कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग Kabir Ke Dohe Meaning Kabir Dohe Arth Sahit
शब्द दुरिया न दुरै, कहूँ जो ढोल बजाय |
जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय ||
जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय ||
Shabd Duriya Na Durai, Kahoon Jo Dhol Bajaay |
Jo Jan Hovai Jauhoree, Lehain Sees Chadhaay ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: कबीर साहेब की वाणी है की शबद (ईश्वर की महिमा) किसी के दूर करने/छिपाने से नहीं छिप सकती है। जो शबद के पारखी होते हैं वे / जौहरी होते हैं वे गुरु के वचनों को अपने शीश पर / सर माथे पर धर लेते हैं, उसका मोल समझ कर उसे उचित महत्त्व देते हैं। भाव है की सत्य ही ईश्वर है/ शबद है और ये शबद किसी के छुपाने से छुप नहीं सकते हैं । इनका महत्त्व समझ कर अपने जीवन में उतारना चाहिए। यह माया का भ्रम जाल है की वह सत्य को धुंधला कर देती है और जीव को उससे दूर करती है, लेकिन सत्य सदा स्थाई रहता है, कोई माने या नहीं मानें ।
हरिजन सोई जानिये, जिहा कहैं न मार |
आठ पहर चितवर रहै, गुरु का ज्ञान विचार ||
Harijan Soee Jaaniye, Jiha Kahain Na Maar |
Aath Pahar Chitavar Rahai, Guru Ka Gyaan Vichaar ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: हरिजन वाही है जो अपनी जिव्हा से कभी किसी के प्रति हिंशा का भाव प्रकट नहीं करते हैं, ना ही किसी के प्रति दुर्भावना ही रखते हैं, उसके मन में सदा गुरु का ही विचार रहता है। भाव है की जो ईश्वर को आधार मानता है वह किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखता है और नाही हिंशा का सहारा ही लेता है। वह सम भाव से आठों पहर गुरु के दिए ज्ञान पर ही विश्वास करता है।
कुटिल वचन सबते बुरा, जारि करे सब छार |
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार ||
Kutil Vachan Sabate Bura, Jaari Kare Sab Chhaar |
Saadhu Vachan Jal Roop Hai, Barasai Amrt Dhaar ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: कुटिल वचन बहुत आघात पंहुचाते हैं और साधू के वचन निर्मल जल की भाँती होते हैं जो साधुजन के मुखारविंद से अमृत के रूप में बरसते हैं। कुटिलता में लोगों को आघात पहुंचाने और नुकसान पहुंचाने की मंशा होती है वहीँ पर साधू वचन लोगों के कल्याण के लिए निहित होते हैं, जो जन के लिए अमृत रूपी होते हैं।
खोद खाद धरती सहै, काट कूट बनराय |
कुटिल वचन साधु सहै, और से सहा न जाय ||
Khod Khaad Dharatee Sahai, Kaat Koot Banaraay |
Kutil Vachan Saadhu Sahai, Aur Se Saha Na Jaay ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: धरती, वन और साधू जन सहनशील होते हैं और वे दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते हैं। धरती से मनुष्य सदा लेने में ही लगा रहता है, जंगल काटता है, खेतों के लिय जमीन को खोदता है, धातु, पत्थर के लिए धरती को आघात पहुंचाता है और ऐसे ही जंगल भी सदा कटते रहते हैं। साधू भी ऐसे ही होते हैं जो कुटिल और आघात पंहुचाने वाले वचनों को सुन कर कोई प्रतिउत्तर नहीं देते हैं, आम जन के लिए ऐसा कर पाना असंभव है। जब अहम् का भाव समाप्त हो जाता है तब जीव को किसी के शब्दों और कृत्यों से आघात नहीं लगता है और वह सभी विषयों को ईश्वर को समर्पित कर देता है।
मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार |
हते पराई आत्मा, जीभ बाँधि तरवार ||
