श्री राम चालीसा Shree Ram Chalisa
श्री राम चालीसा का पाठ भगवान श्री राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने का सरल और प्रभावशाली माध्यम है। यह चालीसा भगवान श्री राम की महिमा का वर्णन करती है और उनके भक्तों को प्रेरित करती है। ऐसा माना जाता है कि इसे श्रद्धा और नियम से पढ़ने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में शांति और समृद्धि आती है। आइए, इसे सरल शब्दों में समझें।
॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
॥ चौपाई ॥
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥ १॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
जय जय जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥ २॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥ ३॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥ ४॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥ ५॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥ ६॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥ ७॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥ ८॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥ ९॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥ १०॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥ ११॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥ १२॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥ १३॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥ १४॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥ १५॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥ १६॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥ १७॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥ १८॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥ १९॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥ २०॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥ २१॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥ २२॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥ २३॥
॥ दोहा ॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
॥ चौपाई ॥
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥ १॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
जय जय जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥ २॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥ ३॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥ ४॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥ ५॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥ ६॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥ ७॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥ ८॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥ ९॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥ १०॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥ ११॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥ १२॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥ १३॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥ १४॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥ १५॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥ १६॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥ १७॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥ १८॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥ १९॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥ २०॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥ २१॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥ २२॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥ २३॥
॥ दोहा ॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
॥चौपाई॥
श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
हे रघुनाथजी! आप भक्तों का कल्याण करने वाले हैं। कृपया हमारी प्रार्थना सुनें।
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥
जो व्यक्ति दिन-रात आपका ध्यान करता है, उसके जैसा कोई दूसरा भक्त नहीं हो सकता।
श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
हे रघुनाथजी! आप भक्तों का कल्याण करने वाले हैं। कृपया हमारी प्रार्थना सुनें।
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥
जो व्यक्ति दिन-रात आपका ध्यान करता है, उसके जैसा कोई दूसरा भक्त नहीं हो सकता।
ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥
भगवान शिवजी भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं। ब्रह्मा और इंद्र भी आपकी महिमा का पूरा ज्ञान नहीं पा सके।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥
आपके दूत हनुमानजी, जिनके प्रभाव को तीनों लोकों ने जाना है, आपकी महिमा का बखान करते हैं।
जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥
हे कृपालु रघुनाथजी, आपकी जय हो! आप हमेशा संतों की रक्षा करते हैं।
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
हे कृपालु प्रभु, आपकी भुजाएं प्रचंड शक्ति से भरी हैं। आपने रावण का वध करके देवताओं की रक्षा की।
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥
हे प्रभु, आप अनाथों के नाथ हैं और दीन-दुखियों के सदा सहायक हैं।
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
