मेरे मन मैं पड़ि गई ऐसी एक दरार हिंदी मीनिंग Mere Man Me Padi Gayi Aisi Ek Daraar Kabir Dohe Hindi Meaning
मेरे मन मैं पड़ि गई, ऐसी एक दरार।
फटा फटक पषाँण ज्यूँ, मिल्या न दूजी बार॥
फटा फटक पषाँण ज्यूँ, मिल्या न दूजी बार॥
Mere Man Main Padi Gaee, Aisee Ek Daraar.
Phata Phatak Pashaann Jyoon, Milya Na Doojee Baar.
सतगुरु की दया से मेरे मन में एक दरार पड़ गई है। सांसारिक मोह माया से मेरे मन में दरार उत्पन्न हो गई है। यह ऐसे ही है जैसे पत्थर में दरार पड़ जाए और उसके दो हिस्से हो जाएं तथा इसके बाद वे दुबारा मिल नहीं सकते हैं, एक नहीं हो सकते हैं। भाव है की सतगुरु देव जी ने मुझे मोह माया के प्रति सचेत कर दिया है और मेरे मन में अब इनके लिए कोई स्थान नहीं है। यह अलगाव की दरार कुछ ऐसे ही है जैसे पत्थर के दो तुकडे हो जाए जो पुनः मिल नहीं पाते हैं। जीव सांसारिक मोह माया, नाते रिश्ते, जमीन आदि के चक्करों में पड़ा रहता है।
माया को और अधिक जोड़ने की फिराक में रहता है लेकिन वह यह भूल जाता है की यह जगत तो दो दिन का ठहराव है, स्थाई नहीं है लेकिन जीव इसे ही अपना घर मान कर माया को जीवन का उद्देश्य समझ लेता है। सतगुरु ही जीव को इस विकट परिस्थिति से बाहर निकालता है और सत्य के मार्ग की और अग्रसर करता है। माया के भ्रम जाल को तोड़ने का कार्य गुरु की शिक्षाओं से भी संभव होता है।
कबीर सब जग हंडिया, मंदिल कंधि चढ़ाइ।
हरि बिन अपनाँ को नहीं, देखे ठोकि बजाइ॥
Kabeer Sab Jag Handiya, Mandil Kandhi Chadhai.
Hari Bin Apanaan Ko Nahin, Dekhe Thoki Bajai.
यह भी देखें : -
मृदंग को गले में डालकर उसे बजाते हुए सारा संसार घूम फिर कर देखा, अब यह निष्कर्ष निकाला है की कोई भी संसार में अपना नहीं है, हरी के बिना अपना कोई नहीं है। भाव है की यह ईश्वर ही अपना है और कोई नहीं हो सकता है।
मन फाटा बाइक बुरै, मिटी सगाई साक।
जौ परि दूध तिवास का, ऊकटि हूवा आक
Man Phaata Baik Burai, Mitee Sagaee Saak.
Jau Pari Doodh Tivaas Ka, Ookati Hoova Aak
जब सतगुरु के बाण चलते हैं तो उनके असर से मोह माया के प्रति मोह भंग हो जाता है और जीव इस जगत को मिथ्या समझने लगता है। उसका मन सगे सबंधियों से विछिन्न हो जाता है जैसे बांसा दूध (तीवास-तीन दिन पुराना ) फटकर खराब हो जाता है, उकट कर खराब हो जाता है, ऐसे ही मन के फटने पर सगे सबंधियों से मन खिन्न होकर दूर हट जाता है, उनमे मोह नहीं रहता है। भाव है की सत्य के ज्ञान के उपरान्त मन सांसारिकता से रुष्ट हो जाता है और बुरे विचार दूर हटने लग जाते हैं। वस्तुतः यह तभी संभव है जब गुरु के उपदेश जीव को लग जाएं। समस्त मिथ्या और अन्धकार दूर हो जाते हैं।
चंदन भागां गुण करै, जैसे चोली पंन।
दोइ जनाँ भागां न मिलै, मुकताहल अरु मंन॥
Chandan Bhaga Gun Karai, Jaise Cholee Pann.