Mukh Aavai Soee Kahai, Bolai Nahin Vichaar |
Hate Paraee Aatma, Jeebh Baandhi Taravaar ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग:यहाँ वाणी के महत्त्व को दर्शाया गया है। यही वाणी जहाँ ठेस पन्हुचाती है वहीँ पर सुख भी देती है। इसलिए बोलने से पूर्व विचार आवश्यक है और सदा मीठा ही बोलना चाहिए। जो मुख में आ गया, बगैर सोचे समझे उसे बोलने पर दूसरों की आत्मा की हत्या होती है यह ऐसे है जैसे किसी ने अपनी जिव्हा पर तलवार को बाँध लिया हो। जैसे- कोयल काको देत है कागा कासो लेत। तुलसी मीठे वचन ते जग अपनो करि लेत।। स्पष्ट है की हमें सदा मधुर बोलकर लोगों के दिलों को जीतना चाहिए, अपनी वाणी से किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
धु सती और सूरमा, इनका मता अगाध |
आशा छाड़े देह की, तिनमें अधिका साध ||
Dhu Satee Aur Soorama, Inaka Mata Agaadh |
Aasha Chhaade Deh Kee, Tinamen Adhika Saadh ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: साधू संत, सती और सूरमा तीनों ही अपने जीवन के प्रति आशा छोड़ देते हैं, जीवन के प्रति लगाव समाप्त कर देते हैं और इनका मत अगम्य होता है। इन तीनों में साधु सबसे निश्चय वाला होता है। साधू से भाव है जन कल्याण के लिए
साधु सती और सूरमा, कबहु न फेरे पीठ |
तीनों निकासी बाहुरे, तिनका मुख नहीं दीठ ||
Saadhu Satee Aur Soorama, Kabahu Na Phere Peeth |
Teenon Nikaasee Baahure, Tinaka Mukh Nahin Deeth ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: उपरोक्त की तरह ही साधू, सती और सूरमा जीवन के मोह को छोड़ चुके होते हैं और वह अपने कर्तव्य से मुंह नहीं फेरते हैं, यदि तीनों अपने उद्देश्य के लिए बाहर निकल पड़े तो वापस मुड़ कर नहीं लौटते हैं। भाव ही की यदि यह कोई प्रण कर लें तो उसे पूरा करते हैं।
ये तीनों उलटे बुरे, साधु, सती और सूर |
जग में हँसी होयगी, मुख पर रहै न नूर ||
Ye Teenon Ulate Bure, Saadhu, Satee Aur Soor |
Jag Mein Hansee Hoyagee, Mukh Par Rahai Na Noor ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: साधू सती और सूरमा ये तीनों ही यदि अपने उद्देश्य से विमुख होते हैं तो जग हँसाई के पात्र बनते हैं, और इनके मुख पर से नूर समाप्त हो जाता है। यदि कोई कार्य हाथ में लिया जाय तो उसे पूर्ण करना चाहिए अन्यथा जग हँसाई होती है।
चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस |
ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस ||
Chaal Bakul Kee Chalat Hai, Bahuri Kahaavai Hans |
Te Mukta Kaise Chuge, Pade Kaal Ke Phans ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: मिथ्या और आडम्बर करके झूठे दिखावे से कोई कार्य सार्थक नहीं होने वाला है, यदि चाल तो बगुले की है, आचरण में बगुले के गुण हैं और यदि वह हंस होने का ढोंक करता है तो उसे मुक्ता (मोती) नहीं मिलने वाले हैं, मोती तो उसे ही मिलने वाले हैं जो सच्चा हंस है। भाव है की भक्ति का दिखावा और आडम्बर करने वाला भले ही अपने मन में प्रशन्न हो जाए लेकिन उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होने वाली है, ईश्वर की प्राप्ति के लिए उसे सच्चे मन से गुरु के वचनों का अनुसरण करके सत्य की राह पर चलना होगा, माया के भ्रम जाल को समझ कर उससे दूर रहना होगा तभी जाकर वह ईश्वर की भक्ति रूपी मुक्ताफल को प्राप्त कर पायेगा । ऐसे ढोंगी और पाखंडी व्यक्ति को एक रोज काल अपना शिकार बना लेगा।
