रानी सती दादी मंगल पाठ प्रथम स्कंध दादी मंगल पाठ पंडित श्री रमाकांत जी शर्मा द्वारा रचित
प्रथम स्कंध देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य॥
भाषा टीका शरणागत की पीड़ा दूर करनेवाले देवी, हम पर प्रसन्न हो । सम्पूर्ण जगत की माता! प्रसन्न हो! विश्वेश्वरी ! विश्व की रक्षा करो। देवी! तुम्ही चराचर जगत् की अधीश्वरी हो ॥
दोहा प्रथम गौरी सुत गणपति, का मन में धर ध्यान। राणी सती के चरित का, सुंदर करूँ बखान ॥1॥ मात शारदे कृपा करो, बुद्धि करो प्रदान । आस मेरी पूरन करो, दे सुंदर वरदान ॥ 2 ॥ ब्रह्मा, विष्णु महेश के, चरण कमल सिरनाय । माँ ब्रह्माणी, पार्वती, लक्ष्मी करो सहाय ॥ 3 ॥ दादी के कुलगुरु प्रभु कृष्णचन्द्र भगवान । तिनके चरण कमलऊँ, महादानी अनुमान ॥4॥ नमन करुँ गुरूदेव का जपूँ निरंतर नाम । पास रहो हरदम सदा, निशदिन आठों याम ॥5॥ मात-पिता के पदकमल, सुमिरुँ चित लगाय। जिनकी सेवा से सभी, भव बंधन कट जाय ॥6॥ देव, दनुज, नर, नाग अरू, सतियों को सिरनाय । जड़, चेतन, चर अरु अचर, सबको शीश नवाय ॥ 7 ॥ राणी सती के पद कमल, का मन में धर ध्यान । नारायणी के चरित का, मन से करुँ बखान ॥8॥
चौपाई सत की महिमा अमित अपारा। वेद शास्त्र पाये नहीं पारा ॥ पार्वती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी। सत के बल पर बनी भवानी ॥ सावित्री ने सत के बल से। छीन लिया था पति को यम से ॥ सती सुलोचना रामादल से । पति शीश लाई रघुवर से ॥ सीता सतवंती गुण खानी। तेज पुंज रघुवर महारानी ॥ सतभामा, रूकमण, राधाजी। सत से वाम भाग हरि राजी ॥ सत की महिमा सदा सुहाई। बार-बार कवियों ने गाई ॥
दोहा सत की महिमा अगम है, कैसे करु बखान । शेष शारदा, शचिपति, भी न कर सके गान ॥9 ॥ चौपाई
तदापि सकल सतियन सिर नाई। मन में दृढ़ विश्वास बनाई ॥ शारद गणपति करो सहाई। कृपा करो राणी सती माई ॥ कलयुग में प्रगटी मेरी माई। सबको सत की राह दिखाई ॥ नाम लेत उतरहिं नर पारा। मुद मंगलमय नाम तिहारा ॥
मंगल खानि, अमंगल हारी। नारायणी तेरो नाम सुखारी ॥ बहुरि सबहिं सादर सिरुनाई। करउँ कथा मुद मंगल दाई ॥ कवि ने होउँ नहीं वचन प्रवीणा। दादीजी का शरणा लीना ॥ तुलसीदास चरण सिर नाऊँ। जाकी कृपा चरित लिख पाऊँ । दोहा पुनि नारायणी पद कमल, का मन में धर ध्यान, विमल कथा सत की कहूँ, भक्त सुनो दे ध्यान ॥10॥
चौपाई सादर शिवहिं नाई अब माथा। बरनऊ राणी सती गुणगाथा ॥ सम्वत् दो हजार बत्तीसा। करहुँ कथा हरि पद धरि शीशा ॥ सोमवार नवमी का शुभ दिन। दरस दिया दादी ने जिस दिन ॥ मास पुनीत सुदी अश्विन का। पूर्व दिवस विजया दशमी का ॥ सकल सुमंगल दायक गाथा। कहहुँ कथा धरणी धर माथा ॥ पूर्व जन्म की कथा सुहाई। बरनउँ सती चरण सिर नाई ॥ महाभारत विख्यात लड़ाई। सकल जगत जानत मेरे भाई ॥ दुर्योधन एक दिवस विचारा कैसे जीतूं रण दुस्तारा ॥
