बछ बारस की व्रत कथा जानिए बछबारस व्रत का महत्व Bachh Baras Ki Vrat Katha Mahatv PDF

बछ बारस की व्रत कथा जानिए बछबारस व्रत का महत्व Bachh Baras Ki Vrat Katha Mahatv PDF

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछबारस का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से पुत्र को सुख, समृद्धि और संपन्नता का वरदान मिलता है। महिलाएं अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए बछबारस का व्रत करती हैं। बछ बारस के दिन व्रत रखकर गाय के बछड़े की पूजा की जाती है इसीलिए इसे बछ बारस कहा जाता है।

बछ बारस की व्रत कथा जानिए बछबारस व्रत का महत्व Bachh Baras Ki Vrat Katha Mhatv PDF

बछबारस की कथा Bachh Baras Ki Vrat Katha

बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार के सात पुत्र थे। साहूकार के सभी पुत्रों के भी पुत्र थे। साहूकार ने गांव के विकास के लिए बरसात का पानी इकट्ठा करने के लिए एक बहुत बड़ा तालाब बनवाया था। लेकिन बहुत से वर्ष बीतने के पश्चात भी उस तालाब में पानी नहीं भरा था।
किसी वृद्ध व्यक्ति ने साहूकार से कहा कि आप जाकर किसी पंडित से पूछिए कि इस तालाब में बरसात का पानी क्यों नहीं भरता है। तो साहूकार ने एक पंडित को बुलाकर अपनी समस्या बताई। तो पंडित जी ने बताया की साहूकार जी या तो आप अपने बड़े बेटे या फिर बड़े पोते की बली देंगे तभी यह तालाब पानी से भरेगा।
यह सोचकर साहूकार को बहुत ही दुख हुआ। लेकिन मजबूरी में साहूकार ने अपने बड़े पोते की बलि देने के लिए अपने मन को मना लिया। उसने अपनी बड़ी बहू को उसके पीहर भेज दिया और अपने बड़े पोते की बलि दे दी।

साहूकार द्वारा बड़े पोते की बलि देने के पश्चात गांव में बहुत भारी बरसात हुई और तालाब पानी से पूरा लबालब भर गया। जब भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की  द्वादशी तिथि आई तो सभी गांव वालों ने बछबारस के दिन तालाब की पूजा करने की मंशा जाहिर की। साहूकार ने सहर्ष अनुमति दी तथा सभी गांव वाले तालाब की पूजा करने के लिए तालाब के पास चले जाते हैं। जब सारे गांव वाले व्यक्ति तालाब के पास जाने लगे तब साहूकार ने अपनी नौकरानी को कहा कि तुम गेहूंला अर्थात गेहूं को पका लेना और धानुला अथार्त धान को ऊछेड़ देना।
साहूकार के घर पर एक गाय और उसका बछड़ा था। गाय के बछड़े का नाम गेहूंला था। नौकरानी को लगा की साहूकार ने गेहूंला अर्थात बछड़े को पकाने के बारे में ही कहा है। इसलिए उसने बछड़े को काटकर पका लिया।

काफी वर्षों पश्चात तालाब पानी से भरा था इसलिए साहूकार ने तालाब में पानी भरने की खुशी में बहुत बड़ा हवन तथा पूजन का आयोजन किया। साहूकार का बड़ा बेटा और बड़ी बहू भी पीहर से तालाब की पूजा करने आ गए थे।
तालाब की पूजा करने के पश्चात सभी बच्चों की भी पूजा शुरू की गई। जब बच्चों की पूजा की जा रही थी तभी साहूकार के बड़े पोते की जिसकी साहूकार ने बलि दी थी वह भी गोबर और मिट्टी में लिपटा हुआ तालाब में से बाहर आया। बली दिए हुए पोते को देखकर साहूकार और साहूकारनी अचंभित रह गये । तब बड़े पोते ने कहा कि मेरी भी पूजा करो।

यह सब देखकर साहूकार और साहूकार ने बहुत खुश हुए। लेकिन उनकी बड़ी बहू उन्हें आश्चर्य से देखने लगी। तब सास ने बहु को बलि देने वाली बात बता दी और साथ में यह भी बताया कि बछ बारस माता ने अपना सत दिखाया है तथा बछबारस माता ने ही मेरे पोते को वापस नया जीवन दिया है।