Doi Janaan Bhaagaan Na Milai, Mukataahal Aru Mann.
चन्दन को यदि टुकडे टुकडे भी कर दिया जाए तो भी वह गुणकारी ही रहता है वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है, वस्तुतः वह अधिक खुशबु देने लगता है जैसे की चोली का पत्ता या मंजीठा का पत्ता टूटकर भी अधिक गुणकारी हो जाता है।
पानी बिनंठा कपड़ा, कदे सुरंग न होइ।
कबीर त्याग्या ग्यान करि, कनक कामनी दोइ॥
Paasi Binantha Kapada, Kade Suraang Na Hoi.
Kabeer Tyaagya Gyaan Kari, Kanak Kaamanee Doi.
जो कपड़ा तार तार हो चूका है, जो मेल से नष्ट हो चूका है वह सुन्दर रंग ग्रहण नहीं कर सकता है। उसे रंगने पर वह कभी भी सुरंग रंग ग्रहण नहीं कर सकता है। साहेब ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए कनक और कामिनी का त्याग कर दिया है क्योंकि वे मानव जीवन का वैसे ही नाश कर देते हैं जैसे कपडे पर रंग चढ़ जाता है। इस दोहे में द्रष्टान्त अलंकार का उपयोग हुआ है। दुसरे अर्थों में विरह उत्पन्न हो जाने पर मोह माया का रंग आत्मा पर नहीं चढ़ सकता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए मोह और माया का त्याग करना आवश्यक है।
चित चेतनि मैं गरक व्हे, चेत्य न देखैं मंत।
कत कत की सालि पाड़िये, गल बल सहर अनंत॥
Chit Chetani Main Garak Hnai, Chety Na Dekhain Mant.
Kat Kat Kee Saali Paadiye, Gal Bal Sahar Anant.
चित्त की चेतना में डूबकर तुम चेतन्य को क्यों नहीं देखते हो ? ब्रह्म में लीन होकर चेतन में अनुरक्त होकर चेतन्य को क्यों नहीं पहचान पा रहे हो। संसार में अनेको वाद हैं और कई प्रकार के मत हैं तो किन किन में स्वंय को डालोगे। भाव है पूर्ण ब्रह्म के प्रति ही जीव को चित्त को लगाना चाहिए विविध वादों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
जाता है सो जाँण दे, तेरी दसा न जाइ।
खेवटिया की नाव ज्यूँ, धणों मिलैंगे आइ॥
Jaata Hai So Jaann De, Teree Dasa Na Jai.
Khevatiya Kee Naav Jyoon, Dhanon Milainge Aai.
जो कुछ जा रहा है, छुट रहा है तो उसे जाने दो, तुम इसके लिए परेशान मत होवो। नांव खिवैया की तरह से तुम्हे कई लोग आकर मिलेंगे। भाव है की तुम तुम्हारे मार्ग पर चलो और विचलित मत होवो, तुम्हे अन्य लोग अवश्य ही मिल जाएंगे तो समान विचार धारा के होंगे। जहाँ तरह तरह के वाद से लोग प्रभावित होकर ईश्वर की पूजा अर्चना करते थे उस सन्दर्भ में साहेब ने पूर्ण ब्रह्म/निराकार ब्रह्म की राह पर चलने का सन्देश दिया है। इस दोहे में उपमा अलंकार का उपयोग किया गया है।
नीर पिलावत क्या फिरै, सायर घर घर बारि।
जो त्रिषावंत होइगा, तो पीवेगा झष मारि॥
Neer Pilaavat Kya Phirai, Saayar Ghar Ghar Baari.
Jo Trishaavant Hoiga, To Peevega Jhash Maari.
