सिर राखे सिर जात है सिर काटे सिर होय हिंदी मीनिंग Sir Rakhe Sir Jaat Hai Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर होय।
जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होय।।
Or
सिर राखे सिर जात है, सिर कटाये सिर होये
जैसे बाती दीप की कटि उजियारा होये।
Sir Rakhe Sir Jaat Hai, Sir Kataye Sir Hoy,
Jaise Baati Deep Ki Kati Ujiyara Hoy.
जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होय।।
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सिर राखे सिर जात है, सिर कटाये सिर होये
जैसे बाती दीप की कटि उजियारा होये।
Sir Rakhe Sir Jaat Hai, Sir Kataye Sir Hoy,
Jaise Baati Deep Ki Kati Ujiyara Hoy.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
कबीरदास कहते हैं की जो अपना सर रखते हैं / स्वंय का स्वाभिमान, गर्व रखते हैं वे सर (परमात्मा ) को खो देते हैं। भाव है की इश्वर/परमात्मा की प्राप्ति के लिए स्वंय के होने का भाव समाप्त करना पड़ता है, साहेब उदाहरण देते हैं की जैसे दीपक की बाती ऊपर से काट देने पर वह अधिक प्रकाश पैदा करती है वैसे ही अहम् को नष्ट कर देने पर ज्ञान की ज्योति अधिक प्रबल होती है।
कबीरदास की कविता में अहंकार/अहम् के खतरों के बारे में बताया गया है. वे कहते हैं कि जो लोग अपने अहंकार को बचाने के लिए जीते हैं, वे अंततः परमात्मा को खो देते हैं. जैसे एक दीपक की बाती को जलने के लिए अपने सिर को काटना पड़ता है, वैसे ही एक व्यक्ति को अपने अहंकार को त्यागना पड़ता है ताकि वह परमात्मा को प्राप्त कर सके.
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