रानी सती दादी मंगल पाठ तृतीया स्कंध भजन लिरिक्स

रानी सती दादी मंगल पाठ तृतीया स्कंध Rani Sati Dadi Mangal Paath

रानी सती दादी मंगल पाठ तृतीया स्कंध लिरिक्स Rani Sati Dadi Mangal Paath Lyrics Hindi

तृतीय स्कन्ध
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

भाषा टीका
दैत्यों को मारनेवाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देनेवाली' देवी! 
मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परमसुख दो, रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान ) दो, जय (मोह और विजय) दो। यश ( मोह-विजय तथा ज्ञान प्राप्ति रूप यश ) दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ॥

चौपाई
यह सब चरित कथा कहा मैं गाई। दूसरी कथा सुनो मेरे भाई ॥
जाली राम एक वैश्य सुजाना। रहते थे दिल्ली जग जाना ॥
दयावान, सुंदर मति धीरा व्यापारी थे अति गंभीरा ॥
लेन देन धंधा करते थे। खूब भक्ति शिव की करते थे ।
गुणवंती थी नारी सुंदर रहती पति सेवा में तत्पर ॥
नारी धर्म पालन करती थी। साधु संत सेवा करती थी ॥
गति अनुसार समय जाता था। धंधा भी अच्छा चलता था।
एक समय की बात बताऊँ। मति अनुसार प्रसंग सुनाऊँ ।
नगर हिसार अति विख्याता। जालीराम रूके मग जाता ॥
मिली सूचना जब नवाब को। झट बुलवाया जालीराम को ॥

दोहा
सेनापति झट ले गया, जालीराम को आय।
खास महल में ले गया, झड़चन्द दिया मिलाय ॥1॥
चौपाई
बहु प्रकार आदर देखाई । राजोचित् कीन्ही पहुनाई ॥
राजनीति का बात चलाई। अर्ध-निशा चर्चा में जाई॥

जालीराम की देखि चतुरता । बोले वचन नवाब तुरंता॥
सब प्रकार दूंगा सनमाना। आदर, ओहदा, धन अरू धाना ॥
पद दीवान आप अपना लो। मित्र हमारी बात न टालो ॥
क्षणभर सोच किया मन मांई। कैसे अब मैं करूँ मनाई ॥
कह नवाब दीवान सुजाना। शीघ्रदिल्ली से वापस आना ॥
शीश नवा, अनुशासन लीन्हा । तुरत शयन व्यापारी कीन्हा॥
प्रातः काल गणेश मनाई। रथ दिल्लीकी ओर चलाई ॥
आकर सारी कथा सुनाई। सुनि हरषी शारद मन मांई ॥
जालीराम कहा समुझाई। चलने की अब करो उपाई ॥

दोहा
नगर हिसार पहुँच कर, डेरा दीन्ह डाल।
काम दीवानी का सभी, जल्दी लिया सम्भाल ॥2॥
 
चौपाई
बहु प्रकार कल्पना लगाई। राजकाज करते मन लाई ॥
ऐसी सुंदर नीति बनाई। जालीराम की फिरी दुहाई ॥
बांसल गोत्र जाति जालाना। दो सुत एक सुता जग जाना ॥
जेठे सुत थे तनधन दासा। मात-पिता, गौ, ब्राह्मणदासा ॥
रण बाँकुर तलवार प्रवीणा। तैसा ही व्यापार प्रवीणा ॥
सुता एक थी सुंदर श्यामा गुणवंती थी स्याना नामा ॥
दूजे पुत्र कमलाराम थे। सबकी आँखों के तारे थे ॥
मात-पिता, भ्राता अनुसारी। अति विनीत अति आज्ञाकारी ॥

दोहा
जालीराम प्रसन्न थे, मन में सभी प्रकार ।
सुत, दारा, धन धान्य से, पूरे थे भण्डार |॥3 ।।
दयावान परिवार था, पत्नी जालीराम ।
तनधन पुत्र सुजान थे, दूजे कमलाराम ॥4॥ चौपाई

