नागसुता सुत श्याम को, सुमिरुं बारम्बार । खाटू वाले श्यामजी, सब जग के दातार। काव्य कला जानूं नहीं, अहूं निपट अज्ञान । ज्ञान ध्यान मोहि दीजिए, आकर कृपानिधान । गुरु पद पंकज ध्यान धर, सुमिर सच्चीदानंद । श्याम चोरासी भजत हूँ, रच चोपाई छन्द ।।
।। चोपाई ।। महर करो जन के सुखरासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। प्रथम शीश चरण में नाऊं । कृपा दृष्टि रावरी चाहूं ।। माफ़ सभी अपराध कराऊँ । आदि कथा सुछन्द रच गाऊं ।। भक्त सुजन सुनकर हरसासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। कुरु पांडव में विरोध जब छाया । समर महाभारत रचवाया ।। बली एक बर्बरीक आया । तीन सुबाण साथ में लाया ।। यह लखि हरि को आई हांसी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। मधुर वचन तब कृष्ण सुनाए । समर भूमि केही कारण आए ।। तीन बाण धनु कंध सुहाए । अजब अनोखा रूप बनाए ।। बाण अपार वीर सब ल्यासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बर्बरीक इतने दल माहीं । तीन बाण की गिनती नाहीं ।। योद्धा एक से एक निराले । वीर बहादुर अति मतवाले ।।
समर सभी मिल कठिन मचासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बर्बरीक मम कहना मानो । समर भूमि तुम खेल न जानो ।। भीषम द्रोण कृप आदि जुझारा । जिनसे पारथ का मन हारा ।। तू क्या पे पेस इन्हीं से पासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बर्बरीक हरि से यों कहता । समर देखना मैं हूँ चाहता ।। कौन बली रणशुर निहारूँ । वीर बहादुर कौन जुझारु ।। तीन लोक त्रिबाण से मारूं । हंसता रहूं कभी न हारूं । सत्य कहूं हरि झूठ न जानो । दोनों दल इक तरफ हों मानो ।। एक बाण दल दोऊ खपासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बर्बरीक से हरि फरमावे । तेरी बात समझ नहीं आवे ।। प्राण बचाओ तुम घर जाओ । क्यों नादानपना दिखलाओ ।। तेरी जान मुफ्त में जासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। गर विशवास न तुम्हें मुरारी । तो कर लीजे जांच हमारी ।। यह सुन कृष्ण बहुत हर्षाए । बर्बरीक से वचन सुनाए ।। मैं अब लेहूं परीछा खासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।।
पात विटप के सभी निहारो । बेध एक शर से डारो ।। कह इतना एक पात मुरारी । दबा लिया पद तले करारी ।। अजब रची माया अविनाशी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बर्बरीक धनु-बाण चढाया । जानी जाय न हरि की माया ।। विटप निहार बली मुस्काया । अजित अमर अहिलावति जाया ।।
Khatu Shyam Ji Bhajan Lyrics in Hindi
बली सुमिर शिव बाण चालीसा । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बाण बली ने अजब चलाया । पत्ते बेध विटप के आया ।। गिरा कृष्ण के चरणों माहीं । बिंधा पात हरि चरण हटाहीं ।। इससे कौन फतेह किमि पासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। कृष्ण बली कहै बताओ । किस दल की तुम जीत कराओ ।। बली हार का दल बतलाया । यह सुन कृष्ण सनाका खाया ।। विजय किस विध पारथ पासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। छल करना तब कृष्ण विचारा । बली से बोले नन्द कुमारा ।। ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा ।
कहना मानो बली हमारा ।। हो इक तरफ नाम पा जासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। कहै बर्बरीक कृष्ण हमारा । टूट न सकता प्रण ये करारा ।। मांगे दान उसे मैं देता । हारा देख सहारा देता ।। सत्य कहूं ना झूठ जरा सी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बेशक वीर बहादुर तुम हो । जंचते दानी हमें न तुम हो ।। कहै बर्बरीक हरि बतलाओ । तुमको चाहिए क्या बतलाओ । जो मांगे सो हमसे पासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। बली अगर तुम सच्चे दानी । तो मैं तुमसे कहूँ बखानी ।। समर भूमि बली देने खातिर । शीश चाहिए एक बहादुर ।। शीश दान दे नाम कमासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। हम तुम अर्जुन तीनों भाई ।
शीश दान दे को बलदाई ।। जिसको आप योग्य बतलावें । वही शीश बलिदान चढ़ावें ।। आवागमन मिटे चोरासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। अर्जुन नाम समर में पावे । तुम बिन सारथी कौन कहावे ।। शीश दान दीन्हौं भगवाना । भारत देखन मन ललचाना ।। शीश शिखर गिरि पर धरवासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। शीश दान बर्बरीक दिया है । हरि ने गिरि पर धरा दिया है ।। समर अठारह रोज हुआ है । कुरु दल सारा नाश हुआ है ।। विजय पताका पाण्डु फहरासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। भीम नकुल सहदेव और पारथ । करते निज तारीफ अकारथ ।। यों सोच मन में यदुराया । इनके दिल अभिमान है छाया ।। हरि भगतों का दुःख मिटासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। पारथ भीम आदि बलधारी । से यों बोले गिरवरधारी ।। किसने विजय समर में पाई । पूछो वीर बर्बरीक से भाई ।। सत्य बात सिर सभी बतासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। हरि सबको संग ले गिरवर पर । सिर बैठा था मगन शिखर पर ।। जा पहुँचे झटपट नन्दलाला । पुनि पूछा सिर से सब हाला ।। शीश दान है खुद अविनाशी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। हरि यों कहै सही फरमाओ । समर जीत है कौन बताओ ।। बली कहै मैं सत्य बताऊं । नहीं पितु चचा बलि न ताऊ ।। भगवद ने पाई शाबाशी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। चक्र सुदर्शन है बलदाई । काट रहा था दल जिमि काई ।। रूप द्रौपदी काली का धर । हो विकराल ले कर में खप्पर ।। भर-भर रुधिर पिए थी प्यासी ।। सांवलशाह खाटू के वासी ।। मैंने जो कछु समर निहारा । सत्य सुनाया हाल है सारा ।। सत्य वचन सुनकर यदुराई । वर दीन्हा सिर को हर्षाई ।। श्याम रूप मम धार पुजासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। कलि में तुमको श्याम कन्हाई । पूजेंगे सब लोग लुगाई ।। खीर चूरमा भोग लगावे । माखन मिश्री खूब चढ़ावे ।। मन वच कर्म से जो कोई ध्यासी । इचिछत फल सो ही पा जासी ।। अन्त समय सद्गगति पा जासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।। सागर सा धनवान बनाना ।। पतनी गोद में सुवन खिलाना ।। सेवक आया शरण तिहारी । श्रीपति यदुपति कुंज बिहारी ।। सब सुख दायक आनन्द रासी । सांवलशाह खाटू के वासी ।।
।। चोपाई ।। श्याम चोरासी है रची, भक्त जनन के हेतु । पवन निशि बासर पढ़े, सकल सुमंगल हेतु ।। लख चोरासी छूटीए , श्याम चोरासी गाय । अछत अपार फल पायकर , आवागमन मिटाए ।।
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