कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग सहित Kabir Ke Dohe With Hindi Meaning
मन मथुरा दिल द्वारिका,काया कासी जाँणी।
दसवाँ द्वार देहुरा, तामें जोति पिछाँणी॥
दसवाँ द्वार देहुरा, तामें जोति पिछाँणी॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : मन में मथुरा है और दिल में द्वारिका, यह काया ही कासी है, अपने घट में (दसम द्वार) में ब्रह्म का वास है जिसे पहचानने की आवश्यकता है। ना तो ईश्वर मंदिर में है और ना ही किसी तीर्थ में, ना वह किसी कर्मकांड में है और न ही किसी दिखावे की भक्ति में, ईश्वर ना तो तप में है और नाही जप में, फिर ईश्वर है कहाँ, ईश्वर तो जीव के घट में है जिसे प्रकाशित करने के लिए अपने हृदय में हरी नाम की ज्योति जलानी पड़ती है। आचरण और व्यवहार में शुद्धता की आवश्यकता है फिर चाहे जंगल में रहे या फिर घर पर हर जगह हरी ही हरी है। माया के भरम के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न होती है जिसमे जीव ब्रह्म से विमुख है।
कबीर दुनियाँ देहुरै,सीस नवाँवण जाइ।
हिरदा भितरि हरि वसैं,तूँ ताही सौं ल्यौ लाइ॥
कबीर दुनियाँ देहुरै,सीस नवाँवण जाइ।
हिरदा भितरि हरि वसैं,तूँ ताही सौं ल्यौ लाइ॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : साहेब की वाणी है की जगत के लोग मंदिर में ईश्वर के समक्ष सीस नवाते हैं, झुकाने जाते हैं लेकिन भगवान् तो हृदय के अन्दर ही है तुम उसी से स्नेह करो। मंदिर में ईश्वर ढूँढने से आशय है की जीव स्वंय का मूल्यांकन तो करता नहीं है और बाहर कहीं सरल रस्ते से भगवान् के पास पंहुचना चाहता है, वह स्वंय माया के लुभावने कार्यों से दूर नहीं होना चाहता है और बस उसे सरल रास्ता मंदिर का ही दीखता है। साहेब ने बार बार वाणी दी है की स्वंय का मूल्यांकन करो, स्वंय के अवगुणों को पहचान कर सत्य की राह पर चलो, दया और उपकार रखो, अहम् को समाप्त करो, संत जन की संगती में रहो, माया के भ्रम को तोड़ों फिर तुम स्वंय ही ब्रह्म हो, तुम अपने हृदय में बस रहे हरी को पहचान पाओगे, अन्यथा तुम्हे निराशा ही हाथ लगेगी और अमूल्य मानव जीवन को तुम कौड़ियों के भाव में बदल कर रख दोगे।
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पग तौ पाला मै गिल्या, भाजण लागी सूल॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : दिखावे की भक्ति के लिए हाथों में माला ले रखी है और हृदय में दंदूल(माया का भरम जाल) व्याप्त है। भाव है की माया की भरम जाल से नकलना आसान नहीं है, बहुत ही मुश्किल है। यदि कोई इस जाल से निकलना चाहता है तो उसे अनेकों कष्टों का सामना करना पड़ेगा। दूसरी तरफ सांकेतिक भक्ति और दिखावे की भक्ति पर भी व्यंग्य है की लोग दूसरों को दिखाने के लिए भक्ति का चोला ओढ़ लेते हैं और उनके मन में विषय विकार भरे पड़े हैं। ऐसे में ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं हो पाती है। हृदय से जब तक भक्ति नहीं की जाती है तब तक भक्ति का कोई ओचित्य नहीं रहता है।
कर पकरै अंगूरी गिनैं , मन घायै चहुँ ओर।
जांहि फिरांया हरि मिलै ,सो भया काठ की ठौर।।
