शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ शिवभक्तों के लिए विशेष रूप से मंगलकारी और शक्तिदायक है। यह स्तोत्र महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित है, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों और उनकी कृपा से प्राप्त सुरक्षा का वर्णन किया गया है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं।
। ॐ नमः शिवाय ।
अस्य श्रीशिवरक्षा-स्तोत्र-मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः,
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ (१)
गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ (२)
गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः ।
नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः ॥ (३)
घ्राणं पातु पुराराति-र्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शिति-कन्धरः ॥ (४)
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्व-धुरन्धरः ।
भुजौ भूभार-संहर्त्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ (५)
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ॥ (६)
सक्थिनी पातु दीनार्त्त-शरणागत-वत्सलः ।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ (७)
जङ्घे पातु जगत्कर्त्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ (८)
एतां शिव-बलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिव-सायुज्यमाप्नुयात् ॥ (९)
ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिव-नामाभिरक्षणात् ॥ (१०)
अभयङ्कर-नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्त्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत् त्रयम् ॥ (११)
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ॥ (१२)
(इति श्रीयाज्ञवल्क्य-प्रोक्तं शिवरक्षा-स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।)
अस्य श्रीशिवरक्षा-स्तोत्र-मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः,
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ (१)
गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ (२)
गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः ।
नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः ॥ (३)
घ्राणं पातु पुराराति-र्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शिति-कन्धरः ॥ (४)
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्व-धुरन्धरः ।
भुजौ भूभार-संहर्त्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ (५)
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ॥ (६)
सक्थिनी पातु दीनार्त्त-शरणागत-वत्सलः ।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ (७)
जङ्घे पातु जगत्कर्त्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ (८)
एतां शिव-बलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिव-सायुज्यमाप्नुयात् ॥ (९)
ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिव-नामाभिरक्षणात् ॥ (१०)
अभयङ्कर-नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्त्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत् त्रयम् ॥ (११)
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ॥ (१२)
(इति श्रीयाज्ञवल्क्य-प्रोक्तं शिवरक्षा-स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।)
Meaning of Shiv Raksha Stotram
अस्य श्रीशिवरक्षा-स्तोत्र-मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः,
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥
अर्थ: इस शिव रक्षा स्तोत्र के रचयिता ऋषि याज्ञवल्क्य हैं। इसमें भगवान सदाशिव मुख्य देवता हैं। यह स्तोत्र शिवजी की कृपा प्राप्त करने और उनकी रक्षा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥ (१)
अर्थ: यह स्तोत्र भगवान महादेव के दिव्य चरित्र का वर्णन करता है, जो अत्यंत पवित्र और महान है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (चारों पुरुषार्थों) को प्राप्त करने का साधन है।
गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥ (२)
अर्थ: जो व्यक्ति माता गौरी और गणेशजी के साथ पंचमुखी, त्रिनेत्रधारी और दस भुजाओं वाले शिवजी का ध्यान करके इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिव की रक्षा प्राप्त करता है।
गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः।
नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः॥ (३)
अर्थ: गंगा को धारण करने वाले शिव मेरे सिर की रक्षा करें।
मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाले शिव मेरे ललाट (माथे) की रक्षा करें।
कामदेव का नाश करने वाले शिव मेरी आँखों की रक्षा करें।