शब्द विचारे पथ चलै, ज्ञान गली दे पाँव |
क्या रमता क्या बैठता, क्या ग्रह कांदला छाँव ||
Shabd Vichaare Path Chalai, Gyaan Galee De Paanv |
Kya Ramata Kya Baithata, Kya Grah Kaandala Chhaanv ||
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: यदि शबद पर विचार कर लिया, सत्य को समझ लिया और गुरु के बताये सतमार्ग पर चल पड़े, ज्ञान की गली में पाँव दे दिया और आगे बढ़ चले तो फिर वह जीव कहीं पर भी रहे, घर, गुफा/जंगल या पेड़ों की छाँव में वह सदा ही सम भाव से अपने उद्देश्य पर लगा रहता है, वह विचलित नहीं होता है। शबद क्या है, शबद है गुरु का बताया मार्ग जो सद्मार्ग है, सत्य का मार्ग है और ईश्वर की और जीव को ले जाता है, यह मार्ग माया के मार्ग का खंडन करता है। यदि इस पर आगे बढ़ा जाए तो अन्य कोई भी दुविधा उसे विचलित नहीं कर पाती है।
गुरु के सनमुख जो रहै, सहै कसौटी दूख |
कहैं कबीर ता दुःख पर वारों, कोटिक सूख ||
Guru Ke Sanamukh Jo Rahai, Sahai Kasautee Dookh |
Kahain Kabeer Ta Duhkh Par Vaaron, Kotik Sookh ||
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : जो जीव गुरु के बताये गए मार्ग का अनुसरण करता है और सतमार्ग पर चलते वह भले ही लाखों दुखों को सहे, उनके मार्ग में कितनी भी मुश्किलें आएं, लेकिन साहेब की वाणी है की ऐसे दुखों पर करोड़ों सुखो को न्योछावर कर देना चाहए। सद्मार्ग पर चलने पर कई मुश्किलें आएँगी लेकिन उनसे डर कर विचलन नहीं करना चाहिए।
कवि तो कोटि कोटि हैं, सिर के मूड़े कोट |
मन के मूड़े देखि करि, ता संग लिजै ओट ||
Kavi To Koti Koti Hain, Sir Ke Moode Kot |
Man Ke Moode Dekhi Kari, Ta Sang Lijai Ot ||
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : कविता बना कर शब्दों को एक तय मात्रा और लय में बाँध देने से व्यक्ति कवी जरुर कहला सकता है लेकिन यदि उन शब्दों / विचारों को स्वंय के जीवन में नहीं उतारा तो उसकी कविता व्यर्थ ही होती है। ऐसे ही कई वेश बना कर, सर को मुंडा कर भक्ति का पाखंड करते हैं, लेकिन वे सत्य से कोसों दूर होते हैं। सर को मुंडाने से कोई लाभ नहीं होने वाला अपितु मन को मुंडाना ही सार्थक है, मन को मुंडवाने से अभिप्राय है की लोभ, माया, रिश्ते नाते, और जगत के आकर्षण को छोडकर ईश्वर के सुमिरण में अपना जीवन व्यतीत करना ही इस जीवन का सार है, उद्देश्य है।
बोली ठोली मस्खरी, हँसी खेल हराम |
मद माया और इस्तरी, नहि सन्त के काम ||
Bolee Tholee Maskharee, Hansee Khel Haraam |
Mad Maaya Aur Istaree, Nahi Sant Ke Kaam ||
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : माया जनित कामों में अपने जीवन को व्यर्थ की समाप्त कर देना समझदारी का कार्य नहीं है। ठिठोली, हंसी मजाक, और ऐसे ही व्यर्थ के कार्यों में अपने जीवन को जो जीव बर्बाद करता है वह एक रोज पछताता है, ऐसे ही मद, माया और स्त्री भी ईश्वर की भक्ति में बाधक हैं क्योंकि ये जीव को संसार के जाल की और पुनः धकेलते हैं, इसे जितना शीघ्र समझ लिया जाय उतना ही फायदा है, अन्यथा एक रोज काल तो आना ही है, जीवन में किये गए कार्यों का हिसाब भी लिया जाना निश्चित ही है।
भेष देख मत भूलये, बुझि लीजिये ज्ञान |
बिना कसौटी होत नहिं, कंचन की पहिचान ||
Bhesh Dekh Mat Bhoolaye, Bujhi Leejiye Gyaan |
Bina Kasautee Hot Nahin, Kanchan Kee Pahichaan ||
कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : वर्तमान समय में हम देखते हैं की लोग सिर्फ दिखावे को ही महत्त्व देते हैं, कौन कैसा है उसकी परख नहीं करते हैं। मात्र भगवा पहन लेने से, चिमटा, तुम्बा हाथ में लेने से कोई संत नहीं बन जाता है, इसके लिए उसके ज्ञान की परीक्षा होनी चाहिए, क्या वह सच्चा साधू है ? ढोंग का सहारा लेकर ही रावण माता सीता को हर ले गया था !, अतः यह कसौटी हर व्यक्ति को करनी चाहिए की कौन सच्चा है और किसने झूठा आडम्बर रच रखा है। सोने की पहचान भी कसौटी पर ही होती है, अन्यथा पीतल और सोना देखने में एक जैसे लग सकते हैं । वर्तमान सन्दर्भ में साहेब की वाणी को देखें तो ईश्वर के नाम पर पाखंड और मिथ्या आचरण करने वाले बाबा रोज ही पकडे जाते हैं, ये कैसे इतनी बड़ी संख्या में लोगों को भ्रमित कर देते हैं। कारण है लोग बगैर परखे एक दुसरे को देख कर अनुसरण करने लग जाते हैं, जिससे ऐसे ढोंगी बाबबों की दुकाने चल पड़ती हैं। हमें चाहिए की किसी के आवरण पर नहीं बल्कि उसके गुणों और व्यक्तिगत जीवन का अनुसंधान करके ही उस पर यकीन किया जाना चाहिए।
जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥
Jaisee Mukh Tain Neekasai, Taisee Chaalai Chaal.
Paarabrahm Neda Rahai, Pal Mein Karai Nihaal.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : जीव यदि आत्मा की सुने और जैसी वाणी बह बोलता है उसी के अनुरूप अपना चाल चलन कर ले तो वह ईश्वर की नजदीक होने लगता है। वह क्षण भर में सभी का दिल जीत लेता है और उनको अपना बना लेता है। भाव है की आत्मा से शुद्ध व्यक्ति का कोई बैरी नहीं होता है।
पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥
Pad Gae Man Harashiyaan, Saankhee Kahyaan Anand.
So Tat Naanv Na Jaaniyaan, Gal Mein Padiya Phand.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : जैसे भगवा पहन कर दिखावा करना, पाखण्ड करना लाभदाई नहीं है वैसे ही पद और साखी को मात्र गा देने से भी कोई लाभ प्राप्त नहीं होने वाला है, लाभ तो तभी होगा जब उसे जीवन में उतार लिया जाय,
कबीर गर्ब न कीजिये, इस जीवन कि आस |
इस दिन तेरा छत्र सिर, देगा काल उखाड़ ||
kabeer garb na keejiye, is jeevan ki aas |
is din tera chhatr sir, dega kaal ukhaad ||
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : मानव देह पर गर्व करना, अभिमान करना अज्ञानता का सूचक है। यह देह तो एक रोज समाप्त हो ही जानी है। इस देह का जो छत्र है, सर है वह काल के द्वारा उखाड़ दिया जाना तय है। जब जीव माया के जाल को समझ लेता है तो उसे इस जीवन के के स्थाई होने का भ्रम भी समझ में आने लगता है, अन्यथा वह इस संसार को ही अपना घर समझता है।
कबीर थोड़ा जीवना, माढ़ै बहुत मढ़ान |
सबही ऊभा पन्थसिर, राव रंक सुल्तान ||
Kabeer Thoda Jeevana, Maadhai Bahut Madhaan |
Sabahee Oobha Panthasir, Raav Rank Sultaan ||
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : यह जीवन अनिषित है और बहुत ही थोड़े से समय के लिए मिला है। इस थोड़े से जीवन में व्यक्ति तमाम तरह के ढोंग करता है, मिथ्या आचरण करता है, और माया के जाल में फंसता ही चला जाता है। कोई राजा हो, रंग हो सभी के आने जाने का मार्ग एक ही है इसलिए ईश्वर का सुमिरण ही मुक्ति का मार्ग है।
ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल।
दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूल।।
Aisa Yahu Sansaar Hai, Jaisa Saimbal Phool.
Din Das Ke Vyauhaar Mein, Jhoothai Rangi Na Bhool..
