साधो सो सतगुरु मोंहि भावै मीनिंग

साधो सो सतगुरु मोंहि भावै मीनिंग

साधो, सो सतगुरु मोंहि भावै।
सत्त प्रेम का भर भर प्याला, आप पिवै मोंहि प्यावै।
परदा दूर करै आँखिन का, ब्रह्म दरस दिखलावै।
जिस दरसन में सब लोक दरसै, अनहद सबद सुनावै।
एकहि सब सुख-दु:ख दिखलावै, सबद में सुरत समावै।
कहैं कबीर ताको भय नाहीं, निर्भय पद परसावै।
 
साधो सो सतगुरु मोंहि भावै मीनिंग
 
इस दोहे में कबीर साहेब सन्देश देते हैं की सच्चा गुरु वह होता है जो स्वंय हरी नाम के प्याले पीये और मुझे भी पिलाये। आखों के सामने के परदे को दूर कर पूर्ण ब्रह्म के दर्शन करवाये। माया रूपी भरम का पर्दा जो दूर करे वही सच्चा भक्त होता है। जिस दर्शन में सभी के दर्शन होते हैं, ऐसा अनहद नाद गुरु सुनाते हैं। सभी सुख दुःख जहां एक हो जाते हैं, प्रत्येक शब्द हरी के नाम से युक्त हो जाता है। साहेब की वाणी है की ऐसा गुरु जो सद्मार्ग का मार्ग दिखाए उसे किस प्रकार का गम, आशय है की उसे कोई गम नहीं होता है। कबीर इस दोहे में सच्चे गुरु की कसौटी बताते हैं। कबीर कहते हैं कि उन्हें वह गुरु प्यारा है जो अपने ज्ञान और प्रेम को दूसरों के साथ बाँटता है। वह गुरु आँखों के परदे उठाकर ब्रह्म के दर्शन कराता है। ब्रह्म के दर्शन में सभी लोकों के दर्शन हो जाते हैं और अनहद शब्द सुनाई देता है। वहाँ दु:ख-सुख एक हो जाते हैं और हर शब्द प्रेम-रस से भर जाता है। कबीर कहते हैं कि जिसको ऐसा गुरु मिल जाए उसे कोई ग़म नहीं होता है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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