गुरु शरणगति छाड़ि के करै भरोसा मीनिंग
गुरु शरणगति छाड़ि के करै भरोसा और।
सुख सम्पत्ति को कह चली, नहीं नरक में ठौर।।
Guru Sharanagati Chhaadi Ke Karai Bharosa Aur.
Sukh Sampatti Ko Kah Chalee, Nahin Narak Mein Thaur.
गुरु शरणगति छाड़ि के दोहे का शब्दार्थ
गुरु-गुरु.
शरणगति- शरण में जाना
छाड़ि के- छोड़ करके (गुरु की शरण को छोड़कर के )
करै- गमन करता है.
भरोसा और-अन्य किसी की आस करना/चाहना.
सुख सम्पत्ति-वैभव.
को कह चली-दूर चली जाती है.
नरक में ठौर-नरक में भी ठिकाना (ठौर) नहीं मिलता है.
गुरु शरणगति छाड़ि के दोहे का हिंदी मीनिंग
जो साधक गुरु के सानिध्य को त्याग देता है और सांसारिक विषय वासनाओं में व्याप्त होकर अन्य माध्यमों का सहारा लेकर मुक्ति की राह ढूंढता है, उसे सुख संपत्ति भी नहीं मिलती और नाही उसे नरक में जगह ही मिल पाती है। इस दोहे में गुरु के सानिध्य को प्रमुख बताया गया है और कहा गया की गुरु की शरण में जाने से ही मुक्ति सम्भव है।
गुरु कुम्हार शिष कुभ है, गढि गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।
गुरु अपने शिष्य को कुम्हार की तरह से गढ़ता है। चुन चुन कर उसके खोट को दूर करता है और जैसे कुम्हार बाहर से तो चोट पहुंचाता है और अंदर से एक हाथ से घड़े को सहारा देता है, ऐसे ही गुरु भी शिष्य को आत्मिक रूप से सहारा देकर बाहर से कठोर होकर शिष्य के अवगुणों को दूर करता है।