कानों में सर्प धारण करने वाले शिव मेरे कानों की रक्षा करें।
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥
अर्थ: इस शिव रक्षा स्तोत्र के रचयिता ऋषि याज्ञवल्क्य हैं। इसमें भगवान सदाशिव मुख्य देवता हैं। यह स्तोत्र शिवजी की कृपा प्राप्त करने और उनकी रक्षा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥ (१)
अर्थ: यह स्तोत्र भगवान महादेव के दिव्य चरित्र का वर्णन करता है, जो अत्यंत पवित्र और महान है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (चारों पुरुषार्थों) को प्राप्त करने का साधन है।
गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥ (२)
अर्थ: जो व्यक्ति माता गौरी और गणेशजी के साथ पंचमुखी, त्रिनेत्रधारी और दस भुजाओं वाले शिवजी का ध्यान करके इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिव की रक्षा प्राप्त करता है।
गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः।
नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः॥ (३)
अर्थ: गंगा को धारण करने वाले शिव मेरे सिर की रक्षा करें।
मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाले शिव मेरे ललाट (माथे) की रक्षा करें।
कामदेव का नाश करने वाले शिव मेरी आँखों की रक्षा करें।
कानों में सर्प धारण करने वाले शिव मेरे कानों की रक्षा करें।
घ्राणं पातु पुराराति-र्मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शिति-कन्धरः॥ (४)
अर्थ: त्रिपुर के शत्रु भगवान शिव मेरी नाक की रक्षा करें।
जगत के स्वामी शिव मेरे मुख (चेहरे) की रक्षा करें।
वाणी के स्वामी शिव मेरी जिह्वा की रक्षा करें।
नीले कंठ वाले शिव मेरी गर्दन (कंधा) की रक्षा करें।
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्व-धुरन्धरः।
भुजौ भूभार-संहर्त्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥ (५)
अर्थ: श्रीकंठ शिव मेरे गले की रक्षा करें।
विश्व का भार उठाने वाले शिव मेरे कंधों की रक्षा करें।
संसार का भार हल्का करने वाले शिव मेरी भुजाओं (बाजुओं) की रक्षा करें।
त्रिशूल धारण करने वाले शिव मेरे हाथों की रक्षा करें।
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः॥ (६)
अर्थ: शंकर मेरे हृदय की रक्षा करें।
गिरिजा के पति (शिव) मेरे पेट की रक्षा करें।
मृत्यु को जीतने वाले शिव मेरी नाभि की रक्षा करें।
व्याघ्रचर्म (शेर की खाल) पहनने वाले शिव मेरी कमर की रक्षा करें।
सक्थिनी पातु दीनार्त्त-शरणागत-वत्सलः।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥ (७)
अर्थ: दीनों और दुखियों को शरण देने वाले शिव मेरी जांघों की रक्षा करें।
महेश्वर (शिव) मेरी टांगों (ऊरु) की रक्षा करें।
संसार के स्वामी शिव मेरे घुटनों की रक्षा करें।
जङ्घे पातु जगत्कर्त्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥ (८)
अर्थ: जगत के रचयिता शिव मेरी पिंडलियों की रक्षा करें।
गणों के स्वामी शिव मेरे टखनों की रक्षा करें।
करुणा के सागर शिव मेरे पैरों की रक्षा करें।
सदाशिव मेरे पूरे शरीर की रक्षा करें।
एतां शिव-बलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिव-सायुज्यमाप्नुयात्॥ (९)
अर्थ: जो पुण्यात्मा इस शिवरक्षा स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है और अंत में शिवजी के धाम को प्राप्त करता है।
ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते शिव-नामाभिरक्षणात्॥ (१०)
अर्थ: ग्रहदोष, भूत-प्रेत, पिशाच और जो भी त्रैलोक्य में विचरते हैं, वे शिव के नाम की रक्षा से तुरंत ही भाग जाते हैं।
अभयङ्कर-नामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्त्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत् त्रयम्॥ (११)
अर्थ: पार्वतीपति शिव का यह कवच भय को दूर करने वाला है। जो इसे भक्ति से अपने गले में धारण करता है, तीनों लोक उसके वश में हो जाते हैं।
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत्॥ (१२)
अर्थ: भगवान नारायण ने स्वप्न में ऋषि याज्ञवल्क्य को यह शिवरक्षा स्तोत्र बताया। प्रातः उठकर योगियों के श्रेष्ठ याज्ञवल्क्य ने इसे लिखा।
इति श्रीयाज्ञवल्क्य-प्रोक्तं शिवरक्षा-स्तोत्रं सम्पूर्णम्।
अर्थ: इस प्रकार महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित शिवरक्षा स्तोत्र समाप्त हुआ।
॥ Om Namah Shivaya ॥
Asya Shri Shiva Raksha Stotra Mantrasya Yajnavalkya Rishih,
Shri Sadashivo Devata, Anushtup Chandah,
Shri Sadashiva Preetyarthe Shiva Raksha Stotra Jape Viniyogah ॥
Meaning in Hinglish:
Charitam Devdevasya Mahadevasya Pavanam,
Aaparam Paramodaram Chaturvargasya Sadhanam ॥ (1)
(May this divine, purifying story of Mahadeva, which fulfills all four life goals, bring us blessings.)
