नवसत साजे काँमनीं तन मन रही सँजोइ मीनिंग
नवसत साजे काँमनीं, तन मन रही सँजोइ।
पीव कै मन भावे नहीं, पटम कीयें क्या होइ॥
Navsat Saje Kamani, Tan Man Rahi Sanjoi,
Peev Ke Man Bhave Nahi, Ptam Kiye Kya Hoi.
नवसत साजे काँमनीं : कामिनी ने सोलह श्रृंगार कर लिए हैं.तन मन रही सँजोइ : तन मन को सजा लिया है.पीव कै मन भावे नहीं : प्रियतम के मन को यदि अच्छी नहीं लगती है.पटम कीयें क्या होइ : छद्म व्यवहार करने से क्या लाभ.नवसत : नो और सात सोलह श्रृंगार.साजे : सजती है.काँमनीं : स्त्री.तन मन रही सँजोइ : तन और मन को सजा रही है.पीव कै : प्रिय के मन, इश्वर के मन को.मन भावे नहीं : पसंद नहीं है.पटम : छद्म श्रृंगार.कीयें : करने से.क्या होइ : क्या होगा. कामिनी ने सोलह श्रृंगार करके अपने तन और मन को सजा लिया है. यदि इसके बावजूद भी अगर वह अपने प्रियतम को अच्छी नहीं लगती है, मन को भाति नहीं है तो उसके श्रृंगार से क्या लाभ होने वाला है.
इस साखी का भाव है की बाह्य क्रियाएं श्रृंगार की तरह से है जिनका भक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है. ऐसे श्रृंगार किस काम का जिसे प्रिय पसंद ही नहीं करे. अतः भक्ति नितांत ही आंतरिक है, बाह्य आडम्बर से इश्वर की भक्ति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है.
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