प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।
Prem Na Bari Upaje Prem Na Haat Bikay,
Raja Praja Jo Hi Ruche, Sheesh De Hi Le Jaay.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
भक्तिभाव और प्रेम किसी खेत (बाड़ी) में पैदा नहीं होते हैं और नाहीं ये किसी बाजार में ही बिकते हैं। राजा या प्रजा जिसे भी यह पसंद आये वह अपना शीश देकर, स्वंय के अभिमान का त्याग करके भक्ति को प्राप्त कर सकता है। आशय है की भक्ति को प्राप्त करने के लिए साधक को स्वंय का अहम् का त्याग करना होता है। कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम एक ऐसा भाव है जो किसी चीज़ को अर्जित करके नहीं पाया जा सकता है। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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