गौ ब्राह्मण सेवा करते थे। खूब प्रसन्न सभी रहते थे ॥
था नवाब का पुत्र सुजाना। वय किशोर सब भाँति सुहाना ॥
राजकुमार, कमल, तनधनजी। साथ खेलते थे भरकर जी ॥
कबहुँ कबड्डी खेल रचाये। कबहुँक सब मिल दौड़ लगाये ॥
कबहुँ जाय जंगल के मांई। मृगया कर घर वापस आई ॥

तनधन, कमलाराम, राजपुत। चपल तुरग दौड़ाते इत उत ॥
घोड़ी थी इक तनधन पाहीं। सूर्य अश्व भी देखि लजाहीं ॥
पीत वदन गति तेज तरारी। तनधन जी की आज्ञाकारी ॥
अश्व दौड़ में चपल तुरंगी। आगे रहती तनधन संगी॥

राजकुमार विचारे मन, कैसी तुरगि सुहाय ॥
घोड़ी तो लायक मेरे मन में गई समाय ।।5।।
यह प्रसंग यहीं छोड़कर, चलो डोकवा ग्राम ।
नारायणी रहती जहाँ, भक्तों की सुख धाम ॥6॥
सेठानी कह सेठ से हाथ जोड़ सिर नाय।
वर ढूँढों नारायणी हित, इत उत दूत पठाय 117 ॥

चौपाई
गुरसामल ने दास पठाये। जोशी जी को तुरत बुलाये ॥
लखि ब्राह्मण दम्पति सिर नाई। मन भावती आशीषा पाई ॥
वंदि चरण, ब्राह्मण बैठाये। नाना विधि पकवान जिमाये ॥
भोजन बाद आचमन कीन्हा। आशीर्वाद विप्र पुनि दीन्हा॥
करि पूजा आसन बैठारी। सुनहूँ विप्र अब बात हमारी॥
नारायणी के लिए विप्रवर ढूँढहूँ बेगि एक सुंदर वर ॥
योग्य विवाह हुई नारायणी । तेरह बरस की उमर सुहानी ॥
दम्पति शुभ विचार तु म कीन्हा। पुनि आशीष विप्रवर दीन्हा ।
बार-बार दम्पति समुझाई। ब्राह्मण गवन कियो हरषाई ॥
देखे वर अनेक नगरों में कोई न वीर चढ़ा नजरों में ॥

दोहा
देश विदेश में ढूँढ़ कर, ब्राह्मण हुयो निराश
दूल्हा योग्य न मिल सक्यो पूरी न मन की आस ॥8॥
चारुँ दिशा निहार कर, द्विजवर वापस आय।
अच्छा वर नहीं मिल सका, खबर कराई जाय ॥9 ॥

चौपाई
गुरसामल मन चिता छाई। सेठानी भी अति घबराई ॥
नींद न रात दिवस नहिं चैना। नारायणी बोली मृदु बैना ॥
चिंता मत लावो मेरि माई। कहहूँ उपाय एक समुझाई ।
विप्र पठावो नगर हिसारा। सबहिं भाँति उपकार तुम्हारा ।।
बहु प्रकार धीरज बँधवाई। द्विज वर चले गणेश मनाई ।।
सायंकाल नगर नियराई। जालीराम घर पहुँचे जाई॥
जालीराम को खबर कराये। विप्र एक द्वारे पर आये ।
आप आइ सादर सिरु नाई। अंदर तुरत गये लेवाई ॥
उचित वास मेहमान दिवाये। कहु गुरुदेव कहाँ ते आये ।
सकल प्रसंग दीवान सुनाये जेहि हित द्वार तुम्हारे आये ॥

दोहा
सकल कथा सुनि विप्र से मन में अति हरषाय ।
अर्द्धांगनी को मुदित मन । बात सुनाई जाय ॥10॥

