मन मोहना बड़े झूठे हार के हार नहीं माने
मन मोहना बड़े झूठे हार के हार नहीं माने
हार के हार नहीं माने।।
बन के खिलाड़ी पिया,
निकले अनाड़ी,
मोसे बेइमानी की,
मुझसे ही रूठे।।
तुम्हारी यह बंसी कहना,
बनी गले की फांसी,
तान सुना के मेरा,
तन मन लूटे।।
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Film: Seema, Year: 1955, Balraj Sahni, Nutan, Shubha Khote, Shankar Jaikishan. Shailendra, Lata Mangeshkar's Great Classical Song.
मानव हृदय की सबसे सुंदर विशेषता यह है कि वह प्रेम में हारकर भी हार मानना नहीं जानता। जब आत्मा अपने प्रिय के प्रेम में डूब जाती है, तो तर्क, शिकायत और उलाहना सब पीछे छूट जाते हैं। प्रेम में अक्सर ऐसा होता है कि सामने वाला छल, शरारत या उपेक्षा भी कर दे, तो भी हृदय उसे स्वीकार कर लेता है। यह प्रेम की अनोखी लीला है—जहाँ हार भी जीत जैसी लगती है, और प्रिय की हर बात—even उसकी शरारतें और ताने—मन को भाते हैं। प्रेम में डूबा मन बार-बार ठगा जाने के बावजूद, अपने प्रिय की ओर ही खिंचता चला जाता है।
यह भाव दर्शाता है कि सच्चा प्रेम निष्कलंक, निस्वार्थ और पूर्ण समर्पण से भरा होता है। उसमें कोई शिकायत स्थायी नहीं रहती, क्योंकि प्रेमी के लिए प्रिय की हर बात, हर व्यवहार—even उसकी नाराजगी या चंचलता—आनंद और आकर्षण का कारण बन जाती है। यही प्रेम आत्मा को गहराई से जोड़ता है, उसे विनम्र, सहनशील और समर्पित बनाता है। प्रेम में हारना भी एक प्रकार की विजय है, क्योंकि उसमें अहंकार का अंत और आत्मा का पूर्ण समर्पण होता है। यही जीवन की सबसे मधुर अनुभूति है, जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ती है।
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Author - Saroj Jangir
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