नहाये धोये क्या हुआ जो मन मैल न जाए हिंदी मीनिंग Nahaye Dhoye Kya Hua Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Hindi Bhavarth Sahit
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।
Nahaye Dhoye Kya Hua, Jo Man Mail Na Jaay,
Meen Sada Jal Me Rahe, Dhoye Baas Na Jaay.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
जैसे मछली सदा ही जल में रहती है लेकिन उसकी बदबू दूर नहीं होती है वैसे ही नहाने धोने से व्यक्ति का मन निर्मल नहीं होता है। मन को स्वच्छ करने के लिए बाहरी सफाई के स्थान पर स्वंय के दुर्गुणों को पहचान कर उनसे मुक्त होना आवश्यक है। इस दोहे में कबीर दास जी हमें एक महत्वपूर्ण संदेश दे रहे हैं। वे कहते हैं कि बाहरी सफाई उतनी ही महत्वपूर्ण नहीं है जितनी कि आंतरिक सफाई। अगर हमारे मन में बुरे विचार और भावनाएं हैं, तो बाहर से हम कितने भी साफ़ दिखें, अंदर से हम गंदे ही रहेंगे। दोहे के पहले दो लाइन में कबीर दास जी कहते हैं कि बाहरी सफाई का कोई मतलब नहीं है अगर मन अंदर से साफ़ नहीं है। दोहे की आखिरी दो लाइन में कबीर दास जी एक उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि मछली हमेशा पानी में रहती है, लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती। इसका मतलब है कि अगर हम बाहर से कितने भी साफ़ दिखें, हृदय से हम अवगुणों से मुक्त नहीं हो पायेंगे.
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं