सत्यनारायण भगवान व्रत कथा Satyanarayan Bhagwan Ki Vrat Kahani
एक बार एक गांव में एक दादी अपनी
पोती के साथ रहती थी। दादी हमेशा सत्य भगवान की कहानी सुनती थी। कहानी
सुनते समय दादी एक कलश में जल भरती तथा कुछ फूल रखकर कहानी सुनती थी।
कहानी सुनाने के पश्चात वह सत्य भगवान का नाम लेकर अर्ग देती थी। जब पोती बड़ी हो गई तो दादी ने पोती की शादी कर दी।
शादी संपन्न होने के बाद जब पोती ससुराल जाने लगी तो दादी ने एक कलश में जल भरा और कुछ फूल रख कर उसे अपनी पोती को दे दिया। दादी
ने कहा की चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन कहानी के नियम हमेशा याद रखना। सत्य
भगवान की कहानी हमेशा सुनना तथा कहानी सुनाने के पश्चात अर्ग देना। पोती
अपने ससुराल के लिए रवाना हो गई। उसने रास्ते में सोचा कि मुझे तो दहेज के
नाम पर कुछ भी नहीं दिया है। ससुराल वालों ने पूछा तो मैं क्या कहूंगी।
यह
सोचती हुई वो अपने ससुराल जा रही थी। सत्य भगवान ने सोचा कि उनके भक्त
दुविधा में हैं। यह दादी पोती हमेशा नियम से व्रत करते हैं तथा अर्ग देते
हैं। तो इनको इनकी पूजा का फल अवश्य देना चाहिए। जब
रास्ते में लड़की ने कहानी सुनी और अर्ग देने लगी तब उसने सूर्य भगवान को
उसको आशीर्वाद दिया। वहां हीरे मोतियों के गहनों का ढ़ेर लग गया। पोती बहुत खुश हुई और सत्य भगवान को धन्यवाद दिया। पोती ने सारे गहने पहने और बहुत खुश हुई।
जब
पोती ससुराल पहुंची तो ससुर जी ने सास से कहा की बहु बहुत बड़े घर की है।
बहुत धन लेकर आई है और खूब सोने, चांदी, हीरे जवाहरात के गहने पहने हुए
है। आप पड़ोस से चावल और मूंग लेकर आओ और बहू के लिए
खाना बनाओ। जब सास खाना बनाने लगी तो बहू ने कहा कि मांजी खाना आप मेरे
कलश के पानी से बनाना।
सांस ने जब कलश के पानी को
पतीले में डाला तो पतीला तरह-तरह के पकवानों से भर गया। तरह-तरह के पकवानों
की खुशबू चारों तरफ फैल गई। तब सास ने कहा की बहू खाना खा लो।
बहू
ने कहा नहीं मां जी पहले ससुर जी को खाना खिलाइये ,फिर आप खाना खा लीजिए
और अपने बेटे को भी खाना खिला दीजिए। मैं सबसे पहले खाना कैसे खा सकती हूं। मैं
अभी सत्य भगवान की कहानी सुनूंगी और सत्य भगवान को अर्ग दुंगी। यही मेरा
नियम है। इसके पश्चात ही मैं भोजन ग्रहण करूंगी। यह सुनकर बहू के साथ सभी
ससुराल वालों ने कहानी सुनी। सभी ने कहानी सुनकर सत्य
भगवान को अर्ग दिया। उसी दिन से उनके घर में धन-धान्य की बरसात हो गई और
घर में चारों तरफ समृद्धि का वास हो गया।
सास
भगवान सत्य भगवान का आशीर्वाद पाकर बहुत खुश थी। खुशी-खुशी वह पूरे गांव
में सत्य भगवान का प्रसाद बांट रही थी। तो पड़ोसन ने कहा कि अभी-अभी तो
मूंग और चावल उधार लेकर गई थी। इतनी सी देर में इतना धन कहां से आ गया। तब
सास ने कहा कि मेरी बहू सत्य भगवान की कहानी सुनती है और सत्य भगवान ने ही
हमें यह वरदान दिया है। हे सत्य भगवान जैसा साहूकार
की बहू को दिया सभी को देना। सबके परिवार को देना, कहानी कहने वालों को,
कहानी सुनने वालों और उनके परिवार वालों पर अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखना।
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का दूसरा अध्याय
एक समय की बात है, देवर्षि नारदजी, जो हमेशा दूसरों के भले की कामना में लगे रहते थे, अनेक लोकों में भ्रमण करते हुए मृत्यु लोक में पहुंचे। यहां उन्होंने देखा कि सभी मनुष्य, जो विभिन्न योनियों में जन्मे थे, अपने कर्मों के कारण दुखों से पीड़ित हैं। उन्हें देखकर नारदजी सोचने लगे कि ऐसा कौन-सा उपाय किया जाए जिससे मानव के दुखों का अंत हो सके। इस विचार के साथ वे विष्णुलोक पहुंचे और भगवान नारायण की स्तुति करने लगे, जो शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए थे, और जिनके गले में वरमाला थी।
