कबिरा संगत साधु की ज्यों गन्धी की बास हिंदी मीनिंग
कबिरा संगत साधु की , ज्यों गन्धी की बास ।
जो कुछ गन्धी दे नहीं , तो भी बास सुबास ।।
Kabira Sangat Saadhu Kee , Jyon Gandhee Kee Baas.
Jo Kuchh Gandhee De Nahin , To Bhee Baas Subaas.
इस दोहे का हिंदी में मीनिंग: Kabir Ke Dohe Hindi Meaning :
कबीर साहेब की अमूल्य वाणी है की साधू और सत्पुरुषों की संगत ऐसी है जैसे की गन्धी (इत्र बेचने वाला) हरदम अपने साथ इत्र और सुगन्धित प्रदार्थ रखता है वह गंध उसमे भी समां जाती है। यदि कोई गंधी के संपर्क में आता है/ गन्धी के पास बैठे तो उसमे भी सुगंध आने लगती है चाहे प्रत्यक्ष रूप से गन्धी कुछ भी नहीं दे (आप इत्र चाहे मत खरीदों ) . संतजन और साधू के पास रहने से भी ऐसा ही होता है, उनके सुविचार हमारे हृदय में प्रवेश करने लगते हैं और विषय विकार से मन परे हटने लगता है। संतजन और साधू की संगति के विषय पर कबीर साहेब के निम्न दोहे भी हैं -
ऐक घड़ी आधो घड़ी , आधो हुं सो आध
कबीर संगति साधु की, कटै कोटि अपराध।
उजल बुन्द आकाश की, परि गयी भुमि बिकार
माटी मिलि भई कीच सो बिन संगति भौउ छार।
कोयला भी होये उजल, जरि बरि है जो सेत
मुरख होय ना उजला, ज्यों कालर का खेत।
चंदन जैसे संत है, सरुप जैसे संसार
वाके अंग लपटा रहै, भागै नहीं बिकार।
जा घर हरि भक्ति नहीं, संत नहीं मिहमान
ता घट जम डेरा दिया, जीवत भये मसान।
जीवन जोवन राज मद अविचल रहै ना कोये
जु दिन जाये सतसंग मे, जीवन का फल सोये।
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