मैं कैसे प्रीत लगाऊ री मनमोहन बंसी वाले से

मैं कैसे प्रीत लगाऊ री मनमोहन बंसी वाले से

मैं कैसे प्रीत लगाऊ री मनमोहन बंसी वाले से,
मैं बोरी, मेरा मनवा बोरो, कैसे अंग छुआ री,
या तन और मन के तारे से, मैं कैसे प्रीत लगाऊ री,
मनमोहन बंसी वाले से।।

सखी सहेली पानी भरन की, अरे मैं कैसे बतलाऊ जी,
यहां गायें चरावन वाले से, मैं कैसे प्रीत लगाऊ री,
मनमोहन बंसी वाले से।।

रतन को शृंगार जड़ी में, कैसे गांठ मिलाऊ री,
यहां माखन चोरन्हारे से, मैं कैसे प्रीत लगाऊ री,
मनमोहन बंसी वाले से।।

खिलती सोने की चंपा में, कैसे रूप बचाऊ री,
काले भंवरा मतवाले ते, मैं कैसे प्रीत निभाऊ री,
मनमोहन बंसी वाले से।।

बिना बुलाए संग ही आवे, अब तो बच नहीं पाऊ री,
वारस या मन के प्यारे से, मैं कैसे प्रीत लगाऊ री,
मनमोहन बंसी वाले से।।


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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