नारदजी ने स्तुति करते हुए कहा, "हे भगवान! आप अनंत शक्ति संपन्न हैं, आपका स्वरूप वाणी और मन की सीमा से परे है। आपको मेरा प्रणाम है, आप भक्तों के दुखों को हरने वाले हैं।" नारदजी की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु बोले, "हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या विचार है? आप किस उद्देश्य से आए हैं? निःसंकोच कहें।"
नारदजी ने उत्तर दिया, "हे प्रभु! मैंने मृत्यु लोक में लोगों को कर्मों के कारण दुखी देखा है। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे लोग थोड़े से प्रयास में अपने दुखों से छुटकारा पा सकें।" भगवान विष्णु बोले, "हे नारद! मनुष्यों के कल्याण के लिए तुमने सही प्रश्न किया है। एक व्रत है, जो स्वर्ग और मृत्यु लोक में दुर्लभ और अत्यंत पुण्यदायी है। इस व्रत का नाम सत्यनारायण व्रत है। जो भी इसका विधिपूर्वक पालन करता है, वह संसार में सुख भोगता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।"
भगवान के वचनों को सुनकर नारदजी ने पूछा, "हे प्रभु! इस व्रत का विधान क्या है? इसका फल क्या है और किसने इसे किया है? कृपया विस्तार से बताएं।" भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "यह व्रत सभी दुखों का नाश करने वाला है। इसे शाम के समय भक्ति और श्रद्धा के साथ ब्राह्मणों और परिजनों के साथ करना चाहिए। भगवान सत्यनारायण को केले, घी, दूध और गेहूं के आटे से बना प्रसाद अर्पित करें। तत्पश्चात ब्राह्मणों और परिजनों को भोजन कराएं और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें। इस तरह जो भी यह व्रत करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। कलियुग में यह व्रत अत्यंत सरल और प्रभावी माना गया है।"
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय समाप्त ॥
एक बार काशी नगरी में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख-प्यास से परेशान, वह ब्राह्मण भिक्षा के लिए घूमता रहता था। एक दिन भगवान सत्यनारायण ने वृद्ध ब्राह्मण का रूप लेकर उसके पास जाकर पूछा, "हे ब्राह्मण! तुम क्यों इतने दुखी हो?" ब्राह्मण ने कहा, "हे प्रभु! मैं अत्यंत निर्धन हूँ और भिक्षा के लिए भटकता हूँ। कृपया मुझे कोई उपाय बताइए।" वृद्ध ब्राह्मण ने उसे सत्यनारायण व्रत का विधान समझाया और अंतर्धान हो गए। निर्धन ब्राह्मण ने व्रत करने का संकल्प लिया और भिक्षा के लिए निकला। उस दिन उसे आशा से अधिक भिक्षा मिली, जिससे उसने सत्यनारायण व्रत संपन्न किया। इसके बाद उसका जीवन बदल गया, और वह सुख, समृद्धि और संपत्ति से संपन्न हो गया।
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का दूसरा अध्याय समाप्त ॥
एक समय एक साधु नामक वैश्य ने भी सत्यनारायण व्रत का संकल्प किया था। उसके पास संतान नहीं थी, और उसने व्रत के प्रभाव से पुत्र प्राप्ति की कामना की। व्रत करने के बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम कलावती रखा गया। परंतु उसने व्रत का संकल्प पूरा नहीं किया था। इसी कारण भगवान नारायण ने उस पर कुपित होकर कठिनाईयों का सामना करने का श्राप दिया।
इस कथा के अनुसार, सत्यनारायण व्रत हर उस व्यक्ति के लिए कल्याणकारी है जो श्रद्धा और भक्ति से इसे करता है। जो भी यह व्रत करता है, वह जीवन के कष्टों से मुक्त हो जाता है और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का तृतीय अध्याय समाप्त ॥
नारदजी ने स्तुति करते हुए कहा, "हे भगवान! आप अनंत शक्ति संपन्न हैं, आपका स्वरूप वाणी और मन की सीमा से परे है। आपको मेरा प्रणाम है, आप भक्तों के दुखों को हरने वाले हैं।" नारदजी की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु बोले, "हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या विचार है? आप किस उद्देश्य से आए हैं? निःसंकोच कहें।"
