श्री सम्भवनाथ चालीसा लिरिक्स Sambhavnath Chalisa Lyrics, Bhagwan Shri Sambhavnath Chalisa Lyrics in Hindi, Chalisa/Lyrics PDF.
भगवान श्री सम्भवनाथ जी जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर थे। भगवान श्री सम्भवनाथ जी का जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था। भगवान श्री संभवनाथ जी के पिता का नाम राजा जितारी था और उनकी माता का नाम सेना देवी था। भगवान श्री संभवनाथ जी का जन्म मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को हुआ था। भगवान श्री संभवनाथ जी को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ था। भगवान श्री संभवनाथ जी के अनुसार मोक्ष प्राप्त करना ही परम लक्ष्य है। भगवान श्री संभवनाथ जी का चालीसा पाठ करने से सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्री जिनदेव को करके वंदन,
जिनवाणी को मन में ध्याय।
काम असम्भव कर दे सम्भव,
समदर्शी सम्भव जिनराय।
जगतपूज्य श्री सम्भव स्वामी,
तीसरे तीर्थंकर है नामी।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले,
भव दुख दुर भगाने वाले।
श्रावस्ती नगरी अती सोहे,
देवो के भी मन को मोहे।
मात सुषेणा पिता दृडराज,
धन्य हुए जन्मे जिनराज।
फाल्गुन शुक्ला अष्टमी आए,
गर्भ कल्याणक देव मनाये।
पूनम कार्तिक शुक्ला आई,
हुई पूज्य प्रगटे जिनराई।
तीन लोक में खुशियाँ छाई,
शची प्रभु को लेने आई।
मेरू पर अभिषेक कराया,
सम्भवप्रभु शुभ नाम धराया।
बीता बचपन यौवन आया,
पिता ने राज्यभिषेक कराया।
मिली रानियां सब अनुरूप,
सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व।
एक दिन महल की छत के ऊपर,
देख रहे वन-सुषमा मनहर।
देखा मेघ-महल हिमखण्ड,
हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड।
तभी हुआ वैराग्य एकदम,
गृहबन्धन लगा नागपाश सम।
करते वस्तु-स्वरूप चिन्तवन,
देव लौकान्तिक करे समर्थन।
निज सुत को देकर के राज,
वन को गमन करे जिनराज।
हुए स्वार सिद्धार्थ पालकी,
गए राह सहेतुक वन की।
मगसिर शुक्ल पूर्णिमा प्यारी,
सहस भूप संग दीक्षा धारी।
तजा परिग्रह केश लौंच कर,
ध्यान धरा पूरब को मुख कर।
धारण कर उस दिन उपवास,
वन में ही फिर किया निवास।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रणाम,
तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान।
प्रथमाहार हुआ मुनिवर का,
धन्य हुआ जीवन सुरेन्द्र का।
पंचाश्चर्यो से देवो के,
हुए प्रजाजन सुखी नगर के।
चौदह वर्ष की आत्म सिद्धि,
स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार,
समोशरण रचना हितकार।
खिरती सुखकारी जिनवाणी,
निज भाषा में समझे प्राणी।
विषयभोग है विषसम विषमय,
इनमे मत होना तुम तन्मय।
तृष्णा बढ़ती है भोगों से,
काया घिरती है रोगो से।
जिनलिंग से निज को पहचानो,
अपना शुद्धातम सरधानो।
दर्शन-ज्ञान-चरित्र बतावे,
मोक्ष मार्ग एकत्व दिखाये।
जीवों का सन्मार्ग बताया,
भव्यो का उद्धार कराया।
गणधर एक सौ पांच प्रभु के,
मुनिवर पन्द्रह सहस संघ के।
देवी-देव-मनुज बहुतेरे,
सभा में थे तिर्यंच घनेरे।
एक महीना उम्र रही जब,
पहूंच गए सम्मेद शिखर तब।
अचल हुए खङगासन में प्रभु,
कर्म नाश कर हुए स्वयम्भु।
चैत सुदी षष्ठी था न्यारी,
धवल कूट की महिमा भारी।
साठ लाख पूर्व का जीवन,
पग में अश्व का था शुभ लक्षण।
चालीसा श्री सम्भवनाथ,
पाठ करो श्रद्धा के साथ।
मनवांछित सब पूरण होवे,
अरुणा जनम-मरण दुख खोवे।
जिनवाणी को मन में ध्याय।
काम असम्भव कर दे सम्भव,
समदर्शी सम्भव जिनराय।
जगतपूज्य श्री सम्भव स्वामी,
