गणगौर की कथा गणगौर की व्रत कथा महात्म्य विधि Gangor Ki Vrat Katha Importance Mahatv

गणगौर की कथा गणगौर की व्रत कथा महात्म्य विधि Gangor Ki Vrat Katha Importance Mahatv

गणगौर, एक ऐसा पर्व है जो भारत के विशेष रूप से राजस्थान में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम और विवाह का प्रतीक है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी परिचय देता है। 
 
rajasthani stri in temple

गणगौर की कथा गणगौर की व्रत कथा/कहानी

प्राचीन समय की बात है। राजा ने अपने बाग में जौ और चने की फसल उगाई थी। उसी समय माली ने अपने बगीचे में दूब उगाई थी। माली ने देखा कि राजा के जौ और चने बढ़ते जा रहे थे और माली की दूब घटती जा रही थी।

एक दिन माली ने सोचा कि यह क्या बात है, राजा जी के जौ और चने बढ़ते ही जा रहे हैं और मेरी लगाई हुई दूब घटती जा रही है। एक दिन वह दरवाजे के पीछे छुप कर बैठ गया। और देखने लगा कि ऐसा क्यों हो रहा है।

जब माली दरवाजे के पीछे बैठा था तो उसने देखा कि कुछ लड़कियां आकर के दूब तोड़ रही थी। तो माली को गुस्सा आया और उसने लड़कियों की चुनरियां छीन ली। माली ने उनसे पूछा कि तुम मेरे बाग से दूब क्यों ले जाती हो।
तब लड़कियों ने कहा कि हम सोलह दिन गणगौर पूजती हैं। गणगौर पूजन के समय हमें दूब चाहिए होती है इसीलिए हम आपकी दूब लेकर जाती हैं। अब हमें हमारी चुनरी दे दो।
सोलह दिन बाद जब गणगौर की विदाई होगी तब हम तुम्हें भर भर के कुंडारे हलवे के देंगे। फिर माली ने सबकी चुनरिया वापस लौटा दी। गणगौर का पूजन संपन्न हुआ तब सोलह दिन के बाद लड़कियां भर भर के हलवा लाईं।  लड़कियों में हलवा मालन को दे दिया।
थोड़े समय बाद मालन का बेटा बाहर से खेल कर आया। उसने अपनी मां से कहा कि मां भूख लगी है। तो मालन ने कहा कि बेटा आज तो बहुत सारी लड़कियां हलवा देकर गई हैं। रसोई घर में हलवा पड़ा है जाकर खाले।

जब बेटा रसोई घर में गया तो उससे रसोई का दरवाजा नहीं खुला। लेकिन जब उसकी मां ने अपने उंगली से खोला तो दरवाजा खुल गया। मालिन ने देखा कि यहां तो ईसर जी अपनी पगड़ी बांध रहे हैं और गौरा माता चरखा चला रही हैं। सारी रसोई तरह-तरह की खाने की वस्तुओं से भरी पड़ी है। सारे भंडार घर सामान से भरे पड़े हैं। तो उसने गणगौर माता को धन्यवाद दिया।

मालिन ने गणगौर माता से विनती की और कहा कि हे गणगौर माता सबको ईसर जी जैसा भाग्य देना और गौरा माता जैसा सुहाग देना। सबको कहानी सुनने वालों, कहानी कहने वालों और उनके परिवार के सारे सदस्यों को अपना आशीर्वाद देना।

गणगौर को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

गणगौर को गौर तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। गणगौर तृतीया तिथि को आती है। इसीलिए इसे गौर तृतीया कहा जाता है।

गणगौर के अवसर पर किन की पूजा की जाती है?

गणगौर के समय महिलाएं तथा कन्यायें माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। इनको ईशर और गणगौर के रूप में पूजा जाता है।
कुंवारी कन्या गणगौर की पूजा मनचाहा पति पाने के लिए करती हैं।
शादीशुदा महिलाएं गणगौर की पूजा अपने पति के सुख, समृद्धि और लंबी आयु के लिए करती हैं।

गणगौर कब कितने दिनों तक मनाया जाता है?

गणगौर का त्योहार सोलह दिन का त्यौहार होता है। इसमें सोलह दिनों तक गणगौर की पूजा की जाती है।

गणगौर का शाब्दिक अर्थ क्या है?

गणगौर का शाब्दिक अर्थ है: गण का मतलब भगवान शिव और गौर का मतलब माता पार्वती। इसीलिए गणगौर के त्योहार पर ईसर और गौरा के रूप में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।

गणगौर कब मनाई जाती है?

गणगौर का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और घर में सुख, समृद्धि और संपन्नता के लिए गणगौर का माता का पूजन करती हैं। एक समय चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को माता पार्वती भगवान शिव की आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने गईं। स्नान के बाद उन्होंने बालू से पार्थिव शिवलिंग बनाया और विधि-विधान से पूजा की। पूजा के दौरान माता पार्वती ने बालू से बनाए गए पदार्थों का भोग अर्पित किया और दो कणों का प्रसाद ग्रहण किया। अंत में उन्होंने प्रदक्षिणा करके पूजा संपन्न की, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और पार्थिव शिवलिंग से प्रकट हुए। भगवान शिव ने माता पार्वती को वरदान दिया कि इस दिन जो भी स्त्री उनका पूजन और व्रत करेगी, उसका पति चिरंजीवी और दीर्घायु होगा, और वह सुखी जीवन व्यतीत कर अंत में मोक्ष प्राप्त करेगी। इसके बाद भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।

इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और विवाह के दिन के रूप में मनाया जाता है। कई दिनों और महीनों के अलगाव के बाद देवी पार्वती भगवान शिव के पास वापस आई थीं। विवाहित महिलाएं इस दिन मां गौरा से अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक खुशी के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां आदर्श जीवन साथी की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। यह पर्व प्रेम, भक्ति और संकल्प का प्रतीक है, जिसमें महिलाएं विशेष रूप से अपने परिवार और जीवनसाथी की भलाई की कामना करती हैं।

गणगौर की पूजा विधि

गणगौर पूजन का आयोजन कुंवारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां बड़े श्रद्धा से करती हैं। पूजा की शुरुआत सुबह में सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनकर सिर पर लोटा लेकर बाग-बगीचों में जाकर ताजा जल भरने से होती है। जल के साथ हरी दूब और फूल सजाकर, गणगौर के गीत गाते हुए घर लौटती हैं। इसके बाद, मिट्टी से बने शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा के साथ होली की राख से बनी 8 पिंडियों को दूब पर एक टोकरी में स्थापित किया जाता है। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर और सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब घास और पुष्प से उनकी पूजा की जाती है।

पूजा के दौरान, दीवार पर 16 बिंदियां रोली, मेहंदी, हल्दी और काजल से लगाई जाती हैं। दूब से पानी के 16 बार छींटे 16 शृंगार के प्रतीकों पर लगाए जाते हैं। गौर तृतीया को व्रत रखकर कथा सुनने के बाद पूजा पूर्ण होती है। यह पूजा न केवल देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करती है, बल्कि विवाहित महिलाओं और कन्याओं के लिए सुख और समृद्धि की कामना भी करती है।

गणगौर की पूजा क्यों होती है ?

गणगौर के आयोजन का महत्व कई किवदंतियों से जुड़ा हुआ है। कुछ मानते हैं कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था, जबकि अन्य के अनुसार, पार्वती जी ने इस दिन सोलह शृंगार करके सौभाग्यवती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए प्रकट हुई थीं। इसलिए, सुहागिन महिलाएं इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करती हैं, ताकि वे अपने पतियों की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना कर सकें।

गणगौर पूजन में गुनों का विशेष महत्व होता है। ये गुने मैदा, बेसन या आटे में हल्दी या पीला रंग मिलाकर बनाए जाते हैं और मिठाई के रूप में मीठे और नमकीन होते हैं। मान्यता है कि जितने गहने यानी गुने पार्वती जी को अर्पित किए जाते हैं, उतना ही धन और वैभव बढ़ता है। पूजा के बाद, महिलाएं इन गुनों को अपनी सास, जेठानी और ननद को भेंट करती हैं। गुने का आकार एक गहने की तरह होता है, जिसे पहले गहना कहा जाता था, लेकिन समय के साथ इसका नाम बदलकर गुना हो गया है। इस प्रकार, गणगौर पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत बनाती है।
 

गणगौर महोत्सव

गणगौर पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव के प्रेम और विवाह का प्रतीक है। इस साल गणगौर पूजा 11 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी। यहां कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो इस त्योहार के महत्व को उजागर करते हैं:-

1. धार्मिक महत्व

गणगौर पूजा को ‘गौरी तृतीया’ और ‘जगदीश त्रयोदशी’ के नाम से भी जाना जाता है।
 ‘गण’ का मतलब है शिव और ‘गौर’ का मतलब है पार्वती। इस पूजा के माध्यम से महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
कुंवारी लड़कियां इस पर्व पर अपने मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

2. महिलाओं का पर्व

यह त्योहार विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो इसे पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं।
महिलाएं इस अवसर पर एक-दूसरे के साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठान करती हैं, जिससे आपसी संबंधों को मजबूती मिलती है।

3. सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव

गणगौर न केवल धार्मिक समारोह है, बल्कि यह महिलाओं को एक-दूसरे से मिलने और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है।
यह त्योहार महिलाओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का काम करता है, जिससे वे अपनी पहचान को और भी मजबूत कर पाती हैं।

4. पारंपरिक अनुष्ठान

इस दिन महिलाएं सुंदर वस्त्र पहनकर, भव्य श्रृंगार करके गणगौर की पूजा करती हैं।
मिट्टी से बनी पार्वती और शिव की प्रतिमाओं के साथ विभिन्न प्रकार के भोग और पूजा सामग्री अर्पित की जाती है, जो इस त्योहार की परंपराओं को जीवित रखता है। 

गणगौर त्योहार कैसे मनाया जाता है?


गणगौर पूजा का आयोजन पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ किया जाता है, और इसकी तैयारी कई दिन पहले से शुरू होती है। यहाँ पर इस त्योहार को मनाने की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

1. तैयारी की शुरुआत

महिलाएं मिट्टी से गौरी और ईसर (भगवान शिव) की मूर्तियां बनाती हैं। ये मूर्तियां रंग-बिरंगी होती हैं और इन्हें सजाने में बहुत सारा समय और मेहनत लगती है।

2. सुबह की तैयारी

पूजा के दिन, महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और नए, सुंदर कपड़े पहनती हैं।
इसके बाद, वे घर में एक मंडप बनाती हैं, जहाँ गौरी और ईसर की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है।

3. पूजा का आयोजन

पूजा में महिलाएं गौरी और ईसर को फूल, फल, मिठाई, चंदन, दीप आदि चढ़ाती हैं।
सभी सामग्री का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि पूजा विधिपूर्वक संपन्न हो सके।
इसके साथ ही, गणगौर की आरती भी की जाती है, जिसमें महिलाएं भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान की स्तुति करती हैं।

4. प्रसाद वितरण

पूजा के बाद, महिलाएं एक-दूसरे को गणगौर का प्रसाद बांटती हैं।
यह प्रसाद एक प्रकार से बंधुत्व और प्रेम को बढ़ाने का कार्य करता है, जिसमें सभी महिलाएं एक-दूसरे के सुख और समृद्धि की कामना करती हैं।
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