गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय मीनिंग अर्थ Guru Govind Dou Khade Meaning

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय मीनिंग अर्थ Guru Govind Dou Khade Meaning : Kabir Ke Dohe Bhavarth/Meaning

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
या
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥ 

Guru Govind Dou Khade Kaako Laagoon Paayan.
Balihaaree Guru Aapane Jin Govind Diyo Bataay.
Or
Guroo Govind Dono Khade, Kaake Laagoon Paany.
Balihaaree Guroo Apane Govind Diyo Bataay.
 

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय शब्दार्थ Guru Govind Dou Khade Hindi Word Meaning

  • गुरू : मास्टर, वह जो सद्मार्ग दिखाए, शिक्षा देने वाला।
  • गोविन्द : ईश्वर।
  • दोऊ : दोनों (गुरु और गोविन्द)
  • खड़े : समक्ष हैं।
  • काके : किसके।
  • लागूं : लगु (किसके पैरों को स्पर्श करूँ )
  • पांय : पाँव।
  • बलिहारी : न्योछावर जाना।
  • अपने : आपने (गुरु ने )
  • दियो बताय : ईश्वर के बारे में परिचय दिया है।

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय मीनिंग अर्थ /भावार्थ हिंदी में

गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हैं, पहले किसके पाँव छुए जाएँ ? जटिल प्रश्न है क्योंकि कबीर ने स्थान स्थान पर गुरु को ही ईश्वर तुल्य माना है। दोनों यदि एक साथ आ जाए तो ? इस पर कबीर साहेब की वाणी है की वे गुरु के ही पाँव पहले छुएंग क्योंकि उन्होंने ही गोविन्द का ज्ञान करवाया है /गोविन्द के विषय में जानकारी दी है।आशय है की गोविन्द का स्थान गुरु के बाद में ही आता है क्योंकि गुरु ही गोविन्द से मुलाक़ात करवाने में सक्षम है.
 
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय मीनिंग अर्थ Guru Govind Dou Khade Meaning

 
गुरु और गोविंद यानी भगवान दोनों एक साथ खड़े हैं, ऐसे में कबीर साहेब का प्रश्न है की किसका आदर पहले किया जाय, किसके पाँव पहले स्पर्श किया जाए ? पहले किसके चरण-स्पर्श करें। कबीरदास जी कहते हैं, हमें गुरु को प्रणाम पहले करना चाहिये क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है, इश्वर से परिचय करवाया है। 
गुरु और गोविन्द दोनों एक साथ खड़े हैं, गुरु के पाँव पहले छूने का कारण है कि गुरु ने ही विद्या द्वारा गोविन्द का ज्ञान करवाया है, इश्वर से परिचय करवाया है। जैसे कि अगर किसी के पास हीरा है और उसे उस हीरे के बारे में ज्ञान नहीं है, तो वह ही पत्थर के समान है। लेकिन, यदि कोई दूसरा व्यक्ति उस हीरे के बारे में ज्ञान दे तो उस हीरे की महत्व और उस व्यक्ति की महत्ता बढ़ जाती है। इस तरीके से, गुरु का ज्ञान गोविन्द की प्राप्ति में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
 
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