ब्रह्मा आदि देवता भी आपकी महिमा का पूरा बखान नहीं कर सकते। वे सदा आपकी स्तुति करते हैं।
चारिउ बेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
चारों वेद आपकी महिमा के साक्षी हैं। आपने हमेशा अपने भक्तों की लाज रखी है।
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥
सरस्वती माता भी मन ही मन आपके गुणों का गान करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा को नहीं समझ सके।
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥
जो कोई आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई नहीं हो सकता।
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
श्रीराम का नाम अपरंपार है। चारों वेद आपकी महिमा का वर्णन करते हैं।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
भगवान गणेश ने आपका नाम स्मरण किया, और आपने उन्हें प्रथम पूज्य बना दिया।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
शेषनाग सदा आपका नाम जपते हैं और पृथ्वी का भार अपने सिर पर धारण करते हैं।
भगवान शिवजी भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं। ब्रह्मा और इंद्र भी आपकी महिमा का पूरा ज्ञान नहीं पा सके।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥
आपके दूत हनुमानजी, जिनके प्रभाव को तीनों लोकों ने जाना है, आपकी महिमा का बखान करते हैं।
जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥
हे कृपालु रघुनाथजी, आपकी जय हो! आप हमेशा संतों की रक्षा करते हैं।
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
हे कृपालु प्रभु, आपकी भुजाएं प्रचंड शक्ति से भरी हैं। आपने रावण का वध करके देवताओं की रक्षा की।
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥
हे प्रभु, आप अनाथों के नाथ हैं और दीन-दुखियों के सदा सहायक हैं।
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
ब्रह्मा आदि देवता भी आपकी महिमा का पूरा बखान नहीं कर सकते। वे सदा आपकी स्तुति करते हैं।
चारिउ बेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
चारों वेद आपकी महिमा के साक्षी हैं। आपने हमेशा अपने भक्तों की लाज रखी है।
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥
सरस्वती माता भी मन ही मन आपके गुणों का गान करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा को नहीं समझ सके।
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥
जो कोई आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई नहीं हो सकता।
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
श्रीराम का नाम अपरंपार है। चारों वेद आपकी महिमा का वर्णन करते हैं।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
भगवान गणेश ने आपका नाम स्मरण किया, और आपने उन्हें प्रथम पूज्य बना दिया।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
शेषनाग सदा आपका नाम जपते हैं और पृथ्वी का भार अपने सिर पर धारण करते हैं।
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥
जो कोई आपके नाम का स्मरण करता है, उसके लिए बड़े से बड़ा बोझ भी फूल के समान हल्का हो जाता है। आपकी महिमा का पार कोई नहीं पा सकता।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
श्री भरत जी ने आपके नाम को अपने हृदय में धारण किया, इसलिए उन्हें कभी युद्ध में हार का सामना नहीं करना पड़ा।
जो कोई आपके नाम का स्मरण करता है, उसके लिए बड़े से बड़ा बोझ भी फूल के समान हल्का हो जाता है। आपकी महिमा का पार कोई नहीं पा सकता।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
श्री भरत जी ने आपके नाम को अपने हृदय में धारण किया, इसलिए उन्हें कभी युद्ध में हार का सामना नहीं करना पड़ा।
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
शत्रुघ्न जी के हृदय में आपके नाम का प्रकाश था। आपके नाम का स्मरण करते ही उनके सभी शत्रु नष्ट हो गए।
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
लक्ष्मण जी आपके आज्ञाकारी थे और उन्होंने हमेशा संतों की रक्षा की।
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥
उनसे कोई भी युद्ध में नहीं जीत सका, चाहे स्वयं यमराज ही क्यों न लड़ाई में आ जाएं।
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
महालक्ष्मी जी ने अवतार लेकर हर प्रकार से पापों का नाश किया।
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
सीता-राम का पवित्र नाम गाया जाता है। माता भुवनेश्वरी ने अपने प्रभाव को प्रकट किया।
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
माता सीता घड़े से प्रकट हुईं, जिनके रूप को देखकर चंद्रमा भी लज्जित हो गया।
सो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निधि चरणन में लोटत॥
जो नित्य आपके चरणों की सेवा करता है, उसके चरणों में नव निधियां (अमूल्य धन) समर्पित होती हैं।
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
अठारह प्रकार की सिद्धियां जो मंगलकारी हैं, वे आपकी कृपा से प्राप्त होती हैं।
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
जितने भी प्रभुत्व और ऐश्वर्य हैं, वे सब आपने ही रचा है, हे सीता पति श्री राम।
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
आपकी इच्छा मात्र से करोड़ों संसारों की रचना पल भर में हो जाती है।
शत्रुघ्न जी के हृदय में आपके नाम का प्रकाश था। आपके नाम का स्मरण करते ही उनके सभी शत्रु नष्ट हो गए।
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
लक्ष्मण जी आपके आज्ञाकारी थे और उन्होंने हमेशा संतों की रक्षा की।