चौपाई
सुनि पति वचन मात हरषानी। नारायणी सब भाँति सयानी ॥
सुनु प्रियतम बड़ भाग हमारे। गुरसामल बने समधी हमारे ॥
नारायणी तनधन की जोड़ी। जैसे रति अनंग की जोड़ी ॥
काढ़ पत्रिका बाँच सुनाई। हरषित हुई शारदा माई ॥
कमलाराम तेहि अवसर आये। मात-पिता सादर सिर नाये ॥
केहि कारण हरषित पितुमाई । तात कहाँ ते पाती आई ॥
सकल प्रसंग दीवान सुनाये। कमलाराम मगन हो धाये ॥
मन हरषाय विप्र पहिं जाई। हाथ जोड़बोले सिर नाई ॥
जीमन हेतु करो प्रस्थाना। गुरसामल के विप्र सुजाना ॥
भाँति-भाँति के पाक बनाये। चौकी पर आगत बैठाये ॥
हवा करे खुद जालीरामा। भोजन परसे कमलारामा ।।
तनधन और मात कर जोड़े खड़े हुए थे बायें थोडे ।
मन कल्पना करत है भूसुर जालीराम धन्य तेरो घर ॥
जालीराम के वैभव देखी। मन प्रसन्न भये अति विशेषी ॥
मन ही मन आशीष सुनावा। हेतु आचमन नीर मँगावा ॥

दोहा
भोजन कर अति प्रेम से, आशीर्वाद सुनाय ।
गवन कियो विश्राम हित, मन में अति हरषाय ॥11॥ 
चौपाई
बहु प्रकार कीन्ही पहुनाई। की आगत की बहुत बड़ाई ॥
आज्ञा हो सो करु गुसाँई। आयसु दो बालक की नाँई ॥
विप्र कहा सुनु बात हमारी। अब देरी काहे व्यापारी ॥
त्रयोदशी इक्कावन सन् का। करो लगन है हित सबही का ॥
नवमी मंगसिर सुदी सुहाई। उत्तम लगन, गौरी सुत ध्याई ॥
ले बरात आवो हे नरवर। हम भी अब चलते अपने घर ॥
विदा किये भूसुर हरषाई। दारा, सुत समेत सिर नाई ॥
बहु प्रकार दक्षिणा दिवाई। चीर, कनक, रथ, घोड़े गाई ॥

दोहा
विदा कराया विप्र को, आये अपने धाम ।
ब्राह्मण भी पहुँचा तुरत, नारायणी के ग्राम ॥12॥

चौपाई
अति आदर गुरसामल कीन्हा। आशीर्वाद महीसुर दीन्हा ॥
सकल कथा विस्तार बखानी। गुरसामल ने अति सुख मानी ॥
पत्नी को भी तुरत बुलाया। पक्का हुआ लगन बतलाया ॥
अति हरषित बोली महतारी। देवन्ह बिगड़ी बात सम्हारी ॥
अब विलम्ब केहि कारण कीजे। काम बहुत है जल्दी कीजे ॥

दोहा
विदा किया ब्राह्मण तभी, दम्पति शीश नवाय।
गुरसामल जी लग गये, तैयारी में जाय ॥13॥
यह प्रसंग यहिं छोड़कर, कथा का बदलूँ मोड़।
रूकमण बोली कृष्ण से, शीश नवा, कर जोड़ ॥

रानी सती दादी मंगल पाठ || तृतीया स्कंध || ऋषि कुमार शर्मा

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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2 टिप्पणियां

  1. Rani sati dadi mangal path part???
  2. किसी बन्धु को राणी सती दादी के मङ्गल पाठ, मङ्गल मनका, लघु मङ्गल, मङ्गल चालीसा का pdf चाहिए तो M 8005621977 से मंगा सकते है।किशन अग्रवाल