Gauri-Vinayakopetam Panchavaktram Trinetrakam,
Shivam Dhyatva Dashabhujam Shiva Raksham Pathennarah ॥ (2)
(Meditate on Lord Shiva, who is accompanied by Gauri and Vinayaka, with five faces and three eyes, and chant this protective Shiva Stotra.)
Gangadhar Shirah Paatu, Bhalamardhendushekarah,
Nayane Madandhwansi, Karnau Sarpa Vibhushnah ॥ (3)
(May Lord Shiva, who holds the Ganga in his hair, with the crescent moon on his forehead, protect our head and eyes; may he, adorned with serpents, protect our ears.)
Ghraham Paatu Puraarti, Mukham Paatu Jagatpati,
Jihvaam Vageeshvarah Paatu, Kandharam Shitikantharah ॥ (4)
(May the enemy of Pura protect our nose, the Lord of the world protect our face, the Lord of speech protect our tongue, and the blue-throated one protect our neck.)
Shreekanthah Paatu Me Kantham, Skandhau Vishvadhurandharah,
Bhujau Bhubhaar Sanhartaa, Karau Paatu Pinakadhrit ॥ (5)
(May Shri Kantha protect my throat, the bearer of the universe protect my shoulders, the remover of the world's burdens protect my arms, and the one who holds Pinaka protect my hands.)
Hridayam Shankarah Paatu, Jatharam Girijaapati,
Naabhim Mrityunjayah Paatu, Kati Vyaghrajinambarah ॥ (6)
(May Shankara protect my heart, the Lord of Girija protect my stomach, Mrityunjaya protect my navel, and the one wearing the tiger skin protect my waist.)
Sakthini Paatu Deenarta-Sharanagat-Vatsalah,
Uru Maheshvarah Paatu, Januni Jagadeeshvarah ॥ (7)
(May the compassionate protector of the distressed protect my thighs, the great Lord protect my knees, and the Lord of the universe protect my shins.)
Janghe Paatu Jagatkartaa, Gulphau Paatu Ganadhipah,
Charanau Karunasindhu, Sarvangani Sadashivah ॥ (8)
(May the creator of the universe protect my calves, the Lord of Ganas protect my ankles, and the ocean of compassion protect my feet; may Sadashiva protect all parts of my body.)
Etam Shiva-Balopetam Raksham Yah Sukriti Pathet,
Sa Bhuktva Sakalaan Kaamaan, Shiva-Sayujyamapnuyat ॥ (9)
(Whoever reads this powerful Shiva Raksha with devotion will attain all desires and eventually unity with Shiva.)
Grah-Bhoot-Pishachadyas Trailokye Vicharanti Ye,
Duradashu Palaayante Shiva-Naamabhirakshanaat ॥ (10)
(The power of Shiva's name drives away all evil forces—planets, spirits, or ghosts that roam the three worlds.)
Abhayankar-Namedam Kavacham Parvatipateh,
Bhaktya Bibharti Yah Kante, Tasya Vashyam Jagat Trayam ॥ (11)
(This protective shield of Lord Parvatipati, worn with devotion around the neck, brings the three worlds under one’s control.)
Imam Narayanah Svapne Shiva Raksham Yathadishat,
Pratarutthaya Yogindro Yajnavalkyah Tathalikhat ॥ (12)
(This Shiva Raksha was revealed by Narayana in a dream, and Yajnavalkya, the great sage, recorded it in the morning.)
(Iti Shri Yajnavalkya Proktam Shiva Raksha Stotram Sampurnam ॥)
(Thus ends the Shiva Raksha Stotra as taught by Yajnavalkya.)
Asya Shri Shiva Raksha Stotra Mantrasya Yajnavalkya Rishih,
Shri Sadashivo Devata, Anushtup Chandah,
Shri Sadashiva Preetyarthe Shiva Raksha Stotra Jape Viniyogah ॥
Meaning in Hinglish:
Charitam Devdevasya Mahadevasya Pavanam,
Aaparam Paramodaram Chaturvargasya Sadhanam ॥ (1)
(May this divine, purifying story of Mahadeva, which fulfills all four life goals, bring us blessings.)
Gauri-Vinayakopetam Panchavaktram Trinetrakam,
Shivam Dhyatva Dashabhujam Shiva Raksham Pathennarah ॥ (2)
(Meditate on Lord Shiva, who is accompanied by Gauri and Vinayaka, with five faces and three eyes, and chant this protective Shiva Stotra.)
