थाँणो काँई काँई बोल सुणावा भजन

थाँणो काँई काँई बोल सुणावा

 
थाँणो काँई काँई बोल सुणावा भजन

काँई काँई बोल सुणावा,
म्हाँरा साँवरा गिरधारी।

पूरब जणम री प्रीत पुराणी,
जावाणा गिरधारी।

सुन्दर बदन जोवताँ साजण,
थारी छबि बलहारी।

म्हाँरे आँगण स्याम पधारो,
मंगल गावाँ नारी।

मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ,
तण म डारां बारी।

चरण सरण री दासी मीरां,
जणम जणम री क्वाँरी।

थाँणो काँई काँई बोल सुणावा,
म्हाँरा साँवरां गिरधारी।

पूरब जणम री प्रीत पुराणी,
जावा णा गिरधारी।

सुन्दर बदन जोवताँ साजण,
थारी छबि बलहारी।

म्हाँरे आँगण स्याम पधारो,
मंगल गावाँ नारी।

मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ,
तण म डारां बारी।

चरण सरण री दासी मीरां,
जणम जणम री क्वाँरी।

शब्दार्थ- थाँऐ = तुझे, काँई काँई = क्या क्या, जीवताँ = देखती।
"काँई काँई बोल सुणावा,
म्हाँरा साँवरा गिरधारी।"

हे साँवरे गिरधारी! मैं तुझसे क्या-क्या कहूँ? तुमको व्यथा कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं ?

"पूरब जणम री प्रीत पुराणी,
जावा णा गिरधारी।"

यह प्रेम तो बहुत पुराना है, पिछले जन्मों का है, और यह सदा ऐसा ही रहेगा। हे गिरधारी! आप जानते हैं।

"सुन्दर बदन जोवताँ साजण,
थारी छबि बलहारी।"

हे साजन! तुम्हारे सुंदर रूप को निहारते-निहारते मैं तुम्हारी इस अद्भुत छवि पर बलिहारी हो जाती हूँ।

"म्हाँरे आँगण स्याम पधारो,
मंगल गावाँ नारी।"

हे श्याम! मेरे आँगन में पधारो, ताकि हर नारी मंगलगीत गाए और मेरा घर-आँगन पवित्र हो जाए।

"मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ,
तण म डारां बारी।"

तेरे स्वागत में मैं मोतियों से सजी चौकियाँ भर दूँ और तुझे देखने के लिए अपने आभूषण भी न्यौछावर कर दूँ।

"चरण सरण री दासी मीरां,
जणम जणम री क्वाँरी।"

मीरा तेरे चरणों की दासी है। मैं जन्म-जन्मांतर तक तेरी सेवा में कुवांरी बनी रहना चाहती हूँ।

प्रेम की गहराई ऐसी है कि वह जन्मों-जन्मों तक बंधन में बांधे रखती है, मानो आत्मा का कोई पुराना नाता हो, जो समय की सीमाओं को लांघ जाता है। यह प्रेम केवल इच्छा नहीं, बल्कि एक ऐसी भक्ति है जो हृदय को उस परम सौंदर्य की ओर खींचती है, जिसके दर्शन मात्र से मन मंत्रमुग्ध हो उठता है। वह सांवला रूप, जिसकी छवि देखकर आत्मा बलिहारी जाती है, न केवल आंखों को सुकून देता है, बल्कि जीवन को मंगलमय बना देता है।

हृदय उस पावन उपस्थिति की प्रतीक्षा करता है, जैसे कोई अपने प्रिय को घर बुलाकर उसका स्वागत करने को आतुर हो। मन में उत्सव का भाव है—मंगल गीत गाने की लालसा, घर-आंगन को सजाने की चाह, और हर छोटी-बड़ी तैयारी में उस प्रेम को समर्पित करने की तीव्र इच्छा। उदाहरण के लिए, जैसे कोई अपने प्रियतम के लिए द्वार पर फूलों की माला सजाता है, वैसे ही आत्मा उस परम के लिए अपने हृदय को मोतियों-सा सजा लेना चाहती है।

यह भक्ति दासत्व की भावना से ओतप्रोत है, जहां आत्मा स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर देती है। यह समर्पण ऐसा है, मानो कोई चरणों की शरण में जाकर सारी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाए। यह प्रेम विवाह के बंधन से परे है, क्योंकि यह आत्मा की शाश्वत अविवाहितता का प्रतीक है—एक ऐसी पवित्रता, जो केवल उस परम के प्रति समर्पित रहती है। यह भाव न तो बंधन है, न ही मुक्ति की मांग; यह तो बस उस प्रेम में डूब जाने की सहज अवस्था है, जो हर जन्म में साथ रहता है।

Meera Bhajan - Thane kai kai - with lyrics, Voice - Lata

थाँणो काँई काँई बोल सुणावा म्हाँरा साँवरां गिरधारी।।टेक।।
पूरब जणम री प्रीत पुराणी, जावा णा गिरधारी।
सुन्दर बदन जोवताँ साजण, थारी छबि बलहारी।
म्हाँरे आँगण स्याम पधारो, मंगल गावाँ नारी।
मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ, तण म डारां बारी।
चरण सरण री दासी मीरां, जणम जणम री क्वाँरी।।77।।
शब्दार्थ- थाँऐ= तुझे। काँई-काँई = क्या-क्या। जीवताँ = देखती ही।

प्रेम की पुकार इतनी गहन है कि वह शब्दों से परे, जन्मों के बंधन में बंधी आत्मा की वेदना बन जाती है। यह पुरातन प्रीत, जो पिछले जन्मों से चली आ रही है, कभी क्षीण नहीं होती; यह उस सांवले साजन के प्रति एक अटूट लगाव है, जिसका सुंदर रूप देखकर हृदय उसकी छवि पर न्योछावर हो उठता है। मन उस पावन आगमन की प्रतीक्षा में है, जैसे कोई अपने प्रिय को आंगन में बुलाकर मंगल गीतों से स्वागत करे। हृदय को मोतियों-सा सजाकर, उस परम के लिए सब कुछ अर्पित करने की चाह है। यह भक्ति दास्य भाव की पराकाष्ठा है, जहां आत्मा उसके चरणों में शरण लेती है, हर जन्म में उसी के प्रति समर्पित, उसी की क्वांरी दासी बनी रहती है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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