कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित जानिये

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित जानिये

साध संग अन्तर पड़े, यह मति कबहु न होय ।
कहैं कबीर तिहु लोक में, सुखी न देखा कोय ॥ 

गिरिये परबत सिखर ते, परिये धरिन मंझार ।
मूरख मित्र न कीजिये, बूड़ो काली धार ॥  
 
कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित जानिये

संत कबीर गुरु के देश में, बसि जावै जो कोय ।
कागा ते हंसा बनै, जाति बरन कुछ खोय ॥

भुवंगम बास न बेधई, चन्दन दोष न लाय ।
सब अंग तो विष सों भरा, अमृत कहाँ समाय ॥

तोहि पीर जो प्रेम की, पाका सेती खेल ।
काची सरसों पेरिकै, खरी भया न तेल ॥

काचा सेती मति मिलै, पाका सेती बान ।
काचा सेती मिलत ही, है तन धन की हान ॥ 

कोयला भी हो ऊजला, जरि बरि है जो सेव ।
मूरख होय न ऊजला, ज्यों कालर का खेत ॥ 

मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठि का जाय ।
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन लाय ॥ 

ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट ।
ज्ञानी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट ॥

साखी शब्द बहुतक सुना, मिटा न मन क मोह ।
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह ॥ 
1. साध संग अन्तर पड़े, यह मति कबहु न होय।
कहैं कबीर तिहु लोक में, सुखी न देखा कोय॥

अर्थ: संतों की संगति से मनुष्य का चित्त शुद्ध होता है, जिससे सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। कबीर दास जी कहते हैं कि तीनों लोकों में कोई भी व्यक्ति सच्चे सुख को नहीं पा सका।

2. गिरिये परबत सिखर ते, परिये धरिन मंझार।
मूरख मित्र न कीजिये, बूड़ो काली धार॥

अर्थ: पहाड़ की चोटी से गिरना और धरती की गहरी खाई में गिरना दोनों ही खतरनाक हैं। मूर्ख मित्र से बचना चाहिए, क्योंकि वह काली धारा की तरह है, जो डुबो देती है।

3. संत कबीर गुरु के देश में, बसि जावै जो कोय।
कागा ते हंसा बनै, जाति बरन कुछ खोय॥

अर्थ: संत कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति गुरु के देश में बसता है, वह कागे से हंसा बन जाता है। उसकी जाति और वर्ण कुछ भी नहीं खोते।

4. भुवंगम बास न बेधई, चन्दन दोष न लाय।
सब अंग तो विष सों भरा, अमृत कहाँ समाय॥

अर्थ: भुवंगम (सर्प) का विष भी चंदन के गुण को नहीं छू सकता। जैसे चंदन में कोई दोष नहीं लगता, वैसे ही संत का शरीर विष से भरा होता है, फिर भी उसमें अमृत समाया होता है।

5. तोहि पीर जो प्रेम की, पाका सेती खेल।
काची सरसों पेरिकै, खरी भया न तेल॥

अर्थ: जो व्यक्ति सच्चे प्रेम से पीर (गुरु) की सेवा करता है, वह सच्चा साधक है। जैसे कच्ची सरसों को पीसने से तेल नहीं बनता, वैसे ही बिना सच्चे प्रेम के साधना अधूरी रहती है।

6. काचा सेती मति मिलै, पाका सेती बान।
काचा सेती मिलत ही, है तन धन की हान॥

अर्थ: कच्चे (अस्थिर) मन से ज्ञान मिलता है, और पक्के (स्थिर) मन से वाणी मिलती है। कच्चे मन से मिलना तन और धन की हानि है।

7. कोयला भी हो ऊजला, जरि बरि है जो सेव।
मूरख होय न ऊजला, ज्यों कालर का खेत॥

अर्थ: कोयला भी आग में तपकर उजला हो जाता है, लेकिन मूर्ख व्यक्ति कभी उजला नहीं होता, जैसे कालिख से भरा हुआ खेत।

कबीर के इन दोहों में सत्संगति, मूरख मित्रता, गुरु की महिमा और सच्चे ज्ञान का महत्व दर्शाया गया है। वे कहते हैं कि सच्चे साधुओं की संगति से ही जीवन में सुख और शांति प्राप्त हो सकती है। जो व्यक्ति गलत संगति में पड़ता है, वह अपने ज्ञान और भक्ति को खो देता है और जीवन में अज्ञान के कारण दुखों का सामना करता है।

मूर्ख मित्रता का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा पड़ता है। कबीरजी समझाते हैं कि जैसे कोई पर्वत की ऊंचाई से गिरकर बीच में फंस सकता है, वैसे ही गलत संगति व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है। मूर्ख की संगति से व्यक्ति का आत्मिक, मानसिक और सामाजिक ह्रास होता है। इसलिए, सज्जन और विद्वान लोगों की संगति में रहना ही सर्वोत्तम है।

गुरु के ज्ञान का महत्व बताते हुए कबीरजी कहते हैं कि सतगुरु की शिक्षाओं को अपनाने से व्यक्ति आध्यात्मिक और मानसिक रूप से परिपूर्ण हो सकता है। जैसे कागा (कौवा) हंस बन सकता है, वैसे ही सच्ची संगति से व्यक्ति अपने दोषों को त्यागकर श्रेष्ठ बन सकता है। वे यह भी बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति केवल बाहरी रूप से सुधार करता है, लेकिन भीतर अज्ञान और अहंकार से भरा होता है, तो वह वास्तविक रूप से नहीं बदल सकता।

अंततः, कबीरजी ज्ञान और अज्ञान का अंतर समझाते हैं। वे कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति को कितना भी समझाने का प्रयास किया जाए, वह अपने अज्ञान से मुक्त नहीं होता। जैसे कोयला जलकर भी उजला नहीं होता, वैसे ही अज्ञानी व्यक्ति सही मार्ग नहीं अपनाता। सच्चा ज्ञान व्यक्ति को पारस के समान बना सकता है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति सच्चे ज्ञान को नहीं अपनाता, तो वह लोहे की तरह ही साधारण बना रहता है। यह संदेश व्यक्ति को सही संगति, सच्चे गुरु, और वास्तविक ज्ञान की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है, जिससे उसका जीवन सार्थक और सफल हो सके।
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