चक्रव्यूह कल्पना बनाई। तेहि पल अर्जुन थे घर नाई ॥ अर्जुन संग कृष्ण भगवाना। दुर्योधन मन में अनुमाना ॥ पांडव दल में खबर कराकर रचा व्यूह योजना बनाकर ॥ चक्रव्यूह की तोड़न रीति। केवल अर्जुन को थी प्रतीति ॥ धर्मराज मन चिंता छाई। करहि विचार करुँ क्या भाई ॥ तेहि अवसर अभिमन्यु आया। ताऊजी को शीश नवाया ॥
दोहा शीश नवाया तात को, क्यों कुम्हलाया गात ॥ धर्मराज किस सोच में, ऐसी क्या है बात ॥11॥
चौपाई कहहुँ तात चिंता केहि हेतु। मुख पर ये ग्लानि केहि हेतु। धर्मराज कह सुनु चितलाई। कठिन व्यूह की रचना बनाई ॥ केवल अर्जुन लड़ सकता था। चक्रव्यूह भंग कर सकता था ॥ अर्जुन करे सुदूर लड़ाई। एहि कारण चिंता घिर आई ॥ धर्मराज चिंतामय जाने। अभिमन्यु ने वचन बखाने ॥ तोड़न चक्र तात जाऊँगा। रण कौशल अब दिखलाऊँगा । भीम कहे सुनु कहन हमारा। अति कोमल है राजकुमारा ॥ कृष्ण बहन का प्राण पियारा। अर्जुन की आँखों का तारा ॥ हाथ जोड़ बोला अभिमन्यु योद्धा का सुत है अभिमन्यु ॥
दोहा शीश नवा बोला तभी, अर्जुन पिता हमार । कृष्ण बहन माता मेरी, गुरु हैं द्रोणाचार्य 112 ॥
चौपाई सुनहु तात गुप्त एक बाता। बैठे बतलाये पितु माता ॥ तेहि दिन पितु द्रोण गुरु पाही। रचना चक्रव्यूह पढ़ आही ॥ चक्रव्यूह रचना समझाये। माता सुनती ध्यान लगाये ॥ मैं था मात गर्भ के मांई। जब पितु ने यह कला बताई ॥ व्यूह तोड़ बाहर आने की, रीति बताई जब आगे की ॥ सुनहु बात तेहि अवसर ताता। आ गई नींद सो गई माता ॥ एहि कारण बाहर आने की। रीति न सीख सका इस रण की ॥ चक्र तोड़ वापस आऊँगा। श्री चरणों में शीश नवाऊँगा । विदा कीन्ह उत्तरा हरषकर। माथे तिलक कियो माँ हँसकर ॥
(तर्ज राधेश्याम रामायण)
रथ किया तैयार सारथी ने, घोड़े सुंदर जुतवाये हैं। और सब प्रकार के अस्त्र शस्त्र, रथ के अंदर रखवाये हैं ॥ अभिमन्यु बनाके वीर वेश, जब रथ के पास पधारे हैं। जय घोष हुआ चहुँ ओर, सभी ने आशीर्वचन उचारे हैं। जय घोष सुना जब महलों में, उत्तरा बहुत हरषाई है ॥ पति रण को जाने वाले हैं, झट आरती थाल सजाई है। सब सोलह साज बदन पर है, मुख चमके चंदा की नाई ॥ दासी कर आरती थाल थमा, वह मुख्य द्वार पर है आई ॥ रथ रूका पति का आकर के, अभिमन्यु रथ से उतर पड़े ॥ देखा जब पति का वीर वेश, प्रेमाश्रु नयन से ढुलक पड़े ॥ पति बोले हमको करो विदा, हे मृगलोचनि हरषाकरके ॥ चढ़ गया वीर रस अबला पर, अरु वचन कहे मुसकाकरके ॥ जावो स्वामी रणभूमि में, और विजय प्राप्त करके आना ॥ छक्वे छुट जाये दुश्मन के, तुम ऐसे करतब दिखलाना ॥ अभिमन्यु बोले सुनो प्रिये, मैं रण में प्रलय मचा दूंगा ॥ कौरव दल के महारथियों को, मैं नाको चने चबा दूँगा ॥ लाशों का ढेर लगा दूँगा, हे प्रिया आज रणभूमि में ॥
