गोवर्धन गिरधारी मुझे कुछ ना चाहिए
गोवर्धन जय गिरधारी,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
छोटा सा इक बंगला चाहिए,
छोटा सा इक बंगला चाहिए,
जिसमे खड़ी हो फ़रारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
राम लखन से बेटे चाहिए,
राम लखन से बेटे चाहिए,
सत्य धर्म आज्ञाकारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
राधा रुकमण सी बहुएं चाहिए,
राधा रुकमण सी बहुएं चाहिए,
सेवा करे जो हमारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
चंदा सूरज से पोते चाहिए,
चंदा सूरज से पोते चाहिए,
आँगन में गूंजे किलकारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
देवी दुर्गा सी पोती चाहिए,
देवी दुर्गा सी पोती चाहिए,
रहे कुल की लाज हमारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
जब तक जीऊ रहूं सुहागन,
जब तक जीऊ रहूं सुहागन,
जोड़ी बनी हमारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
खुश रहे परिवार हमारा,
खुश रहे परिवार हमारा,
खिली रहे फुलवारी,
बस इतना ही चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
गोवर्धन जय गिरधारी,
गोवर्धन जय गिरधारी,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए,
गोवर्धन गिरधारी,
मुझे कुछ ना चाहिए।
भजन श्रेणी : कृष्ण भजन (Krishna Bhajan)
गोवर्धन गिरधारी मुझे कुछ ना चाहिए▹गोवर्धन गिरधारी श्री कृष्ण का मनमोहक भजन || Krishna Bhakti Bhajan
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■ Title ▹Govardhan Girdhaari Mjhe Kuch Nahi Chahiye
■ Artist ▹Komal
■ Singer ▹Meenakshi Mukesh
■ Music ▹Pardeep Panchal
■ Editing ▹KV Sain
■ Lyrics & Composer - Traditional
■ Label ▹Fine Digital Video
■ Copyright ▹Fine Digital Media
यह भाव सरल इच्छाओं में छिपी गहरी संतुष्टि का प्रतीक है। इसमें कोई लोभ नहीं, कोई वैभव की चाह नहीं—बस एक शांत, संतुलित जीवन की कामना है, जिसमें प्रेम, धर्म और पारिवारिक सुख का संगम हो। जब कोई कहता है “मुझे कुछ ना चाहिए,” तो यह त्याग का नहीं बल्कि संतोष का उद्घोष है। यह उस व्यक्ति की भावना है जिसने समझ लिया है कि सच्ची सम्पन्नता बाहरी चीज़ों में नहीं, अपने जीवन के स्नेह भरे रिश्तों, आशीर्वादों और शांति में है। गोवर्धन गिरधारी से मांगी गयी हर बात भौतिक दिखती है, पर भीतर उसका अर्थ आध्यात्मिक है—छोटा बंगला सुरक्षा का संकेत है, आज्ञाकारी संतान सद्गुणों की चाह है, और पारिवारिक सुख आत्मिक संतुलन का प्रतिरूप है। भक्ति का मार्ग हमें संसार से भागना नहीं सिखाता, बल्कि संसार में रहते हुए भी आनंद और संतुलन खोजना सिखाता है। भक्त की यह इच्छा हमें बताती है कि जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएँ (जैसे छोटा-सा बंगला और उसमें खड़ी फ़रारी) भी ज़रूरी हैं, लेकिन इनसे ज़्यादा ज़रूरी है पारिवारिक सुख। वह जानता है कि बाहरी वस्तुएँ तो आनी-जानी हैं, पर असली दौलत तो घर के रिश्तों में बसती है, और इसलिए वह गिरधारी से माँगता है कि उसका जीवन सुखमय हो।
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Govardhan Jay Giradhari,
Govardhan Jay Giradhari,
Govardhan Giradhari,
Mujhe Kuchh Na Chahie,
Govardhan Giradhari,
Mujhe Kuchh Na Chahie.
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Author - Saroj Jangir
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