साधक को भक्ति के सबंध में वाणी है की तुम घर घर जाकर लोगों को पानी पिलाने वाले की तरह भक्ति के विषय में क्यों बतला रहे हो ? जो प्यासा होगा, जिसे भक्ति रस का पान करना है वह स्वतः ही भर भर पानी का पिएगा। प्रत्येक के घट में भक्ति का रस भरा पड़ा है और उसे झख मार कर इस रस का पान करना ही पड़ेगा। भाव है की लोगों को भक्ति के विषय में बताने से कोई लाभ नहीं होने वाला है, जिसे भक्ति के विषय में जानना है, भक्ति को प्राप्त करना है वह स्वतः ही इस विषय में प्रेरित हो जाएगा। इस दोहे में सांगरूपक और अन्योक्ति अलंकार का उपयोग किया गया है।
सत गंठी कोपीन है, साध न मानै संक।
राँम अमलि माता रहै, गिणैं इंद्र कौ रंक॥
Sat Ganthee Kopeen Hai, Saadh Na Maanai Sank.
Raanm Amali Maata Rahai, Ginain Indr Kau Rank.
गाँठ लगी हुई और छिन्न भिन्न हो चुकी लंगोटी (कौपीन) वाला संत को कोई शंका नहीं रह गयी है। वह राम के नशे में मस्त रहता है जो इंद्र को भी रंग (भिखारी समझता है) भाव है की भक्ति रस का पान कर चूका व्यक्ति निर्भीक हो जाता है और वह सांसारिक उंच नीच का नहीं समझता है। भक्त के त्याग और संतोष की भावना व्याप्त है।
दावै दाझण होत है, निरदावै निरसंक।
जे नर निरदावै रहैं, ते गणै इंद्र कौ रंक॥
Daavai Daajhan Hot Hai, Niradaavai Nirasank.
Je Nar Niradaavai Rahain, Te Ganai Indr Kau Rank.
प्राणी को अपने अधिकार भावना से दग्ध होना पड़ता है। जो प्राणी किसी के प्रति अधिकार की भावना को नहीं समझता है वह इंद्र को भी भिखारी के समान समझता है। अधिकार प्रदर्शित नहीं करने वाला निशंक होता है।
नाँ कछु किया न करि सक्या, नाँ करणे जोग सरीर।
जे कुछ किया सु हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर॥
Naan Kuchh Kiya Na Kari Sakya, Naan Karane Jog Sareer.
Je Kuchh Kiya Su Hari Kiya, Taathai Bhaya Kabeer Kabeer.
इस संसार में मैंने ना तो कुछ किया है और नाहिं कुछ कर पाने में सक्षम हूँ, मैं इस स्थिति में नहीं हूँ की कुछ कर पाऊं। जो कुछ भी किया है वह राम ने ही किया है और इसके परिणाम के रूप में मैं कबीर कबीर हो गया हूँ। भाव है की व्यक्ति का सामर्थ्य नहीं है की वह कुछ कर सके यह तो ईश्वर की कृपा होने पर ही कुछ संभव हो पाता है।
कबीर किया कछू न होत है, अनकीया सब होइ।
जे किया कछु होत है, तो करता औरे कोइ॥
Kabeer Kiya Kachhoo Na Hot Hai, Anakeeya Sab Hoi.
Je Kiya Kachhu Hot Hai, To Karata Aure Koi.
प्राणी के करने से कुछ भी नहीं होता है। जो कुछ भी करता है ईश्वर ही करता है। यदि कुछ करने से ही होता तो व्यक्ति कुछ भी कर लेता लेकिन करने वाला ईश्वर ही है। उक्त दोहे में विरोधाभाष अलंकार का उपयोग हुआ है।
कबीर के विषय में : कबीर को समझने के लिए आपको आधा कबीर होना पड़ता है तब जाकर कहीं आप कबीर को छटांग समझ सकते हैं। दूसरे अर्थों में स्वंय को समझना ही कबीर को समझना है। कबीर एक पूरा जीवन शास्त्र है जिसके सफर पर निकलने में कबीर हर मोड़ पर आपको हतप्रभ करने की क्षमता रखते हैं। जितना आप इन्हे जानने का प्रयत्न करेंग वह उतना ही आपको नए प्रश्नों के साथ खड़ा करते जाएंगे। तो क्या कबीर को समझना आसान नहीं है। बहुत ही सरल है। सरलता ही कबीर का आभूषण है लेकिन सरलता को समझने के लिए आपको जिस मार्ग से गुजरना होगा वह क्या सरल है ! (कबीर पर मेरे कुछ विचार से )
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