श्री राम जन्म की आरती
श्री राम जन्म की आरती
'भए प्रगट कृपाला दीनदयाला' गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' के बालकांड में वर्णित एक प्रसिद्ध स्तुति है। इसमें भगवान राम के जन्म के समय की घटनाओं और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। माता कौशल्या के हितकारी, दीनों पर दया करने वाले भगवान राम के प्रकट होने पर माता का हर्षित होना, मुनियों के मन को हरने वाला उनका अद्भुत रूप, श्यामल शरीर, चार भुजाओं में शस्त्र धारण करना, गले में वनमाला और विशाल नेत्रों की शोभा का सुंदर चित्रण इस स्तुति में मिलता है। यह स्तुति भगवान राम की करुणा, सुख और गुणों के सागर स्वरूप को प्रकट करती है, जिसे वेद और पुराणों में भी वर्णित किया गया है।
भय प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशिल्या हितकारी |
हरषित महतारी मुनि-मन हारी अदभुत रूप निहारी ||
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुजचारी |
भूषण बन माला नयन विशाला शोभा सिन्धु खरारी ||
कह दुई कर जोरी स्तुति तोरी केहिविधि करूं अनन्ता |
माया गुण ज्ञान तीत अमाना वेद पुराण भनन्ता ||
करुण सुखसागर सब गुनआगर जोहिं गावहीं
श्रुतिसंता |सो मम हित लागी जन अनुरागी प्रगट भय श्रीकन्ता ||
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रतिवेद कहे |
मम उर सो वासी यह उपहासी सुनत धीरमति थिर नरहे ||
उपजा जब ज्ञाना प्रभुमुस्कान चरित बहुतविधि कीन्ह्चहे |
कहि कथा सुनाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सूत प्रेम लहे ||
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहूँ तात यह रूपा |
कीजे शिशुलीला अति प्रियशीला यह सुख परम अनूपा ||
सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना हवै बालक सुर भूप |
यह चरित जो गावहिं हरिपद पावहीं ते न परहीं भव कूपा ||
हरषित महतारी मुनि-मन हारी अदभुत रूप निहारी ||
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुजचारी |
भूषण बन माला नयन विशाला शोभा सिन्धु खरारी ||
कह दुई कर जोरी स्तुति तोरी केहिविधि करूं अनन्ता |
माया गुण ज्ञान तीत अमाना वेद पुराण भनन्ता ||
करुण सुखसागर सब गुनआगर जोहिं गावहीं
श्रुतिसंता |सो मम हित लागी जन अनुरागी प्रगट भय श्रीकन्ता ||
ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रतिवेद कहे |
मम उर सो वासी यह उपहासी सुनत धीरमति थिर नरहे ||
उपजा जब ज्ञाना प्रभुमुस्कान चरित बहुतविधि कीन्ह्चहे |
कहि कथा सुनाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सूत प्रेम लहे ||
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहूँ तात यह रूपा |
कीजे शिशुलीला अति प्रियशीला यह सुख परम अनूपा ||
सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना हवै बालक सुर भूप |
यह चरित जो गावहिं हरिपद पावहीं ते न परहीं भव कूपा ||
सुन्दर भजन में श्रीरामजी के प्राकट्य की दिव्यता और उनकी कृपा का उदगार है। कौशल्याजी का मन आनंद से भर उठता है, जब वे अपने पुत्र के अद्भुत रूप का दर्शन करती हैं। इस क्षण की अलौकिकता मुनियों के हृदय को भी आह्लादित करती है, और हर मन उनकी कृपा से पुलकित हो जाता है।
श्रीरामजी का घनश्याम स्वरूप, उनकी विशाल आंखें, दिव्य आभूषण और चरणों का तेज भक्तों को मोहित करता है। उनके हाथों में धारण किए आयुध धर्म, न्याय और करुणा के प्रतीक हैं। श्रीरामजी की उपासना से आत्मा में सुख और संतोष का संचार होता है।
शास्त्रों ने उनकी कृपा को अनंत बताया है। वे माया से परे ज्ञान और सत्य का स्रोत हैं। वेद और पुराण उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। भक्तों के अनुराग से वे प्रकट होते हैं, उनके प्रेम से प्रेरित होकर वे संसार में धर्म की स्थापना करते हैं।
श्रीरामजी के प्राकट्य से ब्रह्मांड में एक नई चेतना का संचार होता है। उनके रोम-रोम में सृजन की शक्ति समाहित है, और वे प्रत्येक जीव के हृदय में बसते हैं। जब माता कौशल्याजी ने उनके अलौकिक रूप को देखा, तो उन्होंने अपने पुत्र से आग्रह किया कि वे बाल लीला करें, जिससे संसार उनकी सरलता और प्रेम को अनुभव कर सके।
श्रीरामजी के बाल रूप में उनकी अद्भुत लीलाएँ भक्तों को आनंद से भर देती हैं। उनकी कथा, उनके प्रेम का अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मोक्ष की राह दिखाती है। उनके चरणों का स्मरण करने से जीवन के समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा शांति और आनंद से परिपूर्ण हो जाती है। उनके भक्त उनके नाम का गुणगान करते हुए भवसागर को पार कर जाते हैं।
श्रीरामजी का घनश्याम स्वरूप, उनकी विशाल आंखें, दिव्य आभूषण और चरणों का तेज भक्तों को मोहित करता है। उनके हाथों में धारण किए आयुध धर्म, न्याय और करुणा के प्रतीक हैं। श्रीरामजी की उपासना से आत्मा में सुख और संतोष का संचार होता है।
शास्त्रों ने उनकी कृपा को अनंत बताया है। वे माया से परे ज्ञान और सत्य का स्रोत हैं। वेद और पुराण उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। भक्तों के अनुराग से वे प्रकट होते हैं, उनके प्रेम से प्रेरित होकर वे संसार में धर्म की स्थापना करते हैं।
श्रीरामजी के प्राकट्य से ब्रह्मांड में एक नई चेतना का संचार होता है। उनके रोम-रोम में सृजन की शक्ति समाहित है, और वे प्रत्येक जीव के हृदय में बसते हैं। जब माता कौशल्याजी ने उनके अलौकिक रूप को देखा, तो उन्होंने अपने पुत्र से आग्रह किया कि वे बाल लीला करें, जिससे संसार उनकी सरलता और प्रेम को अनुभव कर सके।
श्रीरामजी के बाल रूप में उनकी अद्भुत लीलाएँ भक्तों को आनंद से भर देती हैं। उनकी कथा, उनके प्रेम का अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मोक्ष की राह दिखाती है। उनके चरणों का स्मरण करने से जीवन के समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा शांति और आनंद से परिपूर्ण हो जाती है। उनके भक्त उनके नाम का गुणगान करते हुए भवसागर को पार कर जाते हैं।
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Author - Saroj Jangir
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