सरल हिंदी अर्थ में कबीर साहेब के दोहे

सरल हिंदी अर्थ में कबीर साहेब के दोहे

ब्राह्मण केरी बेटिया, मांस शराब न खाय ।
संगति भई कलाल की, मद बिना रहा न जाए ॥

जीवन जीवन रात मद, अविचल रहै न कोय ।
जु दिन जाय सत्संग में, जीवन का फल सोय ॥

दाग जु लागा नील का, सौ मन साबुन धोय ।
कोटि जतन परमोधिये, कागा हंस न होय ॥ 
 
सरल हिंदी अर्थ में कबीर साहेब के दोहे

जो छोड़े तो आँधरा, खाये तो मरि जाय ।
ऐसे संग छछून्दरी, दोऊ भाँति पछिताय ॥

प्रीति कर सुख लेने को, सो सुख गया हिराय ।
जैसे पाइ छछून्दरी, पकड़ि साँप पछिताय ॥

कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय ।
विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय ॥

सज्जन सों सज्जन मिले, होवे दो दो बात ।
गहदा सो गहदा मिले, खावे दो दो लात ॥

तरुवर जड़ से काटिया, जबै सम्हारो जहाज ।
तारै पर बोरे नहीं, बाँह गहे की लाज ॥

मैं सोचों हित जानिके, कठिन भयो है काठ ।
ओछी संगत नीच की सरि पर पाड़ी बाट ॥

लकड़ी जल डूबै नहीं, कहो कहाँ की प्रीति ।
अपनी सीची जानि के, यही बड़ने की रीति ॥ 
1. ब्राह्मण केरी बेटिया, मांस शराब न खाय।
संगति भई कलाल की, मद बिना रहा न जाए॥

अर्थ: ब्राह्मण की बेटियाँ मांस और शराब नहीं खातीं, लेकिन यदि वे शराबियों (कलाल) की संगति करती हैं, तो मद (मदिरा) के बिना नहीं रह पातीं। कबीर दास जी यह कहते हैं कि संगति का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।

2. जीवन जीवन रात मद, अविचल रहै न कोय।
जु दिन जाय सत्संग में, जीवन का फल सोय॥

अर्थ: जीवन में रात और मद (मदिरा) दोनों हैं, और कोई भी व्यक्ति अविचल (अडिग) नहीं रह सकता। लेकिन जो व्यक्ति दिन में सत्संग करता है, उसका जीवन सफल होता है।

3. दाग जु लागा नील का, सौ मन साबुन धोय।
कोटि जतन परमोधिये, कागा हंस न होय॥

अर्थ: नीले रंग का दाग यदि लग जाए, तो सौ मन साबुन से भी नहीं धुलता। लाख प्रयास करने पर भी, कौआ हंस नहीं बन सकता। कबीर दास जी यह कहते हैं कि स्वभाव को बदला नहीं जा सकता।

4. जो छोड़े तो आँधरा, खाये तो मरि जाय।
ऐसे संग छछून्दरी, दोऊ भाँति पछिताय॥

अर्थ: छछून्दरी (छछूंदर) को पकड़ने पर वह मर जाती है, और छोड़ने पर अंधेरे में खो जाती है। ऐसे संग से दोनों ही स्थितियों में पछतावा होता है। कबीर दास जी यह कहते हैं कि बुरी संगति से बचना चाहिए।

5. प्रीति कर सुख लेने को, सो सुख गया हिराय।
जैसे पाइ छछून्दरी, पकड़ि साँप पछिताय॥

अर्थ: जो व्यक्ति सुख पाने के लिए प्रीति (मोह) करता है, वह सुख खो देता है। जैसे छछून्दरी को पकड़ने पर वह साँप बन जाती है, वैसे ही मोह से सुख की प्राप्ति नहीं होती।
 
कबीर के इन दोहों में संगति के प्रभाव और उसके महत्व को गहन रूप से व्यक्त किया गया है। वे समझाते हैं कि किसी व्यक्ति की संगति उसकी प्रवृत्तियों को निर्धारित करती है। यदि कोई सच्चरित्र है लेकिन बुरी संगति में पड़ जाता है, तो उसकी आदतें धीरे-धीरे बदल जाती हैं। जैसे ब्राह्मण की बेटी, जिसे मांस और मद्य से दूर रहना चाहिए, यदि मदिरा प्रेमी समाज में रहती है, तो वह भी बिना मद्य के रह नहीं सकती। यह उदाहरण बताता है कि गलत संगति व्यक्ति को अपनी मूल प्रकृति से अलग कर सकती है।

कबीरजी कहते हैं कि जीवन में सत्संगति का बहुत महत्व है। जीवन का असली सुख वही है, जो सत्संग में बिताया जाए। यदि कोई व्यक्ति बुरी आदतों और गलत विचारों में खो जाता है, तो उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है। इसके विपरीत, सत्संगति से आत्मिक शुद्धता प्राप्त होती है और जीवन सार्थक हो जाता है। वे बताते हैं कि गलत आदतों को मिटाना कठिन होता है, जैसे नील के दाग को मिटाने के लिए कितना भी साबुन लगाया जाए, फिर भी वह पूरी तरह नहीं हटता।

संगति को लेकर कबीरजी विषधर (साँप) और मणिधर (धार्मिक व्यक्ति) का उदाहरण देते हैं। साँप यदि मणिधर से मिले, तो वह अपना विष त्यागकर अमृतमय हो सकता है। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति सज्जनों की संगति में रहता है, तो उसमें भी अच्छे गुण विकसित होते हैं। गलत संगति से व्यक्ति पतन की ओर बढ़ता है और उसकी स्थिति अस्थिर हो जाती है।

कबीरजी अंतिम दोहों में समझाते हैं कि जीवन में नीच संगति बहुत हानिकारक होती है। वे कहते हैं कि जल में लकड़ी डालने से वह डूबती नहीं है, लेकिन यदि लकड़ी को जल में भिगोया जाए, तो वह धीरे-धीरे सड़ जाती है। इसी तरह, गलत संगति व्यक्ति को धीरे-धीरे पतन की ओर ले जाती है। वे सलाह देते हैं कि व्यक्ति को अपनी संगति सोच-समझकर चुननी चाहिए, ताकि उसका जीवन सच्चे ज्ञान और भक्ति से परिपूर्ण हो सके। यह संदेश आत्मचिंतन करने और सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
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