शाकम्भरी चालीसा महत्त्व और अर्थ

शाकम्भरी चालीसा भजन

शाकम्भरी चालीसा Shakambhri Chalisa

श्री शाकम्भरी चालीसा एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो देवी शाकम्भरी की महिमा का वर्णन करता है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। माना जाता है कि शाकम्भरी माता की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है, जिससे व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।

शाकम्भरी चालीसा के पाठ से भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। यह चालीसा विशेष रूप से पौष मास के शुक्ल पक्ष की शाकम्भरी नवरात्रि के समय की जाती है, जिससे भक्तों को देवी की विशेष अनुकंपा मिलती है।

श्री शाकम्भरी चालीसा के पाठ से भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। यह चालीसा विशेष रूप से पौष मास के शुक्ल पक्ष की शाकम्भरी नवरात्रि के समय की जाती है, जिससे भक्तों को देवी की विशेष अनुकंपा मिलती है। 

बंदउ माँ शाकम्भरी, चरणगुरु का धरकर ध्यान ।
शाकम्भरी माँ चालीसा का, करे प्रख्यान ॥
आनंदमयी जगदम्बिका, अनन्त रूप भंडार ।
माँ शाकम्भरी की कृपा, बनी रहे हर बार ॥
॥ चोपाई ॥
शाकम्भरी माँ अती सुखकारी, पूर्ण ब्रह्म सदा दुःख हारी ॥
कारण करण जगत की दाता, आनंद चेतन विश्व विधाता ॥ १॥

अमर जोत है मात तुम्हारी, तुम ही सदा भक्तन हितकारी ॥
महिमा अमित अथाह अर्पणा, ब्रह्म हरि हर मात अर्पणा ॥ २॥

ज्ञान राशि हो दीन दयाली, शरणागत घर भरती खुशहाली ॥
नारायणी तुम ब्रह्म प्रकाशी, जल-थल-नभ हो अविनाशी ॥ ३॥

कमल कांतिमय शांति अनपा, जोतमन मर्यादा जोत स्वरूपा ॥
जब-जब भक्तो ने ध्याई, जोत अपनी प्रकट हो आई ॥ ४॥

प्यारी बहन के संग विराजे, मात शताक्षि संग ही साजे ॥
भीम भयंकर रूप कराली, तीसरी बहन की जोत निराली ॥ ५॥

चौथी बहिन भ्रामरी तेरी, अदभुत चंचल चित चितेरी ॥
सम्मुख भैरव वीर खड़ा है, दानव दल से खुभ लड़ा है ॥ ६॥

शिव शंकर प्रभु भोले भंडारी, सदा शाकम्भरी माँ का चेरा ॥
हाथ ध्वजा हनुमान बिराजे, युद्ध भूमि में माँ संग साजे ॥ ७॥

काल रात्रि धारे कराली, बहिन मात की अति विकराली ॥
दश विध्या नव दुर्गा आदि, ध्याते तुम्हे परमार्थ वादि ॥ ८॥

अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता, बाल रूप शरणागत माता ॥
माँ भंडारे के रखवारी, प्रथम पूजने के अधिकारी ॥ ९॥

जग की एक भ्रमण की कारण, शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण ॥
भूरा देव लौकड़ा दूजा, जिसकी होती पहली पूजा ॥ १०॥

बली बजरंगी तेरा चेरा, चले संग यश गाता तेरा ॥
पाँच कोस की खोल तुम्हारी, तेरी लीला अति विस्तारी ॥ ११॥

रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो, रक्त पान कर असुर हनी हो ॥
रक्त बीज का नाश किया था, छिन्न मस्तिका रूप लिया था ॥ १२॥

सिद्ध योगिनी सहस्या राजे, सात कुंड में आप विराजे ॥
रूप मराल का तुमने धारा, भोजन दे दे जन जन तारा ॥ १३॥

शोक पात से मुनि जन तारे, शोक पात जन दुःख निवारे ॥
भद्र काली कंपलेश्वर आई, कांत शिवा भगतन सुखदाई ॥ १४॥

भोग भंडारा हलवा पूरी, ध्वजा नारियल तिलक सिंदूरी ॥
लाल चुनरी लगती प्यारी, ये ही भेट ले दुःख निवारी ॥ १५॥

अंधे को तुम नयन दिखाती, कोढ़ी काया सफल बनाती ॥
बांझन के घर बाल खिलाती, निर्धन को धन खूब दिलाती ॥ १६॥

सुख दे दे भगत को तारे, साधु सज्जन काज संवारे ॥
भूमण्डल से जोत प्रकाशी, शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी ॥ १७॥

मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी, जन्म जन्म पहचान हमारी ॥
चरण कमल तेरे बलिहारी, जै जै जै जग जननी तुम्हारी ॥ १८॥

कान्ता चालीसा अति सुखकारी, संकट दुःख दुविधा सब टारी ॥
जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे ॥ १९॥

कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी, भाव शाकम्भरी तत्व प्रकाशी ॥
बार बार कहें कर जोरी, विनती सुन शाकम्भरी मोरी ॥ २०॥

मै सेवक हूँ दास तुम्हारा, जननी करना भव निस्तारा ॥
यह सौ बार पाठ करे कोई, मातु कृपा अधिकारी सोई ॥ २१॥

संकट कष्ट को मात निवारे, शोक मोह शत्रु न संहारे ॥
निर्धन धन सुख संपत्ति पावे, श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे ॥ २२॥

नौ रात्रों तक दीप जगावे, सपरिवार मगन हो गावे ॥
प्रेम से पाठ करे मन लाई, कांत शाकम्भरी अति सुखदाई ॥ २३॥

॥ दोहा ॥
दुर्गा सुर संहारणी, करणी जग के काज ।
शाकम्भरी जननी शिवे, रखना मेरी लाज ॥
युग युग तक व्रत तेरा, करे भक्त उद्धार ।
वो ही तेरा लाड़ला, आवे तेरे द्धार ॥


Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post