नारदजी ने उत्तर दिया, "हे प्रभु! मैंने मृत्यु लोक में लोगों को कर्मों के कारण दुखी देखा है। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे लोग थोड़े से प्रयास में अपने दुखों से छुटकारा पा सकें।" भगवान विष्णु बोले, "हे नारद! मनुष्यों के कल्याण के लिए तुमने सही प्रश्न किया है। एक व्रत है, जो स्वर्ग और मृत्यु लोक में दुर्लभ और अत्यंत पुण्यदायी है। इस व्रत का नाम सत्यनारायण व्रत है। जो भी इसका विधिपूर्वक पालन करता है, वह संसार में सुख भोगता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।"
भगवान के वचनों को सुनकर नारदजी ने पूछा, "हे प्रभु! इस व्रत का विधान क्या है? इसका फल क्या है और किसने इसे किया है? कृपया विस्तार से बताएं।" भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, "यह व्रत सभी दुखों का नाश करने वाला है। इसे शाम के समय भक्ति और श्रद्धा के साथ ब्राह्मणों और परिजनों के साथ करना चाहिए। भगवान सत्यनारायण को केले, घी, दूध और गेहूं के आटे से बना प्रसाद अर्पित करें। तत्पश्चात ब्राह्मणों और परिजनों को भोजन कराएं और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें। इस तरह जो भी यह व्रत करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। कलियुग में यह व्रत अत्यंत सरल और प्रभावी माना गया है।"
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय समाप्त ॥
एक बार काशी नगरी में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख-प्यास से परेशान, वह ब्राह्मण भिक्षा के लिए घूमता रहता था। एक दिन भगवान सत्यनारायण ने वृद्ध ब्राह्मण का रूप लेकर उसके पास जाकर पूछा, "हे ब्राह्मण! तुम क्यों इतने दुखी हो?" ब्राह्मण ने कहा, "हे प्रभु! मैं अत्यंत निर्धन हूँ और भिक्षा के लिए भटकता हूँ। कृपया मुझे कोई उपाय बताइए।" वृद्ध ब्राह्मण ने उसे सत्यनारायण व्रत का विधान समझाया और अंतर्धान हो गए। निर्धन ब्राह्मण ने व्रत करने का संकल्प लिया और भिक्षा के लिए निकला। उस दिन उसे आशा से अधिक भिक्षा मिली, जिससे उसने सत्यनारायण व्रत संपन्न किया। इसके बाद उसका जीवन बदल गया, और वह सुख, समृद्धि और संपत्ति से संपन्न हो गया।
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का दूसरा अध्याय समाप्त ॥
एक समय एक साधु नामक वैश्य ने भी सत्यनारायण व्रत का संकल्प किया था। उसके पास संतान नहीं थी, और उसने व्रत के प्रभाव से पुत्र प्राप्ति की कामना की। व्रत करने के बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम कलावती रखा गया। परंतु उसने व्रत का संकल्प पूरा नहीं किया था। इसी कारण भगवान नारायण ने उस पर कुपित होकर कठिनाईयों का सामना करने का श्राप दिया।
इस कथा के अनुसार, सत्यनारायण व्रत हर उस व्यक्ति के लिए कल्याणकारी है जो श्रद्धा और भक्ति से इसे करता है। जो भी यह व्रत करता है, वह जीवन के कष्टों से मुक्त हो जाता है और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का तृतीय अध्याय समाप्त ॥
सत्य भगवान का व्रत कब किया जाता है।
सत्य
भगवान का व्रत हर माह की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। व्रत के दिन
शालिग्राम जी की पूजा करके और उन्हें भोग लगाकर कहानी सुनी जाती है।
सत्य भगवान कौन है?
हिंदू
धर्म के अनुसार भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप सत्यनारायण भगवान है। हिंदू
धर्म में भगवान विष्णु के बहुत से रूपों की पूजा की जाती है। उन्हीं में से
एक रूप सत्य भगवान है तथा उन्हें ही सत्यनारायण भगवान भी कहा जाता है।
सत्यनारायण भगवान की पूजा क्यों की जाती है?
पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार जिस घर में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है उस
घर में हमेशा सुख, समृद्धि का वास होता है। घर में संपन्नता बनी रहती है।
घर हमेशा खुशहाल रहे और सभी व्यक्ति स्वस्थ एवं दीर्घायु रहे इसलिए
सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है।
सत्यनारायण भगवान की पूजा का तात्पर्य है, ईश्वर के उस सत्य स्वरूप की पूजा करना जो संसार में शाश्वत है, बाकी सब माया है। इस पूजा में भगवान विष्णु का "सत्यनारायण" स्वरूप ही पूजनीय है, जो इस संसार में एकमात्र सत्य के प्रतीक माने गए हैं। सत्यनारायण व्रत कथा में लगभग 170 संस्कृत श्लोक हैं जो पाँच अध्यायों में विभाजित हैं। यह कथा मुख्यतः दो बिंदुओं पर केंद्रित है: पहला, संकल्प को भूलना और दूसरा, प्रसाद का अपमान करना।
कथा के विभिन्न अध्यायों में छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से सिखाया गया है कि सत्य का उल्लंघन करने पर क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। इसलिए सत्य व्रत का पालन निष्ठा और दृढ़ता के साथ करना चाहिए। इस व्रत में संकल्प का पालन न करना या प्रसाद का अनादर करना, भगवान की नाराजगी और दंड का कारण बन सकता है, जो सम्पत्ति और पारिवारिक सुख में कमी ला सकता है। इसलिए सत्यनारायण व्रत कथा समाज में सच्चाई और निष्ठा को प्रतिष्ठित करने का एक सशक्त माध्यम है और इसे धार्मिक साहित्य में उच्च स्थान प्राप्त है। आमतौर पर इस कथा का वाचन पूर्णिमा को परिवार के बीच किया जाता है और विशेष अवसरों पर भी इसे विधिपूर्वक किया जाता है।
सत्यनारायण की पूजा के लिए केले के पत्ते, फल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम और दूर्वा का प्रयोग आवश्यक माना गया है। पंचामृत में दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी के पत्ते और मेवा मिलाए जाते हैं, जो भगवान को अत्यंत प्रिय है। प्रसाद में फल, मिष्ठान्न के साथ विशेष पंजीरी का भोग लगता है, जो आटे को भूनकर और चीनी मिलाकर बनाया जाता है।
कथा के विभिन्न अध्यायों में छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से सिखाया गया है कि सत्य का उल्लंघन करने पर क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। इसलिए सत्य व्रत का पालन निष्ठा और दृढ़ता के साथ करना चाहिए। इस व्रत में संकल्प का पालन न करना या प्रसाद का अनादर करना, भगवान की नाराजगी और दंड का कारण बन सकता है, जो सम्पत्ति और पारिवारिक सुख में कमी ला सकता है। इसलिए सत्यनारायण व्रत कथा समाज में सच्चाई और निष्ठा को प्रतिष्ठित करने का एक सशक्त माध्यम है और इसे धार्मिक साहित्य में उच्च स्थान प्राप्त है। आमतौर पर इस कथा का वाचन पूर्णिमा को परिवार के बीच किया जाता है और विशेष अवसरों पर भी इसे विधिपूर्वक किया जाता है।
सत्यनारायण की पूजा के लिए केले के पत्ते, फल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम और दूर्वा का प्रयोग आवश्यक माना गया है। पंचामृत में दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी के पत्ते और मेवा मिलाए जाते हैं, जो भगवान को अत्यंत प्रिय है। प्रसाद में फल, मिष्ठान्न के साथ विशेष पंजीरी का भोग लगता है, जो आटे को भूनकर और चीनी मिलाकर बनाया जाता है।
सत्यनारायण भगवान की असली कथा क्या है?
