पीछे लागा जाइ था लोक वेद के साथि हिंदी मीनिंग Pichhe Laga Jaai Tha Lok Ved Ke Sathi Meaning Kabir Ke Dohe

पीछे लागा जाइ था लोक वेद के साथि हिंदी मीनिंग Pichhe Laga Jaai Tha Lok Ved Ke Sathi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning/Kabir Sakhi Hindi Bhavarth Sahit

पीछे लागा जाइ था, लोक वेद के साथि।
आगै थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि॥

Piche Laga Jayi Tha, Lok Ved Ke Sathi,
Aage The Satgur Milya, Deepak Diya Hathi.
Peechhe Laaga Jaayi Tha, Lok Ved Ke Saathi.
Aagai Thain Satagur Milya, Deepak Deeya Haathi.
 
पीछे लागा जाइ था लोक वेद के साथि हिंदी मीनिंग Pichhe Laga Jaai Tha Lok Ved Ke Sathi Meaning Kabir Ke Dohe

कबीर के दोहे के शब्दार्थ : Word Meaning of Kabir Doha/Sakhi
पीछे लागा जाइ था-अनुकरण करना.
लोक वेद के साथि-लोगों के द्वारा मान्य मत का पालन करना.
आगै थैं सतगुर मिल्या-आगे चलकर सतगुरु मिल गए.
दीपक दीया हाथि-ज्ञान को प्रदत्त करना.

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग : साधक ज्ञान के अभाव में लोगों का अँधा अनुसरण करता था. वह लोगों और वेदों का अनुसरण करता था. आगे चलकर सतगुरु से भेंट हो गई और गुरु ने साधक के हाथों में ज्ञान का दीपक हाथों में थमा दिया जिससे उसकी अन्धानुकरण की प्रवृति नष्ट हो गई है। और ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो गया. गुरु के ज्ञान के कारण ही सत्य का मार्ग प्रशस्त हुआ है और साधक की स्वंय से मुलाक़ात हो पाई है, स्वंय को जान पाया है. उल्लेखनीय है की अज्ञान का अँधेरा वहीँ पर उत्पन्न होता है जहां ज्ञान के प्रकाश का अभाव है. गया ज्ञान का दीपक कौन दे सकता है, निश्चित ही गुरु. गुरु के कारण ही माया का भान होता है. सतगुरु के संपर्क में आने से पहले साधक मिथ्या, आडम्बर और लोकाचार के पालन में लगा रहता है. उसे ज्ञान नहीं होता है की यह भी भ्रम ही है और साधना मार्ग में आने वाले भटकाव हैं. देखादेखी भी भटकाव ही है. कबीर की इस साखी/दोहे में "दीपक में रूपकातियोक्ति अलंकार और "दीपक दिया" में छेकानुप्राश अलंकार का उपयोग हुआ है।
 
अब मैं राम के गुण गाउं,
राम के गुण गाऊँ अपने श्याम के गुण गाउँ,
अब मैं राम के गुण गाउं।

गंगा नहाउं न जमुना नहाउं,
ना कोई तीरथ जाउं
अडसठ तीरथ है घटमांही,
काहे मैं मल में नहाऊँ,
अब मैं राम के गुण गाउं।

डाली न तोडुं, पाती न तोडुं,
ना कोई जीव सताउं
पात पात में राम बसत है,
वहीं को शीश नमाऊं,
अब मैं राम के गुण गाउं।

योगी न होउं, न जटा रखाउं,
ना अंग भभूत लगाउं,
जो रंग रंगा आप विधाता,
ओर क्या रंग चढ़ाऊँ,
अब मैं राम के गुण गाउं।

जान कुल्हाडा कस कस मार,
 शबद कमान चढ़ाऊँ,
पांचो चोर बसे घट मांही
वहीं को मार भगाऊँ,
अब मैं राम के गुण गाउं।

चांद सूर्य दोनों सम कर जानुं,
प्रेम की सेज बिछाऊँ,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
आवागमन मिटाऊँ,
अब मैं राम के गुण गाउं। 

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