गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥६॥
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥६॥
Guru Saman Data Nahi, Yachak Sheesh Saman,
Teen Lok Ki Sampada, So Guru Deenh Daan.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
गुरु के समान कोई दाता नहीं है और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है। तीनों लोकों की सम्पदा को शिष्य के चरणों में दान कर देना चाहिए। ज्ञान रुपी अमृतमयी अनमोल संपती गुरु अपने शिष्य को देता है। ऐसे में याचक भाव से ही शिष्य ज्ञान को प्राप्त करता है। कबीर दास जी का यह दोहा गुरु की महिमा को दर्शाता है। गुरु के समान कोई दाता नहीं होता है। वह अपने ज्ञान और अनुभव को शिष्य को दान में देता है। शिष्य के समान कोई भी याचक नहीं होता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |