भगवान शिव को भोलेनाथ क्यों कहते हैं

भगवान शिव को भोलेनाथ क्यों कहते हैं?

क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव को "भोलेनाथ" क्यों कहा जाता है? उनका यह नाम उनकी सरलता, उदारता और हर किसी पर समान रूप से कृपा बरसाने के स्वभाव के कारण पड़ा है। भगवान शिव किसी भी भक्त के सच्चे मन और कठोर तपस्या से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, चाहे वह मानव हो, देवता हो या फिर कोई राक्षस।
 
Shivji Ko Bholenath Kyo Kahate Hain

भस्मासुर नाम के राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। शिवजी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान देने का वचन दिया। जब भस्मासुर ने अमर होने का वरदान मांगा, तो शिवजी ने इसे प्रकृति के नियमों के खिलाफ बताया। तब भस्मासुर ने अपनी मांग बदलते हुए यह वरदान मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा।

शिवजी ने बिना भेदभाव "तथास्तु" कहकर उसे यह वरदान दे दिया। हालांकि, वे जानते थे कि भस्मासुर इस वरदान का उपयोग विनाश के लिए कर सकता है, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी सरलता और दयालुता के कारण उसे यह वरदान दिया।

वरदान मिलने के बाद भस्मासुर ने अपनी शक्ति का परीक्षण भगवान शिव पर ही करने की कोशिश की। अपनी रक्षा के लिए भगवान शिव ने भगवान विष्णु का आह्वान किया। भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और अपनी आकर्षक चालों से भस्मासुर को मोहित कर लिया।

मोहिनी ने भस्मासुर को नृत्य सिखाने की पेशकश की और कहा कि वह तभी शादी करेगी जब वह नृत्य करना सीखेगा। मोहिनी ने नृत्य शुरू किया, और भस्मासुर उसकी हर हरकत को दोहराने लगा। जब मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा, तो भस्मासुर ने भी वैसा ही किया। इस प्रकार, वह खुद ही अपने वरदान का शिकार हो गया और भस्म हो गया।

इस प्रकार से आपने जाना भगवान शिव कितने सरल और दयालु हैं। वे किसी के भी प्रति भेदभाव नहीं रखते और सच्चे मन से की गई भक्ति का आदर करते हैं। उनकी यही उदारता और सरलता उन्हें "भोलेनाथ" बनाती है।
 

ये भी है एक कारण की शिव हैं भोलेनाथ

भगवान शिव की सरलता, भोलापन और अपने भक्तों के प्रति समर्पण उनके "भोलेनाथ" नाम को पूरी तरह सार्थक बनाता है। उनकी शादी की कथा से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है। शिव पुराण में वर्णित उनके विवाह प्रसंग में उनकी भोलाभावना और भक्तवत्सलता के अनेक प्रमाण मिलते हैं।

देवताओं के विनय पर विवाह के लिए शिव जी मान जाना
तारकासुर के आतंक से त्रस्त देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और पार्वती जी के कठोर तप का वर्णन करते हुए उनसे विवाह करने का अनुरोध किया। महादेव ने वैराग्य को अपनाया था और साधारणतः विवाह को अनुचित मानते थे, लेकिन देवताओं के कल्याण के लिए उन्होंने अपने सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर विवाह के लिए सहमति दी।

पार्वती जी का तप और महादेव का सरल स्वभाव
पार्वती जी के कठोर तप से प्रसन्न होकर शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। पार्वती जी ने उत्तर दिया कि वह उन्हें अपने पिता से मांग लें। महादेव ने कहा, "दे दो" कहना हमारे स्वभाव में नहीं है, लेकिन तुम्हारे लिए यह भी कर लेंगे। यह उनकी सहजता और भोलापन ही था।

महादेव नट का रूप धरकर हिमालयराज के महल पहुंचे और कला दिखाकर पुरस्कार स्वरूप पार्वती को मांग लिया। यह उनकी विलक्षण भोलाभावना का एक और उदाहरण था।

इंद्र और देवताओं ने कहा कि यदि हिमालयराज महादेव की भक्ति करेंगे तो उनका पर्वत स्वरूप नष्ट हो जाएगा, जो पृथ्वी के लिए हानिकारक होगा। महादेव ने देवताओं की बात मान ली और ब्राह्मण का रूप धरकर हिमालय के पास अपनी निंदा करनी शुरू कर दी। उनकी निंदा सुनकर हिमालय और मैना की भक्ति समाप्त हो गई। यह केवल एक भोले योगी का ही कृत्य हो सकता है।

विवाह के दिन जब शिव अपनी बारात लेकर हिमालय के महल पहुंचे, तो उनके भयंकर रूप को देखकर मैना ने विवाह से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यदि शिव सौम्य और मनोहर रूप धारण करें, तो ही वह विवाह को स्वीकार करेंगी। भक्तों की इच्छा का आदर करते हुए शिव ने तुरंत मनोहर रूप धारण कर लिया।

भक्तवत्सल और भोलाभाव

महादेव की यह कथाएं यह साबित करती हैं कि वे न केवल भोले हैं, बल्कि अपने भक्तों के लिए हर प्रकार का त्याग और समझौता करने को भी तत्पर रहते हैं। उनकी सादगी, दयालुता और भक्ति के प्रति प्रेम ही उन्हें "भोलेनाथ" बनाता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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