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥
उनसे कोई भी युद्ध में नहीं जीत सका, चाहे स्वयं यमराज ही क्यों न लड़ाई में आ जाएं।
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
महालक्ष्मी जी ने अवतार लेकर हर प्रकार से पापों का नाश किया।
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
सीता-राम का पवित्र नाम गाया जाता है। माता भुवनेश्वरी ने अपने प्रभाव को प्रकट किया।
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
माता सीता घड़े से प्रकट हुईं, जिनके रूप को देखकर चंद्रमा भी लज्जित हो गया।
सो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निधि चरणन में लोटत॥
जो नित्य आपके चरणों की सेवा करता है, उसके चरणों में नव निधियां (अमूल्य धन) समर्पित होती हैं।
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
अठारह प्रकार की सिद्धियां जो मंगलकारी हैं, वे आपकी कृपा से प्राप्त होती हैं।
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
जितने भी प्रभुत्व और ऐश्वर्य हैं, वे सब आपने ही रचा है, हे सीता पति श्री राम।
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
आपकी इच्छा मात्र से करोड़ों संसारों की रचना पल भर में हो जाती है।
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जो कोई आपके चरणों में मन लगाता है, उसकी मुक्ति निश्चित हो जाती है।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
आपकी जय हो, जय हो, जय हो, हे प्रभु, आप ज्योति स्वरूप, निर्गुण ब्रह्म और अद्वितीय हैं।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
आप सत्यस्वरूप हैं। हे सत्य और सनातन, अंतर्यामी प्रभु, आपकी जय हो।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
जो आपका भजन करता है, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों फल प्राप्त करता है।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
गौरीपति भगवान शिव ने सत्य की शपथ खाकर कहा कि आप भक्तों को भक्ति के साथ-साथ सभी सिद्धियां प्रदान करते हैं।
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
हे श्री राम, सुन लीजिए। आप ही हमारे पिता हैं। आप भरत के कुल में पूजनीय हैं।
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
आप ही देवताओं के देव हैं, आप ही हमारे गुरु और प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
जो कुछ भी है, वह सब आप ही हैं। हे प्रभु, हमारी लाज रखें। आपकी जय हो।
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
हे प्रभु राम, आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ नंदन, आपकी जय हो।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
हे ज्ञान स्वरूप प्रभु, हमें ज्ञान दीजिए। हे जगपति, हे जगत के राजा, आपको प्रणाम।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
आप धन्य हैं, आपका प्रताप धन्य है। आपके नाम से ही सभी संताप मिट जाते हैं।
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
देवताओं ने आपके सत्य और शुद्ध नाम का गान किया, और आपके नाम से शंख और दुंदुभी बजने लगे।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
जो कोई श्री राम चालीसा को पढ़ता है और राम के चरणों में मन लगाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
जो कोई आपके चरणों में मन लगाता है, उसकी मुक्ति निश्चित हो जाती है।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
आपकी जय हो, जय हो, जय हो, हे प्रभु, आप ज्योति स्वरूप, निर्गुण ब्रह्म और अद्वितीय हैं।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
आप सत्यस्वरूप हैं। हे सत्य और सनातन, अंतर्यामी प्रभु, आपकी जय हो।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
जो आपका भजन करता है, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – चारों फल प्राप्त करता है।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
गौरीपति भगवान शिव ने सत्य की शपथ खाकर कहा कि आप भक्तों को भक्ति के साथ-साथ सभी सिद्धियां प्रदान करते हैं।
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
हे श्री राम, सुन लीजिए। आप ही हमारे पिता हैं। आप भरत के कुल में पूजनीय हैं।
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
आप ही देवताओं के देव हैं, आप ही हमारे गुरु और प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
जो कुछ भी है, वह सब आप ही हैं। हे प्रभु, हमारी लाज रखें। आपकी जय हो।
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
हे प्रभु राम, आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ नंदन, आपकी जय हो।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
हे ज्ञान स्वरूप प्रभु, हमें ज्ञान दीजिए। हे जगपति, हे जगत के राजा, आपको प्रणाम।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
आप धन्य हैं, आपका प्रताप धन्य है। आपके नाम से ही सभी संताप मिट जाते हैं।
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
देवताओं ने आपके सत्य और शुद्ध नाम का गान किया, और आपके नाम से शंख और दुंदुभी बजने लगे।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
जो कोई श्री राम चालीसा को पढ़ता है और राम के चरणों में मन लगाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
मंगलवॉर स्पेशल | श्री राम चालीसा | Shree Ram Chalisa (With Hindi Lyrics) | Bhajan Shrinkhla
Author - Saroj Jangir
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