तीसरे तीर्थंकर है नामी।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले,
भव दुख दुर भगाने वाले।
श्रावस्ती नगरी अती सोहे,
देवो के भी मन को मोहे।
मात सुषेणा पिता दृडराज,
धन्य हुए जन्मे जिनराज।
फाल्गुन शुक्ला अष्टमी आए,
गर्भ कल्याणक देव मनाये।
पूनम कार्तिक शुक्ला आई,
हुई पूज्य प्रगटे जिनराई।
तीन लोक में खुशियाँ छाई,
शची प्रभु को लेने आई।
मेरू पर अभिषेक कराया,
सम्भवप्रभु शुभ नाम धराया।
बीता बचपन यौवन आया,
पिता ने राज्यभिषेक कराया।
मिली रानियां सब अनुरूप,
सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व।
एक दिन महल की छत के ऊपर,
देख रहे वन-सुषमा मनहर।
देखा मेघ-महल हिमखण्ड,
हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड।
तभी हुआ वैराग्य एकदम,
गृहबन्धन लगा नागपाश सम।
करते वस्तु-स्वरूप चिन्तवन,
देव लौकान्तिक करे समर्थन।
निज सुत को देकर के राज,
वन को गमन करे जिनराज।
हुए स्वार सिद्धार्थ पालकी,
गए राह सहेतुक वन की।
मगसिर शुक्ल पूर्णिमा प्यारी,
सहस भूप संग दीक्षा धारी।
तजा परिग्रह केश लौंच कर,
ध्यान धरा पूरब को मुख कर।
धारण कर उस दिन उपवास,
वन में ही फिर किया निवास।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रणाम,
तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान।
प्रथमाहार हुआ मुनिवर का,
धन्य हुआ जीवन सुरेन्द्र का।
पंचाश्चर्यो से देवो के,
हुए प्रजाजन सुखी नगर के।
चौदह वर्ष की आत्म सिद्धि,
स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार,
समोशरण रचना हितकार।
खिरती सुखकारी जिनवाणी,
निज भाषा में समझे प्राणी।
विषयभोग है विषसम विषमय,
इनमे मत होना तुम तन्मय।
तृष्णा बढ़ती है भोगों से,
काया घिरती है रोगो से।
जिनलिंग से निज को पहचानो,
अपना शुद्धातम सरधानो।
दर्शन-ज्ञान-चरित्र बतावे,
मोक्ष मार्ग एकत्व दिखाये।
जीवों का सन्मार्ग बताया,
भव्यो का उद्धार कराया।
गणधर एक सौ पांच प्रभु के,
मुनिवर पन्द्रह सहस संघ के।
देवी-देव-मनुज बहुतेरे,
सभा में थे तिर्यंच घनेरे।
एक महीना उम्र रही जब,
पहूंच गए सम्मेद शिखर तब।
अचल हुए खङगासन में प्रभु,
कर्म नाश कर हुए स्वयम्भु।
चैत सुदी षष्ठी था न्यारी,
धवल कूट की महिमा भारी।
साठ लाख पूर्व का जीवन,
पग में अश्व का था शुभ लक्षण।
चालीसा श्री सम्भवनाथ,
पाठ करो श्रद्धा के साथ।
मनवांछित सब पूरण होवे,
अरुणा जनम-मरण दुख खोवे।
Shri Sambhavnath Chalisa Lyrics in Hindi
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
इस युग के तृतीय प्रभू, तुम्हीं तो कहलाए,
तुम्हीं तो कहलाए
पिता दृढ़रथ सुषेणा मात, पा तुम्हें हरषाए,
पा तुम्हें हरषाए
अवधपुरी धन्य-धन्य, इन्द्रगण प्रसन्नमन,
उत्सव मनाएं रे
हो जन्म उत्सव मनाएँ रे।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
मगशिर सुदी पूनो तिथी, हुए प्रभु वैरागी,
हुए प्रभु वैरागी,
सिद्ध प्रभुवर की ले साक्षी, जिनदीक्षा धारी,
जिनदीक्षा धारी,
श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले,
आतम को ध्याया रे, प्रभू ने आतम को।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि, केवल रवि प्रगटा,
केवल रवि प्रगटा,
इन्द्र आज्ञा से धनपति ने, समवसरण को रचा,
समवसरण को रचा,
दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई,
शिवपथ की ओर चले,
अनेक जीव शिवपथ की ओर चले।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को, मोक्षकल्याण हुआ,
मोक्षकल्याण हुआ,
प्रभू जाकर विराजे वहाँ, सिद्धसमूह भरा,
सिद्धसमूह भरा,
सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है,
मुक्ति जहां से मिली,
