कबीर धूलि सकेलि करि मीनिंग
कबीर धूलि सकेलि करि भजन मीनिंग
कबीर धूलि सकेलि करि, पुड़ी ज बाँधी एह।
दिवस चारि का पेषणाँ, अंति षेह का षेह॥
Kabir Dhuli Sakeli Kari, Padi Je Bandhi Eh,
Diwas Chari Ka Pekshna, Anti Kheh Ka Kheh.
दिवस चारि का पेषणाँ, अंति षेह का षेह॥
Kabir Dhuli Sakeli Kari, Padi Je Bandhi Eh,
Diwas Chari Ka Pekshna, Anti Kheh Ka Kheh.
धूलि : धुल, मिटटी.
सकेलि करि : संग्रह.
पुड़ी : पुडिया.
ज बाँधी एह पुडिया को बाँधा, यह पुडिया.
दिवस चारि का : अल्प समय के लिए.
पेषणाँ : प्रेक्षण, दिखावा.
अंति : अंत समय में.
षेह का षेह मिटटी की मिटटी.
सकेलि करि : संग्रह.
पुड़ी : पुडिया.
ज बाँधी एह पुडिया को बाँधा, यह पुडिया.
दिवस चारि का : अल्प समय के लिए.
पेषणाँ : प्रेक्षण, दिखावा.
अंति : अंत समय में.
षेह का षेह मिटटी की मिटटी.
यह संसार कुछ भी नहीं है अपितु मिटटी को सोर कर, इकठ्ठा करके बनाई हुई एक पुडिया के समान है. जिसका कोई अस्तित्व नहीं है. यह चार दिनों का दिखावा है, और अंत में मिटटी को मिटटी में मिल जाना है. प्रस्तुत सखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
प्रस्तुत साखी के माध्यम से साहेब ने सन्देश किया है यह तन कागज़ की पुड़िया, मिटटी का पुतला है, इसका कोई स्थाई आधार नहीं है। इसलिए इस जीवन की उपयोगिता को पहचानना होगा। धन सम्पदा इकट्ठा करना जीवन का उद्देश्य नहीं है क्योंकि कोई इसे अपने साथ नहीं लेकर जाता है। सब यहीं धरा रह जाना है। इसलिए इस सीमित समय के लिए मिले मानव जीवन में हमें अधिक से अधिक हरी सुमिरण करना चाहिए।