इस भजन का मूल सन्देश यह है कि हमें अपने मन को इश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। जब हम मन को इश्वर की भक्ति में लगा लेते हैं, तो हम दुनिया की मायाओं से मुक्त हो जाते हैं और ईश्वर को प्राप्त कर लेते हैं।
इस भजन में, कबीर दास कहते हैं कि जब मन इश्वर की भक्ति में रम जाता है, तो वह इतना संतुष्ट और आनंदित हो जाता है कि उसे कुछ और बोलने की जरूरत नहीं रहती है। वह बस मौन होकर इश्वर का ध्यान करता है। कबीर दास का मानना था कि ईश्वर हमारे अंदर ही है। हमें बाहर जाकर उसे खोजने की जरूरत नहीं है। हमें अपने मन में ईश्वर को खोजना चाहिए। इस भजन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने मन को शांत करना चाहिए और उसे इश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले लिरिक्स
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले, क्या बोले फिर क्योँ बोले, हीरा पाया बांध गठरिया, हे बार बार वाको क्यों खोले, हलकी थी जब चढ़ी तराजू, हे पूरी भई तब क्या तोलै, हंसा पावे मानसरोवर, हे ताल तलैया में क्यों डोले, तेरा साहब है घर माँहीं, हे बाहर नैना क्यों खोलै, कहै कबीर सुनो भाई साधो, हे साहिब मिल गया तिल ओले।
मन मस्त हुआ फिर क्या बोले, क्या बोले फिर क्योँ बोले,
कबीर की शिक्षाओं के अनुसार, ईश्वर कहाँ है ?
परमात्मा स्वयं के भीतर मौजूद है और आंतरिक प्रतिबिंब और प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से पाया जा सकता है।
परमात्मा का सच्चा मंदिर हृदय का मंदिर है, पूजा का बाहरी स्थान नहीं।
परमात्मा हर जगह मौजूद है और प्रकृति, संगीत और कला के अन्य रूपों के माध्यम से इसका अनुभव किया जा सकता है। कण कण में ईश्वर का ही अंश है।
परमात्मा दूसरों की सेवा और दया और करुणा के कार्यों में पाया जा सकता है। प्रत्येक प्राणी उस परम परमात्मा की कृति है।
परमात्मा को सभी प्राणियों की एकता की मान्यता और गैर द्वैतवाद के अभ्यास में पाया जा सकता है।
परमात्मा को हठधर्मिता या धार्मिक अनुष्ठानों के बजाय भक्ति और परमात्मा के प्रति प्रेम के माध्यम से पाया जा सकता है।
KABIR BHAJAN" Man mast hua fir kya bole || मन मस्त हुआ फिर क्या बोले || kaluraam bamaniya
"मन मस्त हुआ फिर क्या बोले, क्या बोले फिर क्योँ बोले," - कबीर दास कहते हैं कि जब मन इश्वर की भक्ति में रम जाता है, तो उसे कुछ और बोलने की जरूरत नहीं रहती है। "हीरा पाया बांध गठरिया, हे बार बार वाको क्यों खोले," - कबीर दास कहते हैं कि जब हम मन को इश्वर की भक्ति में लगा लेते हैं, तो हमें इसे अपने पास रखना चाहिए। हमें इसे बार-बार खोलकर दुनिया की मायाओं में नहीं फंसना चाहिए।