़ी ही मुश्किल हुई.जब लग : जब तक.पीव : प्रियतम, इश्वर.परचा नहीं : परिचय नहीं.कन्या : जीवात्मा.कंवारी जानी : कंवारी ही समझो, जिसका अपने प्रियतम से मिलाप नहीं हुआ है. कबीर साहेब की वाणी है जी जब तक जीवात्मा इश्वर से परिचय नहीं करती है उसकी स्थिति कंवारी कन्या के समान ही होती है. वह हथलेवा तो बड़े ही उल्लास के साथ करती है लेकिन बाद में वह मुश्किल में पड जाती है क्योंकि वह इस सबंध के प्रति मानसिक रूप से प्रतिबद्ध नहीं होती है. भक्ति की विकटता के सबंध में कथन है की भक्ति भी कोई आसान कार्य नहीं है, ऐसा नहीं है की बगैर किसी समर्पण में इश्वर की प्राप्ति हो जाए. भक्ति के लिए भी हमें मानसिक त्याग की आवश्यकता है, समस्त सांसारिक विषय वासनाओं का त्याग करके हमें हरी के नाम का सुमिरन करना होगा, इसमें संसार की व्रतियों का त्याग करना आवश्यक है. भौतिक जगत के विचलन का पूर्ण रूप से त्याग आवश्यक है.
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