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : संसार की अनिश्चितता और भरम के विषय पर साहेब की वाणी है की यह संसार मिथ्या है साश्वत नहीं है, यह तो सेमल (Bombax) के फूल की तरह से है जो दिखने में बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी दीखता है लेकिन इसके अन्दर कोई तत्व नहीं है, कोई उपयोगिता नहीं है । अतः कुछ समय के लिए जीवना है इसलिए संसार को अपना नहीं समझना चाहिए और ईश्वर की भक्ति में अपने जीवन को बिताना चाहिए। सद्मार्ग ही जीवन का आधार है। सेमल के फूल से संसार की तुलना से अभिप्राय है की यह एक छलावा है जैसे सेमल का फूल बाहर से सुन्दर दीखता है और अन्दर उसके निराशा ही होती है, पक्षियों के लिए कुछ भी नहीं होता है ।
रांमही राम पुकारते, जिभ्या परीगो रौसं।
सुधा जल पीवे नहीं, खोदी पियन को हौंस।
Raammahee Raam Pukaarate, Jibhya Pareego Rausan.
Sudha Jal Peeve Nahin, Khodee Piyan Ko Hauns.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : ईश्वर की प्राप्ति हेतु साधक का अजीब हाल हो गया है, राम का नाम पुकारते पुकारते उसकी जीभा (जिव्हा ) में छाले पड़ गए हैं। जो जल प्राप्त है वह उसे नहीं पी रहा है, (सुधा जल-संसार में सुलभ साधन) लेकिन वह स्वंय के प्रयत्नों से अमृत को पीना चाहता है, खोद कर पीना चाहता है। साधक को संसार की वस्तुएं अच्छी नहीं लगती हैं। इस दोहे में अन्योक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है।
जैसी मुख तैं नीकसें, तैसी चाले नाहिं।
मानिष नहीं तै स्वांन गति, बांध्या जमपुर जाहिं।
Jaisee Mukh Tain Neekasen, Taisee Chaale Naahin.
Maanish Nahin Tai Svaann Gati, Baandhya Jamapur Jaahin.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : जो मनुष्य अपने कथनों पर नहीं टिकता है वह कुत्ते के समान होता है और उसे काल के द्वारा बांधकर जमपुर (नरक) में ले जाया जाता है। मनुष्य को सद्मार्ग पर ही चलना चाहिए और कथनी और करनी में भेद नहीं करना चाहिए। अन्यथा उसे काल के द्वारा दण्डित किया जाना तय है।
पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद।
Pad Gae Man Harashiyaan, Saashee Kahyaan Anand .
So Tat Naanv Na Jaaniyaan, Gal Mein Padiya Phand.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : ईश्वर की स्तुति में मनुष्य पद गाता है, साखी का आनंद लेता है लेकिन उसे अपने नित्य जीवन और आचरण में नहीं उतारता है तो ऐसी साखी/शबद और पद का महत्त्व समाप्त हो जाता है। वह उनके तत्व को / सारतत्व को समझ नहीं पाता है तो ऐसा समझना चाहिए की उसके गले में काल का फंदा पड़ा हुआ है।
करता दिसे कीर्तन, ऊँचा करि करि तुंड।
जाने बुझे कछु नहीं, यौ ही आंधा रुण्ड।
Karata Dise Keertan, Ooncha Kari Kari Tund.
Jaane Bujhe Kachhu Nahin, Yau Hee Aandha Rund.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : मिथ्याचार और बाह्याचार पर प्रहार करते हुए साहेब की वाणी है की जो लोग दिखावटी भक्ति करते हैं वे अपने मुख को उंचा कर कर जोर जोर से भले ही चिल्ला कर उसे कीर्तन का नाम दे दें लेकिन वे एक तरह से शीश कटा केवल धड़ है जिसमे कोई चेतना नहीं है। आडम्बरों से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है भले ही कोई कितना भी जतन कर ले। जब तत्व ज्ञान को जाना नहीं जाए, पहचाना नहीं जाए तब तक भक्ति का कोई फल प्राप्त नहीं होने वाला है।
मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग।
राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥
Main Jaanyoon Padhibau Bhalo, Padhaba Thain Bhalau Jog.
Raam-naam Soon Preeti Kari, Bhal Bhal Neendau Log.
कबीर दोहे का हिंदी अर्थ : मैंने जान लिया है की शास्त्रों का ज्ञान अच्छा है, उसे प्राप्त किया जाना चाहिए, लेकिन महज शास्त्रों में वर्णित ज्ञान को पढने से भला तो जोग (योग साधना) है, मैंने राम से प्रेम कर लिया है अब भले ही लोग मेरी कितनी ही निंदा करें।
कबीर पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ ।
बावन आषिर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाइ ॥
Kabeer Padhibo Doori Kari, Pustak Dei Bahai .
