तुलसी माता चालीसा लिरिक्स Tulasi Mata Chalisa Lyrics
हिंदू धर्म में तुलसी माता का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। प्रायः सभी हिंदुओं के घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाया जाता है। नियमित रूप से तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। कार्तिक मास में तुलसी की पूजा करना विशेष फलदाई माना गया है। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को तुलसी माता कहा जाता है और नियमित रूप से तुलसी माता को जल अर्पित किया जाता है। रविवार को तुलसी के पौधे में जल अर्पित नहीं करते हैं। तुलसी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। तुलसी के चार से पांच पत्ते रोजाना खाने से प्रतिरक्षा प्रणाली (immunity power) मजबूत होती है और मौसमी बीमारियां नहीं होती हैं। तुलसी जी के इन्हीं गुणों के कारण उन्हें घर के आंगन में लगाकर नियमित रूप से उनकी पूजा की जाती है। तुलसी माता का चालीसा का पाठ करने से घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है और धन की बरकत होती है। परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ एवं सुखी जीवन का निर्वहन करते हैं।
तुलसी चालीसा लिरिक्स इन हिंदी Tulasi Mata Chalisa Lyrics in Hindi
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।
विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।
कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,
देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।
क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।
मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।
बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।
चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।
यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।
तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।
यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।
Tulsi Mata Chalisa Dvitiya
दोहा
जय जय तुलसी भगवती, सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी, श्री वृन्दा गुन खानी।
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी, अब न करहु विलम्ब।
चौपाई
धन्य धन्य श्री तुलसी माता, महिमा अगम सदा श्रुति गाता।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी, हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी।
जब प्रसन्न है दर्शन दीनो, तब कर जोरी विनय उस कीनो।
हे भगवन्त कन्त मम होहू, दीन जानी जनि छाडाहू छोहु।
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी, दीन्हो श्राप कध पर आनी।
उस अयोग्य वर मांगन हारी, होहू विटप तुम जड़ तनु धारी।
सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा, करहु वास तुहू नीचन धामा।
दियो वचन हरि तब तत्काला, सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा, पुजिहौ आस वचन सत मोरा।
तब गोकुल मह गोप सुदामा, तासु भई तुलसी तू बामा।
कृष्ण रास लीला के माही, राधे शक्यो प्रेम लखी नाही।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला, नर लोकही तुम जन्महु बाला।
यो गोप वह दानव राजा, शङ्ख चुड नामक शिर ताजा।
तुलसी भई तासु की नारी, परम सती गुण रूप अगारी।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ, कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।
वृन्दा नाम भयो तुलसी को, असुर जलन्धर नाम पति को।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा, लीन्हा शंकर से संग्राम।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे, मरही न तब हर हरिही पुकारे।
पतिव्रता वृन्दा थी नारी, कोऊ न सके पतिहि संहारी।
तब जलन्धर ही भेष बनाई, वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा, कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा।
भयो जलन्धर कर संहारा, सुनी उर शोक उपारा।
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी, लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी।
जलन्धर जस हत्यो अभीता, सोई रावन तस हरिही सीता।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा, धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा।
यही कारण लही श्राप हमारा, होवे तनु पाषाण तुम्हारा।
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे, दियो श्राप बिना विचारे।
लख्यो न निज करतूती पति को, छलन चह्यो जब पारवती को।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा, जग मह तुलसी विटप अनूपा।
धग्व रूप हम शालिग्रामा, नदी गण्डकी बीच ललामा।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहे, सब सुख भोगी परम पद पईहै।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा, अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत, सो सहस्त्र घट अमृत डारत।
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी, रोग दोष दुःख भंजनी हारी।
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर, तुलसी राधा मंज नाही अन्तर।
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा, बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही, लहत मुक्ति जन संशय नाही।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत, तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।
बसत निकट दुर्बासा धामा, जो प्रयास ते पूर्व ललामा।
पाठ करहि जो नित नर नारी, होही सुख भाषहि त्रिपुरारी।
दोहा
तुलसी चालीसा पढ़ही, तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल, पावही बन्ध्यहु नारी।
सकल दुःख दरिद्र हरि, हार ह्वे परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हि, ग्रह बसही पूर्णा अत्र।
लाही अभिमत फल जगत मह, लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह, सहस बसही हरीराम।
तुलसी महिमा नाम लख, तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो, जग महं तुलसीदास।
इति श्री तुलसी चालीसा
जय जय तुलसी भगवती, सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी, श्री वृन्दा गुन खानी।
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी, अब न करहु विलम्ब।
चौपाई
धन्य धन्य श्री तुलसी माता, महिमा अगम सदा श्रुति गाता।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी, हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी।
जब प्रसन्न है दर्शन दीनो, तब कर जोरी विनय उस कीनो।
हे भगवन्त कन्त मम होहू, दीन जानी जनि छाडाहू छोहु।
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी, दीन्हो श्राप कध पर आनी।
उस अयोग्य वर मांगन हारी, होहू विटप तुम जड़ तनु धारी।
सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा, करहु वास तुहू नीचन धामा।
दियो वचन हरि तब तत्काला, सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा, पुजिहौ आस वचन सत मोरा।
तब गोकुल मह गोप सुदामा, तासु भई तुलसी तू बामा।
कृष्ण रास लीला के माही, राधे शक्यो प्रेम लखी नाही।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला, नर लोकही तुम जन्महु बाला।
यो गोप वह दानव राजा, शङ्ख चुड नामक शिर ताजा।
तुलसी भई तासु की नारी, परम सती गुण रूप अगारी।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ, कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।
वृन्दा नाम भयो तुलसी को, असुर जलन्धर नाम पति को।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा, लीन्हा शंकर से संग्राम।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे, मरही न तब हर हरिही पुकारे।
पतिव्रता वृन्दा थी नारी, कोऊ न सके पतिहि संहारी।
तब जलन्धर ही भेष बनाई, वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा, कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा।
भयो जलन्धर कर संहारा, सुनी उर शोक उपारा।
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी, लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी।
जलन्धर जस हत्यो अभीता, सोई रावन तस हरिही सीता।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा, धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा।
यही कारण लही श्राप हमारा, होवे तनु पाषाण तुम्हारा।
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे, दियो श्राप बिना विचारे।
लख्यो न निज करतूती पति को, छलन चह्यो जब पारवती को।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा, जग मह तुलसी विटप अनूपा।
धग्व रूप हम शालिग्रामा, नदी गण्डकी बीच ललामा।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहे, सब सुख भोगी परम पद पईहै।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा, अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत, सो सहस्त्र घट अमृत डारत।
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी, रोग दोष दुःख भंजनी हारी।
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर, तुलसी राधा मंज नाही अन्तर।
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा, बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही, लहत मुक्ति जन संशय नाही।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत, तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।
बसत निकट दुर्बासा धामा, जो प्रयास ते पूर्व ललामा।
पाठ करहि जो नित नर नारी, होही सुख भाषहि त्रिपुरारी।
दोहा
तुलसी चालीसा पढ़ही, तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल, पावही बन्ध्यहु नारी।
सकल दुःख दरिद्र हरि, हार ह्वे परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हि, ग्रह बसही पूर्णा अत्र।
लाही अभिमत फल जगत मह, लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह, सहस बसही हरीराम।
तुलसी महिमा नाम लख, तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो, जग महं तुलसीदास।
इति श्री तुलसी चालीसा
तुलसी जी की आरती लिरिक्स Tulasi Mata Aarti Lyrics in Hindi
तुलसी चालीसा पाठ करने के पश्चात तुलसी जी की आरती भी करें। आरती करने से ही पूजा संपन्न मानी जाती है।
तुलसी जी की आरती/Tulsi Ji Ki Aarti
जय जय तुलसी माता, सब जग की सुखदाता।
जय जय तुलसी माता.....।
सब योगों के ऊपर, सब लोगों के ऊपर,
रुज से रक्षा करके भव त्राता।
जय जय तुलसी माता.....।
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
जय जय तुलसी माता.....।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि, तुम हो विख्याता।
जय जय तुलसी माता.....।
लेकर जन्म विजन में आई, दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से, सुख संपत्ति पाता।
जय जय तुलसी माता.....।
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है उनका, तुम से कैसा नाता।
जय जय तुलसी माता.....।
इति श्री तुलसी आरती
जय जय तुलसी माता, सब जग की सुखदाता।
जय जय तुलसी माता.....।
सब योगों के ऊपर, सब लोगों के ऊपर,
रुज से रक्षा करके भव त्राता।
जय जय तुलसी माता.....।
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
जय जय तुलसी माता.....।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि, तुम हो विख्याता।
जय जय तुलसी माता.....।
लेकर जन्म विजन में आई, दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से, सुख संपत्ति पाता।
जय जय तुलसी माता.....।
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है उनका, तुम से कैसा नाता।
जय जय तुलसी माता.....।
इति श्री तुलसी आरती
तुलसी चालीसा पाठ के फायदे Tulsi Mata Chalisa, Aarti Pujan Benefits in Hindi
- तुलसी चालीसा का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है।
- हमेशा धन धान्य के भंडार भरे हुए रखने के लिए तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- श्री हरि विष्णु जी को भोग के साथ तुलसी भी अर्पित की जाती है, बिना तुलसी के छप्पन भोग भी संपूर्ण नहीं माना जाता है।
- श्री हरी प्रिया तुलसी जी का चालीसा पाठ करने से विष्णु जी की कृपा भी प्राप्त करते होती है।
- घर के वातावरण को प्रेम और सौहार्द पूर्ण बनाने के लिए तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- तुलसी चालीसा का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- तुलसी माता आरोग्य और धन की देवी है, इसलिए इनकी पूजा करने से सभी रोग दोष दूर होते हैं और घर में धन की कोई कमी नहीं होती है।
- तुलसी चालीसा का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है और समाज में मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
भजन श्रेणी : माता रानी भजन (Mata Rani Bhajan)
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।
धन तुलसी पूरण तप कीनो,
शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी ॥
धूप-दीप-नवैद्य आरती,
पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥
सभी सखी मैया तेरो यश गावें,
भक्तिदान दीजै महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।
हरि की पटरानी नमो-नमो ।
धन तुलसी पूरण तप कीनो,
शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी ॥
धूप-दीप-नवैद्य आरती,
पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥
सभी सखी मैया तेरो यश गावें,
भक्तिदान दीजै महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।