शोणित की नदी बहा दूँगा, हे प्रिया आज रणभूमि में ॥ नहीं तेरी माँग लजाऊँगा, अर्जुन का पुत्र कहाऊँगा ॥ बलशाली भी म, युधिष्ठर का, मैं आज नाम चमकाऊँगा ॥ हे प्रिया करो मत तुम् चिंता, नहीं मां का दूध लजाऊँगा ॥ या तो आऊंगा युद्ध जीत, या वहीं खेत रह जाऊँगा ॥ उत्तरा कहे जावो, प्रियतम, और माथे तिलक लगाया है। पति के चरणों का स्पर्श किया, और जय जयकार सुनाया है। प्यारी पत्नी से विदा होय, माता को शीश नवाया है। पय धार लगी बहने माँ के, बेटे को गले लगाया है। फिर आशीर्वचन सुना करके, बोली जावो रण भूमि में। रणदेवी तुम्हें पुकार रही, जावो बेटा रणभूमि में ॥
दोहा माता बोली हरषकर, विजयी होकर आय। बेटा मेरी कोख को, देना नहीं लजाय ॥13॥
चौपाई चरण वन्दि कियो वीर पयाना। संग लिया सारथी सुजाना ॥ दौड़ वीर रणभूमि आयो। रथ को वेग और बढ़वायो । रक्षक दिल सब पीछे छूटा। दौड़ लगाई घेरा टूटा ॥ चक्रव्यूह के अंदर जाकर मार काट करता बढ़-बढ़कर ॥ हाहा कार चहुं दिसि माच्यो। जीवित संमुख कोई न बाच्यो ॥ कट कट मुंड धरण गिरते थे ॥ हा हा कार सभी करते थे ॥ कटे असंख्य मुंड तेहि काला। रूंड मुंड शोणित बह नाला ॥ छोड़ लड़ाई भागन लागे। भगदड़ मची फौज भई आगे ॥ सप्तरथी मन चिंता छाई। केहि विधि काबू करें लड़ाई ॥
दोहा सबने मिल मंत्रणा करी, द्रोण कहे धरि धीर । मिलकर चारों ओर से, सभी चलावो तीर ।। 14 ॥
चौपाई
Dadi Sati Bhajan Lyrics in Hindi
सप्तरथी ने छोड़ सभी को घेर लिया उस बाल रथी को ॥ बालक एक और रथी साता। फिर भी लड़ा वीर विख्याता ॥ सातों ने मिल तीर चलाये। अभिमन्यु के गात समाये । बालक वीर पड्यो धरणी पर। शत्रु भी लौटे अति थककर ॥ खबर युधिष्ठर पहुँ जब आई। कैसी अशुभ बात बतलाई ॥ हाय दूत क्या खबर सुनाई। कैसे कहूँ महल में जाई॥ भीम, नकुल, सहदेव बतावो। अभिमन्यु से मुझे मिलावो ॥ भीम कहाँ अतुलित बल तेरा। कित छोड़ा अभिमन्यु मेरा ॥ हाय देव मैं काह बिगारा। काहे दीन्हा दुःख दुस्तारा ॥ हा! सुत हा! आँखों के तारे। पांडव कुल के राज दुलारे ॥ धरती मां मोहे तुमहि बतावो। अपने अंदर मुझे समावो ॥ आँखों में आँसू की धारा। सुबक भीम यह वचन उचारा। धीरज धारण कजे भ्राता। होता वही जो करे विधाता ॥ सुनत वचन बोले विकलाई। कैसे धीरज धारुँ भाई ॥ अर्जुन जब पूछेगा भ्राता। कहाँ गया अभिमन्यु ताता ॥ सुता उत्तरा जब पूछेगी। अभिमन्यु मुझसे माँगेगी ॥ रूदन महान महल में छायो। तेहि अवसर अर्जुन घर आयो । कृष्ण कहे सबको समुझाई। चिंता छोड़ उठो मेरे भाई ॥
दोहा अमर नाम अभिमन्यु ने, किया वीरगति पाय। वंश नाम रोशन किया, सकल जगत के माय ॥
चौपाई
मात सुभद्रा तेहि पल आई। जैसे बछड़ा ढूँढे गाई ॥ धर्मराज व्याकुल भये भारी। भीम, नकुल, अर्जुन, असुरारी ॥ नयन नीर ढूँढे चहुँ ओरा। कहाँ गया अभिमन्यु मोरा ॥ कहाँ गया गाण्डीव तुम्हारा सौ गज का अतुलित बल सारा ॥ चक्र सुदर्शन कहाँ तुम्हारा। कित भाणज अभिमन्यु प्यारा ॥ आ बेटा तेरी मात पुकारे। क्यों रूठा कुछ तो बतला रे ॥ हाय पुत्र तूं प्यासा होगा। नहिं कुछ खाया भूखा होगा ॥ आ बेटा तेरा मुख धुलवाँ दूँ। अपने हाथों तुझे खिला दूँ ॥ कैसे अब मैं धीरज धारुँ । पुत्र वधू से काह उचाऊँ ॥ एक बार तो धीर बंधा दे। चंदा सा तेरा मुख दिखला दे ॥ विकल होय कर होश गँवाई। सुधि नहिं पड़ी धरण पर जाई ॥ तेहि काल बहु रूदन मचाई। सभा बीच उत्तरा सिधाई ॥ बिखरे बाल माँग थी सूनी। हाथ जोड़ बोली सुन गुन्नी ॥ पति सिधाये यमपुर लोका हमको केहि कारण से रोका ॥ सती होने की आज्ञा दे दो। हमको भी पति संग जाने दो ॥ दोहा