बछबारस माता का आशीर्वाद पाकर सभी व्यक्ति बहुत ही खुश थे। सभी तालाब की पूजा करने करके खुशी-खुशी घर आ गए। घर जाकर साहूकार ने गाय के बछड़े की पूजा करने के लिए नौकरानी को आवाज़ लगाई और कहा जाओ गाय के बछड़े अर्थात गेहूंला को लेकर आओ। हम सब उसकी पूजा करेंगे। क्योंकि बछ बारस माता ने हमारे पोते को नया जीवन दिया है।

साहूकार की बात सुनकर नौकरानी दुविधा में पड़ गई उसने कहा कि आप तो कह कर गए थे कि गेहूंला को पकाना है तो मैंने उसे काट कर पका लिया है।
नौकरानी की बात सुनकर साहूकार को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा हे भगवान एक पाप तो मैंने पहले अपने बड़े पोते की बलि देकर किया था और दूसरा पाप इस नौकरानी ने गाय के बछड़े को पका कर लिया है। अब दूसरे पाप का प्रायश्चित कैसे करूं। उसने नौकरानी को बहुत डांटा। साहूकार ने पके हुए बछड़े को मिट्टी में गाड़ दिया और दुखी होकर वहीं पर सो गया।

सूर्यास्त के समय जब गाय खेतों से चरकर वापस आई और उसने अपने बछड़े को घर में नहीं पाया तो वह अपने बछड़े को इधर-उधर ढूंढने लगी। पर गाय को बछड़ा नहीं मिला। थोड़े समय पश्चात गाय उसी जगह जाकर खड़ी हो गई जहां साहूकार ने उसे बछड़े को मिट्टी में दबाया था। गाय उस मिट्टी को खोदने लगी। थोड़ी देर खोदने के पश्चात बछड़ा मिट्टी और गोबर में से लिपटा हुआ बाहर निकल आया। साहूकार तो बेसूध पड़ा था। जब लोगों ने देखा की गाय का बछड़ा जिंदा हो गया है। तो सभी लोगों ने साहूकार को बताया कि तुम्हारा बछड़ा वापस आ गया है। देखो वह गाय का दूध पी रहा है। जब साहूकार ने यह सब देखा तो वह बहुत खुश हुआ।
साहूकार ने पूरे गांव में कहलवा दिया कि सभी महिलाओं को, पुत्र की माताओं को बछबारस का व्रत करना है तथा गाय के बछड़े की पूजा करनी है।

हे बछबारस माता जैसे साहूकार, साहूकारनी, उसके बड़े बेटे और बहू को अपना आशीर्वाद दिया वैसा ही हमें भी देना। अपना आशीर्वाद सभी पर बनाए रखना। कहानी सुनने वालों को, कहानी कहने वालों को, उनके परिवार वालों को सभी को अपना आशीर्वाद देना।

बछ बारस की कथा क्यों की जाती है? Why is the story of Bach Baras narrated?

बछबारस की कथा संतान की प्राप्ति के लिए की जाती है। यह संतान के जीवन में सुख, समृद्धि, संपन्नता तथा मंगल कामना प्राप्त करने के लिए की जाती है।

बछबारस के दिन क्या-क्या खा सकते हैं? What can we eat on Bachbaras?

बछ बारस के दिन गाय की और गाय के बछड़े की पूजा की जाती है इसलिए इस दिन गाय के दूध, दही का सेवन नहीं किया जाता है। इसके अलावा गेहूं और चावल खाना भी वर्जित है। इस दिन द्विदलीय अनाज का उपयोग किया जा सकता है।

बछबारस की पूजा कब की जाती है? When is Bachbaras worshipped?

बछबारस की पूजा भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को की जाती है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए एवं जिन महिलाओं को संतान नहीं होती है वह पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।

बछबारस क्यों मनाई जाती है? Why is Bachbaras celebrated?

हिंदू धर्म के अनुसार पौराणिक काल में मां यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गाय माता तथा बछड़े की पूजा की थी। हिंदू धर्म में माना जाता है कि गाय तथा बछड़े की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि, संपन्नता एवं खुशहाली बनी रहती है।
 

बछ बारस से सम्बंधित महत्पूर्ण बातें जो हैं रोचक

  • बछ बारस या गोवत्स द्वादशी का व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।  
  • बछ बारस का व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर रखा जाता है। 
  • बछ बारस व्रत के दिन गेहूं, चावल और दूध से बने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • बछ बारस के दिवस पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। 
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