घाटे पानी सब भरे अवघट भरे न कोय मीनिंग Ghate Pani Sab Bhare Meaning

घाटे पानी सब भरे अवघट भरे न कोय मीनिंग Ghate Pani Sab Bhare Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/ Bhavarth Sahit

घाटे पानी सब भरे, अवघट भरे न कोय,
अवघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय.
 
Or
 
घाटे पानी सब भरे, अवघट भरे ना कोय,
अवघट घाट कबीर का, भरे सौं निर्मल होय।

Ghate Pani Sab Bhare, Avghat Bhare Na Koy,
Avghat Ghat Kabirt Ka, Bhare So Nirmal Hoy.

कबीर के दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Ghate Pani Sab Bhare Kabir Doha

कबीर साहेब की वाणी है की सभी एक ही घाट से पानी भरते हैं, यथा कुआ, तालाब और नदी। इनसे आशय बाह्य है। कबीर साहेब इसके स्थान पर हृदय/चित्त रूपी घाट से पानी भरते हैं जहाँ से कोई अन्य पानी नहीं भरता है। ऐसा विचित्र घाट है साहेब का। आत्मा की जन्म जन्मांतर की प्यास उसी घाट से बुझ सकती है। भाव है की वह घाट ईश्वरीय है, दिव्य है। अवघट से आशय दुर्लभ से है, चूँकि सभी आसानी से बाह्य रूप से भक्ति करते हैं लेकिन साहेब का घाट बहुत ही जतन उपरान्त खोज में आ पाता है। इस घाट से जो भी पाणी भरता है वह वास्तविक रूप में निर्मल हो जाता है. 
 
 
घाटे पानी सब भरे अवघट भरे न कोय मीनिंग Ghate Pani Sab Bhare Meaning

 
कबीर साहेब ने अपनी वाणी में एक गहरे अर्थ से यह कहा है कि सभी मनुष्य एक ही मूल के हैं, जैसे कि सभी एक ही घाट से पानी भरते हैं। कबीर बता रहें है की सभी जीवों का उद्गम एक ही है, एक ही स्त्रोत से सभी की उत्पत्ति हुई है, इश्वर एक ही है जो विभिन्न जीवों की रचना करता है। लेकिन सभी उसे कुछ अलग तरीके से याद करते हैं, ऐसे में उनके घाट से कबीर साहेब का घाट कुछ अलग है। साहेब का घाट ईश्वरीय और अद्वितीय है, क्योंकि इससे ही जन्म जन्मान्तर से भटकती हुई आत्मा की प्यास बुझती है और वह निर्मल हो उठती है। लेकिन साहेब का यह घाट भी आसानी से/सुलभता से उपलब्ध नहीं होता है।


कुँए, तालाब, नहर और नदी से सभी जगत ही पानी भरता है। लेकिन कबीर साहेब अलग ही घाट से पानी भरते हैं। कबीर साहेब के घाट से पानी पीने से आत्मा की जन्म-जन्मांतर की प्यास केवल उस अनंत जल से ही शांत हो सकती है। शरीर के भीतर जो कबीर साहब का दिव्य घाट है, उसे जो भी स्पर्श करता है, वह मन को निर्मलता से भर देता है।
 
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