प्रभू को मुक्ति जहाँ से मिली।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला, आरति मैं कर लूँ,
आरति मैं कर लूँ,
करके आरति प्रभो तेरी, मुक्तिवधू वर लूँ,
मुक्तिवधू वर लूँ,
त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को,
‘चंदनामती’ ये कहे, प्रभूजी ‘‘चंदनामती’’ ये कहे।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
इस युग के तृतीय प्रभू, तुम्हीं तो कहलाए,
तुम्हीं तो कहलाए
पिता दृढ़रथ सुषेणा मात, पा तुम्हें हरषाए,
पा तुम्हें हरषाए
अवधपुरी धन्य-धन्य, इन्द्रगण प्रसन्नमन,
उत्सव मनाएं रे
हो जन्म उत्सव मनाएँ रे।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
मगशिर सुदी पूनो तिथी, हुए प्रभु वैरागी,
हुए प्रभु वैरागी,
सिद्ध प्रभुवर की ले साक्षी, जिनदीक्षा धारी,
जिनदीक्षा धारी,
श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले,
आतम को ध्याया रे, प्रभू ने आतम को।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि, केवल रवि प्रगटा,
केवल रवि प्रगटा,
इन्द्र आज्ञा से धनपति ने, समवसरण को रचा,
समवसरण को रचा,
दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई,
शिवपथ की ओर चले,
अनेक जीव शिवपथ की ओर चले।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को, मोक्षकल्याण हुआ,
मोक्षकल्याण हुआ,
प्रभू जाकर विराजे वहाँ, सिद्धसमूह भरा,
सिद्धसमूह भरा,
सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है,
मुक्ति जहां से मिली,
प्रभू को मुक्ति जहाँ से मिली।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला, आरति मैं कर लूँ,
आरति मैं कर लूँ,
करके आरति प्रभो तेरी, मुक्तिवधू वर लूँ,
मुक्तिवधू वर लूँ,
त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को,
‘चंदनामती’ ये कहे, प्रभूजी ‘‘चंदनामती’’ ये कहे।।
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय।
Bhagwan Shri Sambhavanath Ji Ki Aarti Hindi Me
आरती सम्भवनाथ तुम्हारी, हम सब गाये महिमा तिहारी।
चौदह वर्ष तपस्या ठानी, कर्मजयी तुम केवल ज्ञानी।
शीश झुकाते भक्त पुजारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
तुमने आत्मज्योति प्रकटाई, कर्म शत्रुओ पर जय पाई।
संकटहारी शिव भर्तारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
राजपाट क्षण भर में छोड़ा, शिव पथ पर जीवन रथ मोड़ा।
तुम हो तीर्थंकर पदधारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
शरण तुम्हारी जो आता है, मनवांछित फल वह पाता है।
तुम शरणागत को सुखकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
संकटमोचन नाम तुम्हारा, जिसने मन से तुम्हे पुकारा।
मिली सिद्धियां मंगलकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
नाथ आरती यह स्वीकारो, भवसागर से पार उतारो।
हम सब सेवक आज्ञाकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
चौदह वर्ष तपस्या ठानी, कर्मजयी तुम केवल ज्ञानी।
शीश झुकाते भक्त पुजारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
तुमने आत्मज्योति प्रकटाई, कर्म शत्रुओ पर जय पाई।
संकटहारी शिव भर्तारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
राजपाट क्षण भर में छोड़ा, शिव पथ पर जीवन रथ मोड़ा।
तुम हो तीर्थंकर पदधारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
शरण तुम्हारी जो आता है, मनवांछित फल वह पाता है।
तुम शरणागत को सुखकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
संकटमोचन नाम तुम्हारा, जिसने मन से तुम्हे पुकारा।
