हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहिं मीनिंग कबीर के दोहे

हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहिं मीनिंग Hindu Kahu To Main Nahi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Bhavarth

हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं, मुसलमान भी नाहिं।
पाँच तत्व का पूतरा, गैबी खेलै माहिं।।
या
हिन्दू कहूं तो हूँ नहीं, मुसलमान भी नाही,
गैबी दोनों बीच में, खेलूं दोनों माही।
 
Hindu Kahu To Main Nahi, Musalman Bhi Nahi,
Panch Tatv Ka Putara, Gaibi Khele Mahi

कबीर के दोहे का हिंदी अर्थ Kabir Ke Dohe Ka Hindi Arth

कबीर साहेब इस इस दोहे में सन्देश दिया है की जीवात्मा समस्त सांसारिक नामकरण और बंधनों से मुक्त है। कबीर साहेब कहते हैं की मैं हिन्दू नहीं हु और नाहीं मैं मुसलमान ही हूँ। दिव्य आत्मा तो पांच तत्व के पिंजरे में गा रही है / उल्लास के साथ खेल रही है। पांच तत्व यथा पृथ्वी, अग्नि, जल, वाया आदि जड़ तत्वों से शरीर का पुतला बना हुआ है और उसमें अदृश्य अविनाशी चेतन क्रीड़ा करता है, खेलती है। साहेब का भाव है की आत्मा किसी बंधन में नहीं बंध सकती है, वह तो पांच तत्व की पिंजरे में विचरण कर रही है। अतः देह को हिन्दू कहो या मुसलमान इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अतः हिन्दू या मुसलमान के नाम पर संघर्ष करना व्यर्थ है। 
 
हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहिं मीनिंग Hindu Kahu To Main Nahi Meaning
 

हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहिं शब्दार्थ Hindu Kahu To Main Nahi Word Meaning

  • हिन्दू कहूँ तो : यदि कोई मुझे हिन्दू कहे/साहेब स्वंय को हिन्दू मुस्लिम से नहीं जोड़ते हैं।
  • मैं नहीं : कबीर साहेब कहते हैं की मैं (कबीर) हिन्दू नहीं हूँ।
  • मुसलमान भी नाहिं : मैं तो मुसलमान भी नहीं हूँ।
  • पाँच तत्व : पञ्च तत्व।
  • का पूतरा : पुतला (देह )
  • गैबी : गाती है (आनंदित है )
  • खेलै : खेलती है।
  • माहिं : के अंदर।

Meaning in English

In this couplet, Kabir Sahib conveys the message that the individual soul (jivatma) is free from worldly nomenclature and limitations. He states that he is neither a Hindu nor a Muslim. Instead, he identifies with the divine soul that resides within, which joyfully plays and sings within the cage of the five elements.

The body is formed from the five elements – earth, fire, water, air, and more – and within it, the imperishable and unseen conscious essence engages in playful activities. Kabir Sahib's intention is to emphasize that the soul cannot be confined by any worldly bindings. It exists within the cage of the five elements, playing and rejoicing. Therefore, whether one identifies as Hindu or Muslim makes no difference. Thus, engaging in conflicts based on religious identities is futile.

कबीर साहेब ईश्वर का कोई रूप नहीं देखते थे और उन्होंने घोषित किया की ब्रह्म तो कण कण में व्याप्त है लेकिन उसका कोई आकार भी नहीं है। वे सभी के घट में व्याप्त हैं इसलिए ईश्वर को किसी धर्म और जाती से जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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