सुनो राग देवगंधार भजन
सुनो राग देवगंधार, अति प्रिय देवन को ॥
सुर नर मुनी गावत है, मधुर राग मनभावत ॥
सुनो राग देवगंधार, अति प्रिय देवन को ॥
सुर नर मुनी गावत है, मधुर राग मनभावत ॥
सुर नर मुनी गावत है, मधुर राग मनभावत ॥
सुनो राग देवगंधार, अति प्रिय देवन को ॥
सुर नर मुनी गावत है, मधुर राग मनभावत ॥
Suno Raag Devagandhar, Ati Priy Devan Ko
Sur Nar Muni Gaavat Hai, Madhur Raag Man Bhaavat
Suno Raag Devagandhar, Ati Priy Devan Ko
Sur Nar Muni Gaavat Hai, Madhur Raag Man Bhaavat
Raga Devgandhar | Smt. Sawani Shende-Sathey | Suno Raag Devgandhar
जसोदा, तेरो भलो हियो है माई।कमलनयन माखन के कारन बांधे ऊखल लाई॥
जो संपदा दैव मुनि दुर्लभ सपनेहुं दई न दिखाई।
याही तें तू गरब भुलानी घर बैठें निधि पाई॥
सुत काहू कौ रोवत देखति दौरि लेति हिय लाई।
अब अपने घर के लरिका पै इती कहा जड़ताई॥
बारंबार सजल लोचन ह्वै चितवत कुंवर कन्हाई।
कहा करौं, बलि जाउं, छोरती तेरी सौंह दिवाई॥
जो मूरति जल-थल में व्यापक निगम न खोजत पाई।
सोई महरि अपने आंगन में दै-दै चुटकि नचाई॥
सुर पालक सब असुर संहारक त्रिभुवन जाहि डराई।
सूरदास, प्रभु की यह लीला निगम नेति नित गई॥
जसुमति दौरि लिये हरि कनियां।
"आजु गयौ मेरौ गाय चरावन, हौं बलि जाउं निछनियां॥
मो कारन कचू आन्यौ नाहीं बन फल तोरि नन्हैया।
तुमहिं मिलैं मैं अति सुख पायौ,मेरे कुंवर कन्हैया॥
कछुक खाहु जो भावै मोहन.' दैरी माखन रोटी।
सूरदास, प्रभु जीवहु जुग-जुग हरि-हलधर की जोटी॥
जौ बिधिना अपबस करि पाऊं।
तौ सखि कह्यौ हौइ कछु तेरो, अपनी साध पुराऊं॥
लोचन रोम-रोम प्रति मांगों पुनि-पुनि त्रास दिखाऊं।
इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति नई चलाऊं॥
कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्वे, नहिं ठाऊं।
एते पर ये निमिष सूर , सुनि, यह दुख काहि सुनाऊं॥
जो आजु (पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं।
तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतन कहाऊं॥
स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं।
इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥
पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सरिता रुधिर बहाऊं।
सूरदास, रणविजयसखा कौं जियत न पीठि दिखाऊं॥
जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले।
कुमुद -बृंद संकुचित भए भृंग लता भूले॥
तमचुर खग करत रोर बोलत बनराई।
रांभति गो खरिकनि मैं बछरा हित धाई॥
विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर श्रीगोपाल उठौ परम मंगलकारी॥
जो संपदा दैव मुनि दुर्लभ सपनेहुं दई न दिखाई।
याही तें तू गरब भुलानी घर बैठें निधि पाई॥
सुत काहू कौ रोवत देखति दौरि लेति हिय लाई।
अब अपने घर के लरिका पै इती कहा जड़ताई॥
बारंबार सजल लोचन ह्वै चितवत कुंवर कन्हाई।
कहा करौं, बलि जाउं, छोरती तेरी सौंह दिवाई॥
जो मूरति जल-थल में व्यापक निगम न खोजत पाई।
सोई महरि अपने आंगन में दै-दै चुटकि नचाई॥
सुर पालक सब असुर संहारक त्रिभुवन जाहि डराई।
सूरदास, प्रभु की यह लीला निगम नेति नित गई॥
जसुमति दौरि लिये हरि कनियां।
"आजु गयौ मेरौ गाय चरावन, हौं बलि जाउं निछनियां॥
मो कारन कचू आन्यौ नाहीं बन फल तोरि नन्हैया।
तुमहिं मिलैं मैं अति सुख पायौ,मेरे कुंवर कन्हैया॥
कछुक खाहु जो भावै मोहन.' दैरी माखन रोटी।
सूरदास, प्रभु जीवहु जुग-जुग हरि-हलधर की जोटी॥
जौ बिधिना अपबस करि पाऊं।
तौ सखि कह्यौ हौइ कछु तेरो, अपनी साध पुराऊं॥
लोचन रोम-रोम प्रति मांगों पुनि-पुनि त्रास दिखाऊं।
इकटक रहैं पलक नहिं लागैं, पद्धति नई चलाऊं॥
कहा करौं छवि-रासि स्यामघन, लोचन द्वे, नहिं ठाऊं।
एते पर ये निमिष सूर , सुनि, यह दुख काहि सुनाऊं॥
जो आजु (पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं।
तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतन कहाऊं॥
स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं।
इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥
पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सरिता रुधिर बहाऊं।
सूरदास, रणविजयसखा कौं जियत न पीठि दिखाऊं॥
जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले।
कुमुद -बृंद संकुचित भए भृंग लता भूले॥
तमचुर खग करत रोर बोलत बनराई।
रांभति गो खरिकनि मैं बछरा हित धाई॥
विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर श्रीगोपाल उठौ परम मंगलकारी॥
Smt. Sawani Shende-Sathey: Sawani was born in a musically rich family. Sawani has been very fortunate to have her father Pandit Sanjeev Shende and grandmother as her Gurus too. Sawani’s grandmother, Smt. Kusum Shende , herself a noted singer of the Kirana Gharana and an honoured artist of the Sangeet Natak Era acquired Hindustani Classical music lessons from the two great sister maestros of the Kirana Gharana, Smt. Hirabai Badodekarji and Smt. Saraswatibai Raneji. She also got to learn from Pandit Chota Gandharvaji. She was also a disciple of Smt. Shobha Gurtuji who taught her innumerable Thumris and Dadras.
Raag Devgandhar राग देवगंधार की विशेषता:-
देव गंधार राग को आसावरी थाट जन्य से सबंधित माना गया है और इसकी जाती सम्पूर्ण है। देव गंधार में "ध" नि कोमल और दोनों गंधार प्रयोग किये जाते हैं। राग गंधार को प्रायः दिन के दूसरे प्रहर में इसे गाया बजाया जाता है।
Raag Devgandhar राग देवगंधार की विशेषता:-
देव गंधार राग को आसावरी थाट जन्य से सबंधित माना गया है और इसकी जाती सम्पूर्ण है। देव गंधार में "ध" नि कोमल और दोनों गंधार प्रयोग किये जाते हैं। राग गंधार को प्रायः दिन के दूसरे प्रहर में इसे गाया बजाया जाता है।
आरोह:- सा रे म प, नि ध – नि सां।
अवरोह:- सां नि ध – प, ध म प ग – रे सा, रे ग म प ग रे सा।
पकड़:- ध म प ग – सारे सा, रे नि सा रे ग – म ।
अवरोह:- सां नि ध – प, ध म प ग – रे सा, रे ग म प ग रे सा।
पकड़:- ध म प ग – सारे सा, रे नि सा रे ग – म ।
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