कबीर कहते हैं कि ईश्वर ही मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाते हैं। बिना ईश्वर के मनुष्य का जीवन शांतिपूर्ण नहीं हो सकता है। वह इस संसार में एक पिंजरे में बंद है, जिससे केवल ईश्वर ही उसे मुक्त कर सकते हैं। ईश्वर ही मनुष्य के गुरु हैं, जो उसे ईश्वर के दर्शन करा सकते हैं। कबीर की शिक्षा है कि हमें ईश्वर को अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान देना चाहिए। हमें ईश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। तभी हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
राम बिनु तन को ताप न जाई जानिये अर्थ
राम बिनु तन को ताप न जाई, जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम जलनिधि मैं जलकर मीना। जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥ तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा। दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
Kabir Bhajan Lyrics in Hindi
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला। कहै कबीर राम रमूं अकेला॥ राम बिनु तन को ताप न जाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई जल में अगन रही अधिकाई॥
अनुश्री मिश्रा: राम बिनु तन को ताप न जाई [Anushri Mishra]
कबीर के इस पद का अर्थ है कि ईश्वर के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है। ईश्वर ही मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाते हैं। पहले दोहे में कबीर कहते हैं कि ईश्वर के बिना मनुष्य के शरीर को शांति नहीं मिलती है। जैसे आग में जलने वाला मछली जल में ही जी सकता है, वैसे ही मनुष्य ईश्वर के बिना जीवन जी नहीं सकता है। दूसरे दोहे में कबीर कहते हैं कि मनुष्य इस संसार में एक पिंजरे में बंद है। ईश्वर ही उसे इस पिंजरे से मुक्त कर सकते हैं। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं