जानिये गौरी तृतीया व्रत 2025 महत्व और पूजा विधि
गौरी तृतीया व्रत कब है
गौरी तृतीया का व्रत माघ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है। इस वर्ष यह तिथि 31 जनवरी को दोपहर 2 बजे से शुरू होकर 1 फरवरी को सुबह 11:39 बजे समाप्त हो जायेगी। यह व्रत उदयातिथि के अनुसार 1 फरवरी 2025, शनिवार को रखा जायेगा।
गौरी तृतीया व्रत का क्या महत्व है
गौरी तृतीया व्रत महिलाओं के लिए बहुत ही खास है। इसे सौभाग्य और सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी तिथि को भगवान शिव और माता सती का विवाह हुआ था। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं।
गौरी तृतीया व्रत की पूजन विधि क्या है
इस दिन सुबह स्नान कर माता गौरी और भगवान शिव की पूजा करें। माता गौरी का श्रृंगार करें। उन्हें फल, फूल, मिठाई और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। पूजा के दौरान गौरी तृतीया व्रत कथा सुनी जाती है। ऐसा करने से अखंड सौभाग्य और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
गौरी तृतीया व्रत की पूजा विधि Gauri tritiya vrat puja vidhi
गौरी तृतीया व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
- स्नान के बाद, भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति को स्नान कराएं। यदि मूर्ति उपलब्ध न हो, तो उनके चित्र को एक पाट पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें और जल से पवित्र करें।
- धूप-दीप प्रज्वलित करें और भगवान शिव तथा माता पार्वती को फूल एवं माला अर्पित करें।
- नैवेद्य अर्पित करें और पाँच प्रकार के फल चढ़ाएं।
- पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें, जिसमें जल, रोली, मौली, चंदन, सिन्दूर, लौंग, पान, चावल, सुपारी, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाएं।
- माता गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान कराएं, फिर उन्हें वस्त्र पहनाकर रोली, चंदन, सिन्दूर और मेंहदी लगाएं। श्रृंगार की वस्तुओं से माता का श्रृंगार करें।
- शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिपूर्वक पूजन करने के बाद, गौरी तृतीया की कथा सुनें।
गौरी तृतीया की कथा gauri tritiya vrat katha
माता पार्वती के अनेक नामों में 'गौरी' भी एक प्रमुख नाम है। राजा दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। माघ शुक्ल तृतीया को भगवान शिव और देवी सती का विवाह हुआ था। इसलिए, इस तिथि को गौरी तृतीया के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
गौरी व्रत में क्या खाया जा सकता है?
गौरी व्रत के दौरान, विशेष रूप से महिलाएं फलाहार करती हैं, जिसमें फल, साबूदाने की खीर, साबूदाने की खिचड़ी, और अन्य हल्के शाकाहारी व्यंजन शामिल होते हैं। इस व्रत में अनाज, लहसुन, प्याज, और मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
गौरी तृतीया व्रत के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत और उपवास के नियमों का पालन करने से शुभ फल मिलते हैं। खासकर स्त्रियों को दांपत्य सुख और संतान सुख मिलता है। पुराणों में इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है, जिससे यह पता चलता है कि राजा दक्ष को अपनी बेटी के रूप में सती प्राप्त हुई थीं। सती माता ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तप और जप किया था, जिसका फल उन्हें मिला।
माता सती के कई नाम हैं, जिनमें से गौरी भी एक नाम है। शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को देवी सती का भगवान शंकर से विवाह हुआ था। इसलिए माघ शुक्ल तृतीया के दिन यह व्रत उत्तम सौभाग्य प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है। गौरी तृतीया व्रत के दिन महिलाएं विशेष रूप से पूजा करती हैं, जिससे उन्हें अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला माना जाता है।
गौरी तृतीया व्रत फल Gauri Tritiya Fast Laabh
गौरी तृतीया व्रत स्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह पावन तिथि स्त्रियों के लिए सौभाग्य लाने वाली मानी जाती है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए इस दिन श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत करती हैं। वहीं, अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को करती हैं ताकि उन्हें मनचाहा वर मिल सके।
लेखिका: सरोज जांगिड़, सीकर, राजस्थान