दोहे का हिंदी मीनिंग : ढोंगी भक्ति और दिखावे की भक्ति पर व्यंग्य करते हुए साहेब की वाणी है की माला फेरने से क्या लाभ होगा क्योंकि मन तो माला के मनकाओं को गिनने में व्यस्त है और मन चारों दिशाओं वे विचरण कर रहा है, जैसे माला घूम रही है वैसे ही मन भी चारों तरफ घूम रहा है, स्थिर नहीं है। जिस मन को ईश्वर की तरफ / सद्मार्ग की तरफ मोड़ने से हरी की प्राप्ति संभव है वह एक ही स्थान पर जडवत हो गया है। भाव है की माया ने अपने पाँव बड़ी मजबूती से मन में जमा रखें हैं। माया अपने भरम जाल में मन को जकड़ लेती है जिसके कारण उसे माया से दूर करना बड़ा मुश्किल है। साहेब ने वाणी दी है की संतजन की संगती और सत्यमार्ग का अनुसरण करके हम इसे माया से विमुख कर सकते हैं लेकिन इसमें बहुत ही यतन करने पड़ते हैं, यह इतना आसान भी नहीं है। जब तक हृदय से भक्ति नहीं की जाती है हरी प्राप्त होने से रहे।
माला पहरैं मनसुषी, ताथैं कछू न होइ।
मन माला कौं फेरता, जुग उजियारा सोइ॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : माला पहन कर मनुष्य भक्ति का ढोंग करता है लेकिन इससे हरी की प्राप्ति संभव नहीं होनी वाली है, हरी तो तभी प्राप्त होंगे जब मन से माला को फिराया जाय, मन से भक्ति की जाए। मन से भक्ति होने पर चारों तरफ उजाला होने लगता है। सच्ची भक्ति भी यही है की मन से वैराग्य धारण किया जाए और हरी का सुमिरण किया जाए। मनसुषी एक प्रकार की माला का नाम है मनसुषी।
कबीर माला काठ की,कहि समझावे तोहि ।
मन न फिरावे आपणा, कहा फिरावे मोहि॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : सुंदर वाणी है की साधक/भक्त को माला कह रही है की तू मुझे क्यों घुमा रहा है, यदि घुमाना ही है तो अपने मन को घुमाओ, भाव है की हृदय/मन से भक्ति करो सांकेतिक और दिखावे की भक्ति करने पर कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। दूसरों को दिखाने और मन को राजी करने के लिए यदि कोई माला का जाप करता है तो उसे हरी की प्राप्ति नहीं होने वाली है क्योंकि हरी तो उसे ही प्राप्त होंगे जो अपने मन से भक्ति करता है, जिसके आचरण में शुद्धता है और जो सत्य के मार्ग पर चलता है। मात्र माला फेरने से कुछ प्राप्त नहीं होने वाला है।
कबीर माला मन की, और संसारी भेष।
माला पहरर्या हरि मिलै , तो अरहट कै गलि देष॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : कबीर मन की माला को फेरो, लकड़ी की माला को फेरने से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है, यदि काठ की माला फेरने से ही हरी की प्राप्ति होती है तो अरहट को तो ईश्वर मिल ही जायेंगे, क्योंकि वह तो सदा ही घूमती ही रहती है। भाव है की मन से भक्ति की जानी चाहिए, सांकेतिक और दिखावे की भक्ति से कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है।
साई सेती साच चलि, औरा सू सुध भाइ।
भावे लम्बे केस करि, भावे घुरङि मुङाई॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : ईश्वर के प्रति इमानदार रहो और दूसरों के साथ भी सत्य का आचरण करो, भले ही तुम केस को लम्बा बढ़ा लो और भले ही तुम केश को मुंडा लो, हरी की प्राप्ति तभी होगी जब सत्य के मार्ग का अनुसरण होगा और दूसरों के प्रति सद्भाव होगा। धार्मिक आडम्बर करने मात्र से और कर्मकांड करने से ईश्वर की प्राप्ति कभी नहीं होने वाली है।
केसो कहा बिगाङिया,जे मूङे सो बार।
मन को काहे न मूङिये,जामै बिषय बिकार॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : बालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम इनको मुंड़ाते हो, यदि सफाई ही करवानी है तो मन की करे, इसी में ही विषय विकार हैं। सांकेतिक रूप से लोगों को दिखाने के लिए की गई भक्ति का कोई लाभ नहीं होने वाला है, यह मन राजी करने के लिए हो सकती है लेकिन ऐसा करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी, यह सत्य है। मन को मुंडने से आशय है की मन में जो विषय विकार हैं, अहम् है, उन्हें दूर करना ही पड़ेगा।
