बरुथनी एकादशी Baruthani Ekadashi
वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को बरुथनी एकादशी मनाने का विधान है। बरुथनी एकादशी के दिन व्रत करके आलस्य, मद्यपान, परनिंदा, क्षुद्रता, चोरी, हिंसा, जुआ खेलने, रती, क्रोध तथा झूठ को आदि विकारों को त्यागने का विशेष माहात्म्य है। ऐसा करने से जातक को मानसिक शांति प्राप्त होती है। व्रत करने वाले और उसके परिवार के सदस्यों को रात्रि को भागवत भजन करके जागरण करना चाहिए, जिससे इश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। वरुथिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत सभी एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। सभी एकादशी में वरुथिनी एकादशी का विशेष महत्व होता है।
पुराणों के अनुसार वरुथिनी एकादशी का बहुत अधिक महत्त्व है जो समस्त पापों का नाश करती है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ये दिन बहुत उत्तम होता है। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से भगवान विष्णु सभी संकटों से छुटकारा दिलाते हैं। वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत करने से करोड़ों वर्ष की तपस्या करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन भगवान श्रीहरि का स्मरण करने और उनके मंत्रों का जाप करने मात्र से जीवन के समस्त संकट खत्म हो जाते हैं।
बहुत समय पहले की बात है। नर्मदा नदी के तट पर माधांता नामक राजा राज्य करता था। राजा बहुत ही दानशील और तपस्वी था। एक दिन तपस्या करते समय एक जंगली भालू राजा माधांता का पैर खाने लग गया। थोड़ी देर के बाद भालू राजा को घसीट कर जंगल में ले गया। राजा ने घबरा कर भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की। भगवान विष्णु जी ने अपने भक्त की पुकार सुनकर अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मार कर अपने भक्त राजा माधांता की रक्षा की।
भगवान विष्णु जी ने राजा माधांता से कहा कि हे वत्स, बरुथनी एकादशी का व्रत रखकर मथुरा में वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था, जिसकी वजह से भालू ने तुम्हारे पैर खा लिये। राजा माधांता ने बरूथनी एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की और अपने पैरों को पुनः प्राप्त कर लिया।
भगवान विष्णु जी ने राजा माधांता से कहा कि हे वत्स, बरुथनी एकादशी का व्रत रखकर मथुरा में वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था, जिसकी वजह से भालू ने तुम्हारे पैर खा लिये। राजा माधांता ने बरूथनी एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित की और अपने पैरों को पुनः प्राप्त कर लिया।
2 बरुथनी एकादशी की व्रत कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता नामक एक राजा राज्य करते थे। वे बहुत दानी और तपस्वी थे। एक दिन वे जंगल में तपस्या कर रहे थे कि अचानक एक जंगली भालू आया और उनका पैर चबाने लगा। राजा तपस्या में लीन रहे और कुछ नहीं बोले। भालू उन्हें जंगल में ले गया और एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया।अगले दिन भगवान विष्णु ने राजा मान्धाता को दर्शन दिए और कहा, "हे राजन! तुमने मेरी पूजा की है और मुझे प्रसन्न किया है। मैं तुम्हें एकादशी का व्रत करने का आदेश देता हूँ। इस व्रत को करने से तुम्हारे सभी पापों का नाश होगा और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।"
राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु के आदेश का पालन किया और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राजा का पैर ठीक हो गया और वे फिर से स्वस्थ हो गए।
इसके कुछ समय बाद राजा मान्धाता स्वर्ग चले गए। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा
- वरुथिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इश्वर की कृपा भी प्राप्त होती है.
- वरुथिनी एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। भगवान विष्णु सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
- वरुथिनी एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- वरुथिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है: वरुथिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है और वह भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष को प्राप्त करता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत पारण में बरतें ये सावधानी
रुथिनी एकादशी का व्रत पूजा में चढ़ाए प्रसाद से ही खोलना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत का फल शीघ्र प्राप्त होता है। इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए, भूल से भी तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए, नहीं तो व्रत निष्फल हो जाता है।वरुथिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन पूजा में चढ़ाए प्रसाद से ही व्रत खोलना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्रत का फल शीघ्र प्राप्त होता है।