बिना पति कुछ भी नहीं, सूना सब संसार। मात-पिता, सुत, धन सभी, बिन उनके बेकार ॥
चौपाई
सुनि सबके मुख गये सुखाई। मुख पर बात एक नहि आई ॥ कठिन समय जाना भगवाना। बोले वचन हृदय अनुमाना ॥ गर्भवती हो मेरी बेटी छोड़ो संग जाने की हेठी ॥ तुम चक्रवती होगा सुत तेरा नाम परीक्षित वचन है मेरा॥
दोहा 'अभिमन्यु से मिलन का, सुन लो सही उपाय । कलयुग में लेगा जन्म, एक वैश्य घर जाय ॥
चौपाई सती होने की आस तुम्हारी पूरी होगी राजकुमारी ॥ कलयुग में जब तू जनमेगी। शुभ नारायणी नाम धरेगी। अभिमन्यु भी कलयुग माई जन्मे तनधन नाम धराई॥ तनधन संग रचाय विवाहा। सती होगी मैं दिन मुकलावा ॥ जो जन मेरी भक्ति करेंगे। मुझसे पहले तुझे नवेंगे ॥ घर-घर तेरी पूजा होगी। क्या गृहस्थ क्या तापस जोगी ॥ जो राणी सती नाम जपेगा। सुख सम्पति से पूर्ण रहेगा । गाँव झुंझनुं वास करेगी। घर-घर सत की ज्योत जलेगी ॥ कन्या घ्यावे, घर, वर पावे। युवती सुंदर पुत्र खिलावे ॥ वृद्धा जपे अमर पद पावे, व्यापारी धन खूब कमावे ॥
दोहा रोग, दोष सारे कटें, जो कोई तुमको ध्याय । वैभव सकल मिले उसे, 'रमाकान्त' गुण गाय ॥18
चौपाई
रोगी जपे, रोग छुट जावे, भूत, पिशाच निकट नहिं आवे ॥ मंगल उत्सव ब्याह सगाई। पूजा, हवन, कथा सुखदाई ॥ सकल काज पल में सँवरेंगे। जो नर तेरा ध्यान धरेंगे ॥ पार्वती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी। संतोषी माता गुण खानी ॥ तेरे तन में वास करेगी। जब तू अग्नि प्रवेश करेगी। जदपि अनेक नाम जग माँही। मेरा वास तेरे मन माँही ॥ एहि कारण यह नाम दिया है 'नारायणी' कल्याण किया है। कह उत्तरा सुनहु गिरधारी। शिरोधार्य आज्ञा प्रभु थारी ॥ सकल सभा हर्षित भई भारी। साधु-साधु की ध्वनि उचारी ॥ एहि प्रकार कलयुग के मांई। लियो जन्म उत्तरा सुहाई ॥ नारायणी सो नाम सुहायो। कलयुग में आनंद बढ़ायो । कथा पुनीत सकल जगजानी। तेहि ते मैं संक्षेप बखानी ॥ पूर्व जन्म की कथा सुहाई। 'रमाकांत' सेवक कह गाई ॥ मुख्य कथा अब करुँ आरम्भा। शीश नवाय मात जगदम्बा ॥ जेहि विधि किया चरित शुभकारी। नाम राणी सती दादी धारी ॥ बहुरि सकल देवन्ह सिर नाई। कहहुँ चरित्र कवित्त बनाई ॥
दोहा भारत देश महान है, जग में है विख्यात । उसी भूमि पर आयकर, जन्म लियो सती मात ॥19 ॥ गुरु की आज्ञा मानकर, पति पद नेह लगाय। छोटे से एक गाँव में, जन्म लियो है जाय ॥20॥
रानी सती दादी मंगल पाठ || प्रथम स्कंध || ऋषि कुमार शर्मा
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