Gangadhar Shirah Paatu, Bhalamardhendushekarah,
Nayane Madandhwansi, Karnau Sarpa Vibhushnah ॥ (3)
(May Lord Shiva, who holds the Ganga in his hair, with the crescent moon on his forehead, protect our head and eyes; may he, adorned with serpents, protect our ears.)
Ghraham Paatu Puraarti, Mukham Paatu Jagatpati,
Jihvaam Vageeshvarah Paatu, Kandharam Shitikantharah ॥ (4)
(May the enemy of Pura protect our nose, the Lord of the world protect our face, the Lord of speech protect our tongue, and the blue-throated one protect our neck.)
Shreekanthah Paatu Me Kantham, Skandhau Vishvadhurandharah,
Bhujau Bhubhaar Sanhartaa, Karau Paatu Pinakadhrit ॥ (5)
(May Shri Kantha protect my throat, the bearer of the universe protect my shoulders, the remover of the world's burdens protect my arms, and the one who holds Pinaka protect my hands.)
Hridayam Shankarah Paatu, Jatharam Girijaapati,
Naabhim Mrityunjayah Paatu, Kati Vyaghrajinambarah ॥ (6)
(May Shankara protect my heart, the Lord of Girija protect my stomach, Mrityunjaya protect my navel, and the one wearing the tiger skin protect my waist.)
Sakthini Paatu Deenarta-Sharanagat-Vatsalah,
Uru Maheshvarah Paatu, Januni Jagadeeshvarah ॥ (7)
(May the compassionate protector of the distressed protect my thighs, the great Lord protect my knees, and the Lord of the universe protect my shins.)
Janghe Paatu Jagatkartaa, Gulphau Paatu Ganadhipah,
Charanau Karunasindhu, Sarvangani Sadashivah ॥ (8)
(May the creator of the universe protect my calves, the Lord of Ganas protect my ankles, and the ocean of compassion protect my feet; may Sadashiva protect all parts of my body.)
Etam Shiva-Balopetam Raksham Yah Sukriti Pathet,
Sa Bhuktva Sakalaan Kaamaan, Shiva-Sayujyamapnuyat ॥ (9)
(Whoever reads this powerful Shiva Raksha with devotion will attain all desires and eventually unity with Shiva.)
Grah-Bhoot-Pishachadyas Trailokye Vicharanti Ye,
Duradashu Palaayante Shiva-Naamabhirakshanaat ॥ (10)
(The power of Shiva's name drives away all evil forces—planets, spirits, or ghosts that roam the three worlds.)
Abhayankar-Namedam Kavacham Parvatipateh,
Bhaktya Bibharti Yah Kante, Tasya Vashyam Jagat Trayam ॥ (11)
(This protective shield of Lord Parvatipati, worn with devotion around the neck, brings the three worlds under one’s control.)
Imam Narayanah Svapne Shiva Raksham Yathadishat,
Pratarutthaya Yogindro Yajnavalkyah Tathalikhat ॥ (12)
(This Shiva Raksha was revealed by Narayana in a dream, and Yajnavalkya, the great sage, recorded it in the morning.)
(Iti Shri Yajnavalkya Proktam Shiva Raksha Stotram Sampurnam ॥)
(Thus ends the Shiva Raksha Stotra as taught by Yajnavalkya.)
शिवरक्षा स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की अद्भुत कृपा और उनके दिव्य संरक्षण को प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन है। यह स्तोत्र न केवल शरीर, मन और आत्मा की रक्षा करता है, बल्कि साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों पुरुषार्थों की सिद्धि प्रदान करता है। इस स्तोत्र में शिवजी के हर स्वरूप और उनकी महिमा का वर्णन है, जो हमारे जीवन के हर हिस्से की रक्षा करते हैं। ग्रह, भूत, पिशाच आदि से मुक्ति और हर प्रकार की भय से सुरक्षा के लिए यह कवच अत्यंत प्रभावशाली है। शिवजी के नाम और स्तोत्र के नियमित जप से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं, और साधक शिवसायुज्य (शिव के साथ एकत्व) को प्राप्त करता है। भगवान सदाशिव की आराधना करने वाले भक्तों के लिए यह स्तोत्र सच्ची श्रद्धा, भक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक है।
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Author - Saroj Jangir
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