गुरु महिमा गावत सदा मन राखो अति मोद मीनिंग Guru Mahima Gavat Sada Meaning
गुरु महिमा गावत सदा, मन राखो अति मोद।सो भव फिर आवै नहीं, बैठे प्रभू की गोद।
Guru Mahima Gavat Sada, Man Rakho Ati Mod,
So Bhav Phir Aave Nahi, Baithe Prabhu Ki God.
गुरु महिमा गावत सदा मन राखो अति मोद शब्दार्थ Kabir Doha Word Meaning
गुरु : सतगुरुदेव।
महिमा : यशगान।
गावत सदा : सदा ही गान करते हैं।
मन राखो : अपने मन को रखता है।
अति मोद : अत्यंत प्रसन्न रखता है।
सो : वह फिर।
भव : आवागमन जन्म मरण का चक्र, भव सागर।
फिर : पुनः, दुबारा।
आवै नहीं : नहीं आता है।
बैठे प्रभू की गोद : प्रभु की गोद में बैठता है, प्रभु के सानिध्य में अमरापुर में वास करता है।
कबीर साहेब की वाणी है / सन्देश है की जो साधक (व्यक्ति जो ईश्वर भक्ति में लीन रहता है ) हरी के गुणों का यश गान करता है, हरी भक्ति करता है, और स्वंय को माया से विमुख करके अपने मन को हरी के चरणों में ही मगन रखता है, वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और पुनः धरती पर जन्म लेकर नहीं आता है। वह तो अमरापुर में ईश्वर की गोदी में बैठता है।
दोहे का भावार्थ है की जन्म मरण तभी तक हैं जब तक व्यक्ति माया के भरम में उलझा रहता है और हरी नाम सुमिरन से विमुख होता है। जब वह गुरु की महिमा को समझ कर उनके ही उपदेशों का पालन करता है, स्वंय को सांसारिक उलझनों से दूर कर लेता है, और अपने मन को भक्ति में लीन करके आनंदित रहने पर वह पुनः संसार के चक्र में उलझता नहीं है और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। जो प्राणी गुरु की महिमा का सदैव बखान करता फिरता है और उनके आदेशों का प्रसन्नता पूर्वक पालन करता है उस प्राणी का पुनः इस भव बन्धन रुपी संसार मे आगमन नहीं होता है और वह जन्म मरन के बंधन से मुक्त हो जाता है। संसार के भव चक्र से मुक्त होकार बैकुन्ठ लोक/मोक्ष को प्राप्त होता है।
दोहे का भावार्थ है की जन्म मरण तभी तक हैं जब तक व्यक्ति माया के भरम में उलझा रहता है और हरी नाम सुमिरन से विमुख होता है। जब वह गुरु की महिमा को समझ कर उनके ही उपदेशों का पालन करता है, स्वंय को सांसारिक उलझनों से दूर कर लेता है, और अपने मन को भक्ति में लीन करके आनंदित रहने पर वह पुनः संसार के चक्र में उलझता नहीं है और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। जो प्राणी गुरु की महिमा का सदैव बखान करता फिरता है और उनके आदेशों का प्रसन्नता पूर्वक पालन करता है उस प्राणी का पुनः इस भव बन्धन रुपी संसार मे आगमन नहीं होता है और वह जन्म मरन के बंधन से मुक्त हो जाता है। संसार के भव चक्र से मुक्त होकार बैकुन्ठ लोक/मोक्ष को प्राप्त होता है।
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लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावन्हार।
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Sataguru Kee Mahima Anant, Anant Kiya Upakaar.
Lochan Anant Ughaadiya, Anant Dikhaavanhaar.
सतगुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कबीर साहेब की वाणी है की सतगुरु की महिमा अनंत है और उन्होंने अनंत ही उपकार किया है. सतगुरु देव जी ने साधक के आँखों/लोचन को खोल दिया है और अनंत (पूर्ण परम ब्रह्म ) के दर्शन करवाएं हैं. साधक विषय वासनाओं में लिप्त होकर माया के भ्रम में फंसा हुआ था लेकिन सतगुरु देव की कृपा से ही उसकी आँखे खुली हैं और उसे वास्तविकता का बोध हुआ है. गुरु के मार्गदर्शन में ही उसे अनंत के दर्शन हो पाए हैं. इस साखी में यमक अलंकार का उपयोग हुआ है.