काबा फिर कासी भया राम भया रहीम हिंदी मीनिंग Kabir Phir Kasi Bhaya Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/ Bhavarth Sahit
काबा फिर कासी भया, राम भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठ कबीर जीम॥
Kaba Phir Kashi Bhaya Ram Bhaya Rahim,
Mot Chun Maida Bhaya, BaithKabir Jeem.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
जब इश्वर को पहचान लिया गया है तो काबा और काशी एक ही हो गए हैं। राम रहीम में तब्दील हो गया है। यह साम्प्रदायिक सद्भावना ही है की किसी में कोई भेद नहीं रह गया है। जो मोटा अनाज था वह अब महीन आटे में बदल गया है। कबीर साहेब बैठकर जीम रहे हैं। आशय है की कबीर साहेब सूक्ष्म रूप से भक्ति को प्राप्त कर रहे हैं। इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि काबा और काशी दोनों ही हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लिए पवित्र स्थान हैं। लेकिन कबीर जी के लिए ये दोनों स्थान एक हो गए हैं। क्योंकि उन्होंने दोनों धर्मों के बीच की भेदभाव की दीवार को तोड़ दिया है। काबा और काशी का भेद तभी तक था जब तक अज्ञान था, जब ज्ञान का उदय हुआ तब समस्त भेद समाप्त हो गए हैं। अब हिन्दू मुस्लिम का भेद समाप्त हो गया है। मोटा आटा तभी तक था जब तक अज्ञान था, ज्ञान प्राप्त होने के बाद समस्त भेद समाप्त हो गए हैं, भले ही वह धर्म का हो या उंच नीच, काले गोरे का हो. मोटा अनाज अब मैदे में बदल चूका है और साधक उसका लुफ्त उठा रहा है।