मूंड मूडावत दिन गए, अजहू न मिलिया राम।
रांम नांम कहु क्या करै, जे मन के औरे काम॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : बालों को कटाते हुए उम्र सारी निकल गई लेकिन राम (ब्रह्म) की प्राप्ति नहीं हुई, राम नाम का उच्चारण क्या कर सकता है जब मन कहीं और ही लगा हुआ है। मन से भक्ति करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होगी, तीर्थ करने बाल कटाने, माला फेरने से हरी की प्राप्ति संभव नहीं है।
स्वांग पहरि सो रहा ,खाया पीया षूंदि।
जिहि सेरी साधू नीकले,सा तौ मेल्ही मूंदि॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : माया के चक्कर में फंस कर जीव खाता पीता है और नाना प्रकार के वस्त्रों को धारण करके प्रसन्न होता है लेकिन जिस मार्ग से साधुओं का गमन होता है वह तुमने अपने लिए बंद कर लिया है ।
तनकौ जोगी सब करे, मनकों बिरला कोइ ।
सब बिधि सहजैं पाइए,जेमन जोगी होइ॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : लोग तन से वैराग्य धारण करते हैं, जैसे भगवा पहन लेते हैं, टोपी माला और तिलक लगा लेते हैं लेकिन मन कोई बिरला ही जोगी करता है, यदि मन में वैराग्य आ जाए तो सहज ही हरी मिल जाते हैं। मन के जोगी होने से भाव है की विभिनं विषय वासनाओं का त्याग करना।
कबीर यहुतौ एक हैं, पङदा दीया भेष।
भरम करम सब दूरि कर, सब ही माँहि अलेख॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : कबीर साहेब की वाणी है की आत्मा और यह तन एक ही हैं लेकिन इनमे भेद हो गया है, यदि भ्रम को दूर कर लिया जाए तो सभी को स्वंय में ब्रह्म की प्राप्ति हो सकती है।
भरम न भागा जीय का, अनन्तहि धरिया भेष।
सत गुरु परचै बाहिरा, अंतरि रहया अलेष॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : जीव का भरम कभी शांत नहीं हुआ, यदिपी उसने अनेकों जनम ले लिए हैं, अनेको योनियों में जनम ले लिया है और कई प्रकार के भेष धारण कर लिया है, सतगुरु के आशीर्वाद के अंदर के ब्रह्म की पहचान संभव नहीं है।
जगत जहदम राचिया, जूठी कुल की लाज।
तन बिनसें कुम बिनसि हैं, गहयौं न राम जिहाज॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : मिथ्या प्रतिष्ठा और झूठी जगत की लाज के कारण जीव आडम्बर रचता है और ऐसे ही करते हुए एक रोज यह तन और जगत समाप्त हो जाना है, जीव क्यों नहीं राम नाम के जहाज जी सुध लेता है, जो एक रोज उसे पार लेकर जा सकता है। राम नाम की नौका ही जीव को भव सागर से पार लगा सकती है।
चतुराई हरि नाँ मिलै, ए बातां की बात।
एक निसप्रेही निरधार का। गाहक गोपी नाथ।।
दोहे का हिंदी मीनिंग : हरी किसी चतुराई से प्राप्त नहीं होने वाले हैं, यह एक सत्य है। जो जीव निष्पक्ष और निराधार होकर, सहज भाव से ईश्वर का सुमिरण करता है उसे हरी बड़ी ही आसानी से मिल जाते हैं। यह बात बहुत गूढ़ है। ज्यादातर व्यक्ति बाह्य प्रयत्नों और कर्मकांडो से नहीं अपितु बहुत ही सहज भाव से आचरण की शुद्धता से होता है।
नवसत साजे कामनी, तन मन रही सॅजोइ।
पीव कै मनि भावै नही,पटम कीयें क्या होई।।
दोहे का हिंदी मीनिंग : यदि कोई स्त्री सोलह श्रृंगार करके अपने तन को सजाती है और यदि वह अपने पिया को ही पसंद नहीं आती है, तो उसकी सजने धजने का क्या लाभ है ? कुछ भी नहीं । ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए अपने हृदय की तल्लीनता और सहज भाव बहुत ही जरुरी है।
जब लग पीव परचा नहीं,कन्या कँवारी जांणिं।
हथलेवा हौसैं लिया, मुसकलि पड़ी पिछांणिं।।