सत्यनारायण भगवान की कथा पौराणिक और प्राचीन भारतीय परंपराओं से जुड़ी है, जिसे लाखों लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजते और मानते हैं। यह कथा पूरी तरह कल्पना नहीं है, बल्कि इसे पौराणिक इतिहास में राजा श्वेतकेतु की कथा के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि राजा श्वेतकेतु, जिन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया था, ने संतोष, समृद्धि और कल्याण के लिए सत्यनारायण भगवान का व्रत किया था।कथा के अनुसार, राजा श्वेतकेतु को जीवन में कठिनाईयों और दु:खों का सामना करना पड़ रहा था, तब किसी संत ने उन्हें सत्यनारायण भगवान की पूजा का सुझाव दिया। राजा ने पूरी श्रद्धा से सत्यनारायण व्रत का संकल्प लिया और विधिपूर्वक पूजा संपन्न की। इस पूजा से प्रसन्न होकर भगवान सत्यनारायण ने राजा को आशीर्वाद दिया और उनके जीवन में सुख-समृद्धि और संतोष का संचार हुआ। इस कथा का उद्देश्य यह संदेश देना है कि सत्य के मार्ग पर चलने से जीवन में सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और जो भी सच्चे मन से इस पूजा को करता है, उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
सत्यनारायण की पूजा कथा में ऐसी ही कई कथाएँ शामिल हैं, जो हमें धर्म, सत्य और निष्ठा का महत्व समझाती हैं। यह पूजा विशेष रूप से पूर्णिमा के दिन की जाती है और इसका पालन करने वाले लोगों का विश्वास है कि यह जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाती है।
सत्यनारायण भगवान किसका अवतार है?
स्कंद पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सत्यनारायण भगवान को भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप माना गया है। सत्यनारायण का अर्थ है "सत्य रूपी नारायण," जो इस विश्वास को दर्शाता है कि भगवान विष्णु सत्य, न्याय और धर्म के पालनकर्ता हैं।इस पूजा का महत्व यह है कि यह व्यक्ति को सत्य के मार्ग पर चलने और अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देती है। सत्यनारायण की पूजा में भगवान विष्णु की आराधना की जाती है ताकि उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आए और व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो सके।
सत्यनारायण भगवान की कथा क्यों होती है?
सत्यनारायण भगवान की कथा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को सत्य, धर्म और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना है। यह कथा दर्शाती है कि सत्यनिष्ठा और सच्चाई का पालन करने से जीवन में समृद्धि, शांति और सुख की प्राप्ति होती है। सत्यनारायण की कथा से व्यक्ति को यह सीख मिलती है कि जो भी भगवान की पूजा सच्चे मन और श्रद्धा से करता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं और कष्टों का निवारण होता है।सत्यनारायण भगवान की कथा कैसे करें?
सबसे पहले एक साफ और पवित्र स्थान का चयन करें। वहां पर चौकी पर एक स्वच्छ कपड़ा बिछाकर, भगवान विष्णु और सत्यनारायण जी की फोटो या मूर्ति स्थापित करें।चौकी पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और नारियल पर रोली और कुमकुम लगाकर उसे कलश पर रखें।
भगवान विष्णु को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएं। इसके बाद फूल, फल, तुलसी के पत्ते, पान, सुपारी, तिल, रोली, कुमकुम, दूर्वा आदि अर्पित करें।
सत्यनारायण भगवान की कथा को पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ें या किसी ज्ञानी व्यक्ति से पढ़वाएं। कथा को सुनते समय परिवार के सभी सदस्यों के साथ अन्य भक्तों को भी शामिल करें।
कथा के अंत में भगवान की आरती करें। सभी को चरणामृत और पंजीरी या हलवा जैसा प्रसाद वितरित करें, जो भगवान को भोग के रूप में अर्पित किया गया था।
कथा समाप्त होने के बाद भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें और सत्य, धर्म और सदाचार के मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
सत्यनारायण पूजा के लिए कौन सा रंग पहनना है?
सत्यनारायण पूजा के लिए परिधान में कोई विशेष ड्रेस कोड नहीं है, लेकिन साफ और शालीन कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। पीला और लाल रंग भगवान विष्णु को प्रिय माने जाते हैं और ये रंग शुभता का प्रतीक भी हैं। इसलिए बहुत से भक्त पूजा के समय पीले या लाल रंग के पारंपरिक वस्त्र जैसे साड़ी, धोती, कुर्ता आदि पहनना पसंद करते हैं। इन रंगों का चयन करने से पूजा में विशेष पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार माना जाता है।सत्यनारायण पूजा के दौरान पत्नी को कहां बैठना चाहिए?
सत्यनारायण पूजा के दौरान पत्नी को पति के बाईं ओर बैठना शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पूजा और अनुष्ठान के समय पत्नी को पति के बाईं ओर बैठना चाहिए, जिससे दोनों में सामंजस्य बना रहे और पूजन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। दाईं ओर बैठना तब उचित माना जाता है जब विशेष कर्मकांड या आशीर्वाद देने जैसे कार्य किए जा रहे हों।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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