मां महाकाली की कथा कहानी Maa Mahakali Ki Katha Navratri

मां महाकाली की कथा कहानी Maa Mahakali Ki Katha Navratri

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, विशेष रूप से नवरात्रि के अवसर पर और मां दुर्गा का एक रूप मां महाकाली भी है। इस लेख में हम मां महाकाली की कथा के बारे में जानेंगे। महाकाली हिंदू धर्म में विनाश और प्रलय की देवी मानी जाती हैं। उन्हें सार्वभौमिक शक्ति, काल, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म और मुक्ति की देवी भी माना जाता है। महाकाली को अक्सर ही रोद्र रूप में चित्रित किया जाता है। माँ काली को बिखरे हुए बाल, रक्त, हाथों में खप्पर, त्रिशूल आदि के साथ दर्शाया गया हैं। महाकाली की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियाँ हैं। एक कहानी के अनुसार, महाकाली भगवान शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं। पार्वती ने रक्तबीज नामक एक शक्तिशाली दैत्य का वध करने के लिए महाकाली का रूप धारण किया था। रक्तबीज को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसके शरीर से बहने वाले रक्त की एक बूंद से हजारों और दैत्य उत्पन्न होंगे।
 
मां महाकाली की कथा कहानी Maa Mahakali Ki Katha Navratri

 
रक्तबीज ने तीनों लोकों पर आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव से मदद की गुहार की। भगवान शिव ने रक्तबीज का वध करने के लिए महाकाली का रूप धारण किया। महाकाली ने रक्तबीज से युद्ध किया और अंत में उसे मार डाला। महाकाली की पूजा नवरात्रि में की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से महाकाली भी एक हैं। महाकाली की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
तो आईए जानते हैं मां महाकाली की कथा:

मां महाकाली की कथा

बहुत समय पहले की बात है। संसार में प्रलय आई हुई थी। सम्पूर्ण जगत में चारों ओर पानी ही अपनी नजर आ रहा था। इसी समय भगवान विष्णु जी की नाभि से कमल की उत्पत्ति हुई। उसी कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। इसके साथ ही भगवान विष्णु के कानों से कुछ मैल निकला था। उस मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस बने।

मधु और कैटभ ने जब चारों ओर देखा तो उन्हें ब्रह्मा जी के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया। मधु और कैटभ ब्रह्मा जी को देखकर उन्हें अपना भोजन बनाने के लिए उनकी तरफ आगे बढ़े। तब ब्रह्मा जी ने भयभीत होकर भगवान विष्णु जी की आराधना की।

ब्रह्मा जी की आराधना से भगवान विष्णु जी की नींद खुल गई। और उनकी आंखों में निवास करने वाली महामाया लुप्त हो गई। भगवान विष्णु जी के जागने पर मधु और कैटभ भगवान विष्णु जी से युद्ध करने लगे।
माना जाता है कि यह युद्ध 5000 वर्ष तक चलता रहा। अंत में महामाया ने मां महाकाली का रूप धारण कर इन दोनों राक्षसों की बुद्धि को बदल दिया।

अब दोनों असुर भगवान विष्णु जी से कहने लगे कि हम आपकी युद्ध कौशल से प्रसन्न है। आप जो चाहे वरदान मांग सकते हैं। भगवान विष्णु जी ने मधु और कैटभ से कहा कि अगर आप वरदान देना ही चाहते हैं तो आप यह वरदान दीजिए कि दैत्यों का नाश हो। तो मधु और कैटभ ने कहा तथास्तु। और इस प्रकार दोनों महाबली राक्षसों मधु और कैटभ का नाश हो गया।
 

महाकाली कौन है ?

महाकाली, को दुर्गा का अवतार माना गया है और माता काली को, काले रंग में चित्रित किया गया है. काले रंग के अतिरिक्त माता के चार हाथ और एक लंबी जीभ दर्शाई जाती है। उनके हाथों में खड्ग, त्रिशूल, तलवार, हैं। उनको दैत्यों के वध करते हुए दिखाया जाता है. 

महाकाली को सृष्टि, संहार और परिवर्तन की शक्ति के रूप में देखा जाता है। वह बुराई और अंधेरे का नाश करने वाली देवी हैं, और वे अच्छे और न्याय के लिए एक शक्तिशाली संरक्षक हैं। महाकाली की उपासना भारत के कई हिस्सों में की जाती है, विशेष रूप से बंगाल, असम और ओडिशा में। उन्हें अक्सर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, कठिन समय से गुजरने वालों की मदद करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए पूजा जाता है।
 

महाकाली की उत्पत्ति कैसे हुई ?

महाकाली की उत्पत्ति रक्तबीज नामक राक्षस के वध के लिए हुई थी। रक्तबीज को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसे केवल एक स्त्री ही मार सकती है। इसके अलावा, उसके खून की एक बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था। रक्तबीज ने देवताओं और ब्राह्मणों पर अत्याचार करके तीनों लोकों में कोहराम मचा रखा था। देवता इस वरदान के कारण उसे मारने में असमर्थ हो गए थे।

निराशा होकर देवताओं ने मदद के लिए भगवान को याद किया। लेकिन जैसे ही भगवान शिव उस समय गहरे ध्यान में थे, देवताओं ने मदद के लिए पार्वती माता से विनय किया। देवी ने तुरंत काली के रूप में इस खूंखार दानव से युद्ध करने के लिए निकल पड़ीं। काली ने रक्तबीज को क्षमा करने के लिए सहमति दी, लेकिन केवल तभी जब वह उसे अपना रक्त पीने दे। रक्तबीज ने अपना रक्त पीने की अनुमति दे दी, और काली ने उसे पूरी तरह से निगल लिया। रक्तबीज के रक्त को अपने अंदर समाहित करने से काली को एक अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई। उन्होंने रक्तबीज के सभी राक्षसों को भी नष्ट कर दिया।

इस प्रकार, महाकाली की उत्पत्ति रक्तबीज नामक राक्षस के वध के लिए हुई थी। वे एक शक्तिशाली देवी हैं जो बुराई को नष्ट करने के लिए खड़ी हैं। कहानी के कुछ अन्य संस्करणों के अनुसार, महाकाली की उत्पत्ति ब्रह्मांड के निर्माण के समय हुई थी। वे सृष्टि की शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं।

अन्य कथा के अनुसार महाकाली की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी। जब भगवान शिव को रक्तबीज के अत्याचारों के बारे में पता चला, तो वे इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने महाकाली के रूप में अवतार लिया। चाहे महाकाली की उत्पत्ति का कोई भी कारण हो, वे एक शक्तिशाली देवी हैं जिन्हें दुनिया भर में पूजा जाता है। वे उन लोगों के लिए आशा और सुरक्षा का प्रतीक हैं जो बुराई से लड़ रहे हैं।

महाकाली ने रक्तबीज को कैसे मारा ?

रक्तबीज को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसे केवल एक स्त्री ही मार सकती है। इसके अलावा, उसके खून की एक बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था। रक्तबीज ने देवताओं और ब्राह्मणों पर अत्याचार करके तीनों लोकों में कोहराम मचा रखा था। देवता इस वरदान के कारण उसे मारने में असमर्थ थे। निराशा में देवताओं ने मदद के लिए भगवान शिव का रुख किया। लेकिन जैसे ही भगवान शिव उस समय गहरे ध्यान में थे, देवताओं ने मदद के लिए उनकी पत्नी पार्वती की ओर रुख किया। देवी ने तुरंत काली के रूप में इस खूंखार दानव से युद्ध करने के लिए निकल पड़ीं।

काली ने रक्तबीज का वध करने के लिए युक्ति बनाई। उन्होंने रक्तबीज को अपने भयानक रूप से भयभीत किया । रक्तबीज इतना भयभीत हुआ कि वह काली के पैरों में गिर गया और माफ़ी मांगने लगा. काली ने रक्तबीज को क्षमा किया लेकिन केवल तभी जब वह उसे अपना रक्त पीने दे। रक्तबीज ने अपना रक्त पीने की अनुमति दे दी, और काली ने उसे पूरी तरह से निगल लिया। रक्तबीज के रक्त को अपने अंदर समाहित करने से काली को एक अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई और माता रानी ने रक्तबीज के सभी राक्षसों को भी नष्ट कर दिया।

इस कहानी के अनुसार, काली ने रक्तबीज का वध करने में अपनी जीभ को उपयोग में लिया था  उन्होंने रक्तबीज को मारने के लिए अपनी जीभ को इतना बड़ा कर लिया कि वह उसके शरीर के हर हिस्से को ढक सके। जैसे ही रक्तबीज का खून गिरता, वह काली की जीभ में गिरता और वह उसे निगल लेती। अंत में, रक्तबीज इतना कमजोर हो गया कि काली ने उसे मार डाला। यह कहानी महाकाली की शक्ति और दया का प्रतीक है। वे एक शक्तिशाली देवी हैं जो बुराई को नष्ट करने के लिए खड़ी हैं, लेकिन वे दयालु भी हैं और वे उन लोगों को माफ करने के लिए तैयार हैं जो क्षमा मांगते हैं।
 
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माँ काली व्रत और माँ काली व्रत कथा के लाभ

  • माँ काली का व्रत करने से भक्तों को साहस और आंतरिक शक्ति की प्राप्ति होती है.
  • यह आपके घर में सुख शांति बनाए रखने में मदद करता है। देवी काली को परिवार की रक्षक माना जाता है।
  • माँ काली का व्रत साधक और उसके जीवनसाथी के बीच के बंधन को दृढ करता है और आपके वैवाहिक सम्बन्ध को मजबूत भी बनाता है।
  • माँ काली का व्रत करने से साधक के जीवन को और अधिक सकारात्मकता के साथ आनंदित करता है और आप में एक सकारात्मक प्रकृति का अनुभव होता है। देवी काली एक दयालु और करुणामयी देवी हैं। उनकी पूजा करने से हमारे जीवन में सकारात्मकता आती है और हम दूसरों के प्रति अधिक दयालु और करुणावान बनने की और अग्रसर होते हैं.

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