मिली सिद्धियां मंगलकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
नाथ आरती यह स्वीकारो, भवसागर से पार उतारो।
हम सब सेवक आज्ञाकारी, आरती सम्भवनाथ तुम्हारी।
Bhagwan Sambhavnath Aarti Tritiya
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय-२।।टेक.।।
इस युग के तृतीय प्रभू, तुम्हीं तो कहलाए,
पिता दृढ़रथ सुषेणा मात, पा तुम्हें हरषाए,
अवधपुरी धन्य-धन्य, इन्द्रगण प्रसन्नमन,
उत्सव मनाएं रे हो जन्म उत्सव मनाएँ रे,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
मगशिर सुदी पूनो तिथी, हुए प्रभु वैरागी,
सिद्ध प्रभुवर की ले साक्षी, जिनदीक्षा धारी,
श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले,
आतम को ध्याया रे प्रभू ने आतम को,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि, केवल रवि प्रगटा, केवल,
इन्द्र आज्ञा से धनपति ने, समवसरण को रचा,
समवसरण, दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई,
शिवपथ की ओर चले, अनेक जीव शिवपथ की ओर चले,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को, मोक्षकल्याण हुआ,
प्रभू जाकर विराजे वहाँ, सिद्धसमूह भरा,
सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है,
मुक्ति जहां से मिली, प्रभू को मुक्ति जहाँ से मिली,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला, आरति मैं कर लूँ,
करके आरति प्रभो तेरी, मुक्तिवधू वर लूँ,
त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को,
‘चंदनामती’ ये कहे प्रभूजी ‘‘चंदनामती’’ ये कहे,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय-२।।टेक.।।
इस युग के तृतीय प्रभू, तुम्हीं तो कहलाए,
पिता दृढ़रथ सुषेणा मात, पा तुम्हें हरषाए,
अवधपुरी धन्य-धन्य, इन्द्रगण प्रसन्नमन,
उत्सव मनाएं रे हो जन्म उत्सव मनाएँ रे,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
मगशिर सुदी पूनो तिथी, हुए प्रभु वैरागी,
सिद्ध प्रभुवर की ले साक्षी, जिनदीक्षा धारी,
श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले,
आतम को ध्याया रे प्रभू ने आतम को,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि, केवल रवि प्रगटा, केवल,
इन्द्र आज्ञा से धनपति ने, समवसरण को रचा,
समवसरण, दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई,
शिवपथ की ओर चले, अनेक जीव शिवपथ की ओर चले,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को, मोक्षकल्याण हुआ,
प्रभू जाकर विराजे वहाँ, सिद्धसमूह भरा,
सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है,
मुक्ति जहां से मिली, प्रभू को मुक्ति जहाँ से मिली,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला, आरति मैं कर लूँ,
करके आरति प्रभो तेरी, मुक्तिवधू वर लूँ,
त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को,
‘चंदनामती’ ये कहे प्रभूजी ‘‘चंदनामती’’ ये कहे,
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की।
भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)
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Tumhi To Kehlaye,
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Pita Drudhrat Sushena Maat,
Pa Tumhe Harshaye,
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Awadhpuri Dhanya-Dhanya,
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Ho Janm Utsav Manaye Re।
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Siddhasamuha Bhara,
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