दोहे का हिंदी मीनिंग : जब तक जीव का कन्या का (जीव का ) ईश्वर से परिचय नहीं होता है तब तक कन्या (जीव) कुँवारी ही दिखाई देती है और ऐसे में जब हथलेवा आ जाता है तब बहुत ही मुश्किल होती है।
कबीर हरि की भगति का, मन में परा उल्हास।
मैं वासा भाजै नहीं ,हूँण मतै निज दास॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : हृदय में हरी की भक्ति का बहुत ही उल्लास भरा हुआ है मन में तो वासनाओं का चोर निवास करता है जो भगाने पर भी भागता नहीं है, ऐसे में उसके नष्ट होने पर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव होती है।
मैंवासा मोई किया, दुरिजन काढ़ै दूरि।
राज पियारे रामका, नगर वस्या भरि पूरि॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : अहंकार रूपी चोरों को मार दिया है और दुर्जनों को दूर कर दिया है, अब ऐसे में राम नगर पूर्ण रूप से बसता है।
निरमल बूँद आकास की, पड़ गई भोमि बिकार।
मूल बिनंठा मांनवि, बिन संगति भठछार॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : मानव आत्मा, एक बूंद की तरह से है जो आकास से गिरी है, आकाश में जब तक यह बूंद थी तब तक यह शुद्ध थी लेकिन यह इस धरती पर आकर विकृत हो गई है, दोषमय हो गई है। यदि कोई सतसंगत में नहीं जाता है तो उसकी अवस्था ऐसे हो जाती है जैसे भट्ठे की राख, वह भट्टे की राख की भाँती नष्ट हो जाती है।
ऊँचै कुल क्या जनमियां,जे करणीं ऊँच न होइ।
सोवन कलस सुरै भरया , साधू निंदा सोइ॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : ऊँचे कुल में जनम लेने से कोई उच्च नहीं बन जाता है, जैसे यदि शराब सोने के कलश में भरी हुई है तो सोने के कलश का महत्त्व समाप्त हो जाता है, ऐसे ही यदि साधुजन किसी अवगुण में लिप्त हो जाता है तो वह निंदा का पात्र बनता है। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है, इसमें उसकी जाती और कुल का कोई महत्त्व नहीं रहता है। कोई किसी भी जाती और कुल से सबंध रखता हो यदि उसके कर्म महान है तो आदर के काबिल है और यदि उसके कर्म खराब है तो जाती और कुल के कारण वह अच्छा नहीं बनता है।
देखा देखी पाकड़े, जाइ अपरचै छूटि।
विरला कोई ठाहरै, सतगुर साँमी मूठी॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : सतगुरु साधक को ठीक मार्ग को बताते हैं, और देखा देखी के कारण लोग भ्रमित हो जाते हैं, कोई बिरला व्यक्ति ही सतगुरु की कृपा से इस भ्रम से बच पाता है।
देखा देखी भगति है , कदे न चढ़ई रंग।
विपति पड़याँ यूँ छाड़सी, ज्यूँ कंचुली भवंग॥
दोहे का हिंदी मीनिंग : इस संसार में देखा देखी की भक्ति की जाती है, लोग एक दुसरे की देखा देखी किसी मार्ग का अनुसरण कर तो लेते हैं लेकिन वे उस पर टिक नहीं पाते हैं, उसमे स्थिरता नहीं बनी रह पाती है। कोई विपत्ति/बाधा पड़ने पर वह व्यक्ति उस मार्ग को ऐसे ही छोड़ देता है जैसे सांप केंचुली को छोड़ देता है। भाव है की ऐसा मार्ग जो लोग एक दुसरे को देख कर चुनते हैं उसमे स्थायीत्व नहीं बन पाता है।
करिए तौ करि, जांणिये सारीषा सूं संग।
लीर लीर लोई थई, तऊ न छाड़ै रंग।।
दोहे का हिंदी मीनिंग : सद्गुरु की संगती ही करनी चाहिए, अपने समान विचारों (उच्च) के साथ ही संगत करनी चाहिए, लोई को यदि चीर चीर करके देखा जाए तो भी उसका रंग नहीं जाता है और ऐसे ही संतजन कभी भी अपनी भक्ति को नहीं छोड़ता है, यही सच्चे भक्त की पहचान होती है की वह अपनी भक्ति को कभी भी नहीं छोड़ता है, सदा भक्ति मार्ग पर ही आगे बढ़ता रहता है।
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Author - Saroj Jangir
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