Baavan Aashir Sodhi Kari, `rarai `mamai Chitt Lai .
दोहे का हिंदी भावार्थ : महज कागजी और किताबी ज्ञान/शास्त्र ज्ञान पर कबीर साहेब की वाणी है की ऐसा ज्ञान जो व्यवहार में नहीं आता हो उनका कोई फायदा नहीं है, ऐसी किताबों को पानी में बहा देना चाहिए। बावन अक्षरों में से केवल "रकार" और "मकार" को जान ले (सोधी) और उन्हें ही अपने जीवन में उतार लें। बाकी कुछ भी महत्त्व का नहीं है।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ऐकै आषिर पीव का, पढ़ै सो पंडित होइ ॥
Pothee Padh Padh Jag Muva, Pandit Bhaya Na Koy.
Aikai Aashir Peev Ka, Padhai So Pandit Hoi .
दोहे का हिंदी भावार्थ : पोथी पढ़ पढ़ कर कोई पंडित (तत्वज्ञानी) नहीं बना है। पोथी महज किताबी ज्ञान है जिसे यदि व्यवहार में नहीं उतारा जाए तो वह व्यर्थ है। यदि एक अक्षर भी प्रेम (मानवता/भक्ति/) का पढ़ लिया जाए/जीवन में उतार लिया जाए तो वह व्यक्ति सही मायनों में पंडित है।
जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल ।
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल ॥
Jaisee Mukh Tain Neekasai, Taisee Chaalai Chaal .
Paarabrahm Neda Rahai, Pal Mein Karai Nihaal .
दोहे का हिंदी भावार्थ : यदि कोई व्यक्ती कथनी और करनी का भेद समाप्त कर देता है तो समझिये की वह परम ब्रह्म के नजदीक पहुँचका है और वह पल में निहाल हो जाने वाला है। मुख की वाणी और चाल/व्यवहार समान हो तो वह तत्व ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।
नारी कुंड नरक का, बिरला थंभै बाग।
कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूवा लाग।।
Naaree Kund Narak Ka, Birala Thambhai Baag.
Koee Saadhoo Jan Oobarai, Sab Jag Moova Laag..
दोहे का हिंदी भावार्थ : नारी (मोह-माया/सांसारिकता) नरक के कुण्ड के समान है जिससे कोई बिरला ही स्वंय को दूर कर सका है। साधु जन (जो ईश्वर के नाम को धारण करता है ) इससे उबर पाता है बाकी सभी जन, संसार तो उसके मुंह लग कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
अँधा नर चेते नहीं, कटे ना संसे सूल।
और गुनाह हरी बक्सीहे, कामी डाल ना मूल।
Andha Nar Chete Nahin, Kate Na Sanse Sool.
Aur Gunaah Haree Bakseehe, Kaamee Daal Na Mool.
दोहे का हिंदी भावार्थ : कामी और संसार की मोह माया में पड़ा हुआ व्यक्ति अज्ञान के आधीन रहता है क्योंकि उसके संशय का शूल (असमंजस) दूर नहीं होता है और वह विषय वासनाओं के मोह में फँस कर रह जाता है। ईश्वर बाकी गुनाह तो बक्श देता है लेकिन जो जीव कामी है और कामुकता वश ही व्यवहार करता है उसके गुनाह माफ़ नहीं होने वाले हैं। कामी को ईश्वर समूल नष्ट कर देता है।
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूँढत बन माहि ।
ज्यों घट घट में राम हैं दुनिया देखत नाहि ।।
Kastooree Kundal Base Mrg Dhoondhat Ban Maahi .
Jyon Ghat Ghat Mein Raam Hain Duniya Dekhat Naahi ..
