इस भजन का मूल सन्देश यह है कि गुरु के मार्गदर्शन से हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। भक्त अपने गुरु के आगमन की खुशी व्यक्त करती है। वह कहती है कि उसके गुरु के आगमन से उसकी आत्मा शुद्ध हो गई है और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई है। वह अपने गुरु के चरणों में अपना सिर झुकाएगी और उनकी महिमा गाएगी। वह कहती है कि उसका गुरु उसे मोक्ष की ओर ले जाएगा।
इस भजन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें गुरु के मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए। गुरु हमें जीवन में सही रास्ता दिखा सकते हैं और हमें मोक्ष की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं।
इस भजन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें गुरु के मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए। गुरु हमें जीवन में सही रास्ता दिखा सकते हैं और हमें मोक्ष की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं।
मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे Main Vari Jau Re Balihari Bhajan Main Wari Jaau Re Balihari Jaau Re
मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे,
मारे सतगुरु आंगड़ आया,
मैं वारी जाऊं रे।
सतगुरु आंगड़ आया,
हे गंगा गोमती लाया रे,
मारी निर्मल हो गयी काया,
मैं वारी जाऊं रे।
सब सखी मिलकर हालो,
केसर तिलक लगावो रे,
घड़ी हेत सूं लेवो बधाई,
मैं वारी जाऊं रे।
सतगुरु दर्शन दीन्हा,
भाग उदय कर दीन्हा रे,
मेरा भरम वरम सब छीना,
मैं वारी जाऊं रे।
सत्संगी बन गयी भारी,
मंगला गाऊं चारी रे,
मेरी खुली ह्रदय की ताली,
मैं वारी जाऊं रे।
दास नारायण जस गायो,
चरणों में सीस नवायों रे,
मेरा सतगुरु पार उतारे,
मैं वारी जाऊं रे।
मारे सतगुरु आंगड़ आया,
मैं वारी जाऊं रे।
सतगुरु आंगड़ आया,
हे गंगा गोमती लाया रे,
मारी निर्मल हो गयी काया,
मैं वारी जाऊं रे।
सब सखी मिलकर हालो,
केसर तिलक लगावो रे,
घड़ी हेत सूं लेवो बधाई,
मैं वारी जाऊं रे।
सतगुरु दर्शन दीन्हा,
भाग उदय कर दीन्हा रे,
मेरा भरम वरम सब छीना,
मैं वारी जाऊं रे।
सत्संगी बन गयी भारी,
मंगला गाऊं चारी रे,
मेरी खुली ह्रदय की ताली,
मैं वारी जाऊं रे।
दास नारायण जस गायो,
चरणों में सीस नवायों रे,
मेरा सतगुरु पार उतारे,
मैं वारी जाऊं रे।
Prahlad Singh Tipaniya is a well-known folk singer from Madhya Pradesh, India. He is known for his rendition of traditional Rajasthani folk songs, known as "Kamawali" and "Phad". He has been performing for more than four decades and has been recognized for his contribution to the preservation of traditional Indian folk music. His songs are known for their simple yet profound lyrics and melodious tunes, and are deeply rooted in the cultural and social heritage of India.
- कबीर का मानना था कि भजन ईश्वर से जुड़ने और ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम व्यक्त करने का एक शक्तिशाली साधन है।
- उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भजनों का असली उद्देश्य दूसरों का मनोरंजन करना या उन्हें प्रभावित करना नहीं है, बल्कि ईश्वर के साथ गहरे स्तर पर जुड़ना और ईश्वर के साथ मिलन के आनंद का अनुभव करना है।
- कबीर का मानना था कि सबसे प्रभावी भजन वे हैं जो दिल से आते हैं और पूरी श्रद्धा और ईश्वर के प्रति समर्पण के साथ गाए जाते हैं।
- उन्होंने भजनों में सरल और सुलभ भाषा के उपयोग के महत्व पर जोर दिया, ताकि हर कोई गीत के संदेश को समझ सके और उससे खुद को जोड़ सके।
- कबीर का मानना था कि भजनों का उपयोग सांप्रदायिक या विभाजनकारी विचारों को प्रचारित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सार्वभौमिक सत्य को व्यक्त करने के लिए किया जाना चाहिए जो सभी लोगों के लिए उनकी पृष्ठभूमि या मान्यताओं की परवाह किए बिना प्रासंगिक हैं।
- उन्होंने भजन गायन में ईमानदारी, विनम्रता और निस्वार्थता के महत्व पर भी जोर दिया, क्योंकि ये गुण भगवान के साथ एक शुद्ध और शक्तिशाली संबंध बनाने में मदद करते हैं।
- कबीर का मानना था कि भजनों का अंतिम लक्ष्य अहंकार को भंग करना और परमात्मा के साथ विलय करना है, और उन्होंने सिखाया कि यह सच्ची भक्ति, निस्वार्थ सेवा और ईश्वर में अटूट विश्वास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे,
मारे सतगुरु आंगड़ आया,
मैं वारी जाऊं रे।
Me Wari Jaaun Re Balihari Jaaun Re में वारी जाउ रे बलिहारी जाउ रे By Tarasingh Dodve (Dr. Sahab)
"मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे, मारे सतगुरु आंगड़ आया, मैं वारी जाऊं रे।" - भक्त अपने गुरु के आगमन की खुशी में उत्साहित है। वह कहती है कि वह अपने गुरु को देखने के लिए उत्सुक है।
"सतगुरु आंगड़ आया, हे गंगा गोमती लाया रे, मारी निर्मल हो गयी काया, मैं वारी जाऊं रे।" - भक्त कहती है कि उसके गुरु के आगमन से उसकी आत्मा शुद्ध हो गई है। वह कहती है कि वह अब गंगा और गोमती के पवित्र जल से भी अधिक निर्मल हो गई है।
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"सतगुरु आंगड़ आया, हे गंगा गोमती लाया रे, मारी निर्मल हो गयी काया, मैं वारी जाऊं रे।" - भक्त कहती है कि उसके गुरु के आगमन से उसकी आत्मा शुद्ध हो गई है। वह कहती है कि वह अब गंगा और गोमती के पवित्र जल से भी अधिक निर्मल हो गई है।
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Author - Saroj Jangir
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