दोहे का हिंदी भावार्थ : अज्ञान के कारण हिरण "कस्तूरी" (कस्तूरी एक ऐसा चिपचिपा प्रदार्थ होता है जो नर मृग के नाभि के पास एक ग्रंथि से स्त्रावित होता है जो तीक्ष्ण गंध पैदा करता है ) को वन वन ढूंढता है जबकि कस्तूरी तो उसकी नाभि में ही रहती है । ऐसे ही प्रत्येक घट में राम विराजमान होते हैं, ईश्वर का अंश सभी में है लेकिन अज्ञानता के कारण जीव उसे मंदिर मस्जिद, तीर्थ स्थानों में ढूंढता है । यह अज्ञान तभी दूर होता है जब गुरु अपने ज्ञान से जीव को प्रकाशित करता है। जब सच्चे मन से ईश्वर का सुमिरण किया जाता है तब उसके स्वंय में होने का आभास होने लगता है।
कोई एक देखै संत जन, जाके पांचू हाथि।
जाकी पांचू बस नहीं, ता हरि संग ना साथि।
Koee Ek Dekhai Sant Jan, Jaake Paanchoo Haathi.
Jaakee Paanchoo Bas Nahin, Ta Hari Sang Na Saathi.
दोहे का हिंदी भावार्थ : जिस व्यक्ति के पंच्मात्राएं (शबद, स्पर्श, रूप, रस और गंध) अधीन होती हैं, नियंत्रण में होती है वही ईश्वर के मार्ग पर बढ़ सकता है। कोई बिरला संत ही ईश्वर के दर्शन कर सकता है। जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों के अधीन होता है उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है, ईश्वर उसका संगी नहीं होता है।
सो साईं तन में बसे, भ्रम्यों ना जाणें तास।
कस्तूरी के मृग ज्यूँ, फिरि फिरि सूंघे घास।
So Saeen Tan Mein Base, Bhramyon Na Jaanen Taas.
Kastooree Ke Mrg Jyoon, Phiri Phiri Soonghe Ghaas.
दोहे का हिंदी भावार्थ : ईश्वर है कहाँ, मंदिर मस्जिद में तीर्थ में ? नहीं ईश्वर तो घट में है लेकिन माया के भ्रम के कारण जीव उसे पहचान नहीं पाता है और उसे यहाँ वहां ढूंढता फिरता है, यह ऐसे ही है जैसे मृग की नाभि में कस्तूरी होती है लेकिन वह जंगल में उसे तरह तरह की घास सूंघ कर भ्रमित रहता है। यह आत्म चेतना की ईश्वर स्वंय के अन्दर ही है गुरु के ज्ञान की आवश्यकता होती है, जब गुरु जीव को माया के भरम जाल के प्रति आगाह करता है, समझाता है तब ही कहीं जाकर उसे ईश्वर के स्वंय के अन्दर होने का आभास हो पाता है।
कबीर खोजी राम का गया जु सिंघल द्वीप।
साहिब तो घट मे बसै जो आबै परतीत।।
Kabeer Khojee Raam Ka Gaya Ju Singhal Dveep.
Saahib To Ghat Me Basai Jo Aabai Parateet..
दोहे का हिंदी भावार्थ : माया के जनित भ्रम जाल के कारण जीव को ईश्वर दिखाई नहीं देता है और वह ईश्वर को ढूंढने के लिए सिंहल द्वीप (श्री लंका) तक चला जाता है लेकिन यह सब व्यर्थ है क्योंकि ईश्वर किसी स्थान विशेष में नहीं बल्कि हृदय में निवास करते हैं लेकिन इसे पहचानने के लिए जीव को अपनी आत्मा और आचरण को शुद्ध करना पड़ता है, तब जाकर उसे ईश्वर का भान पड़ता है।
दो लागी साईर जल्या, पंशी बैठे आई।
दाधि देह न पालवे, सतगुरु गया लगाईं।
Do Laagee Saeer Jalya, Panshee Baithe Aaee.
Daadhi Deh Na Paalave, Sataguru Gaya Lagaeen.
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दोहे की हिंदी व्याख्या : आत्मा के सागर में ज्ञान और विरह की आग लग गई है। यहाँ सागर जलने की बात है।विषय और वासना रूपी पक्षी इस आशा में बैठे हैं की सागर पहले जैसा हो जाएगा, आग शांत हो जायेगी और हम फिर से इसमें विहार करेंगे। लेकिन गुरु के द्वारा लगाईं गई अग्नि कभी शांत नहीं होने वाली है, कभी पल्लवित नहीं होगी। यह साहेब की उलटबासी है जिसका भाव है की गुरु ने जो आग लगाईं है उसमे सभी विषय विकार जल रहे हैं और उनके अनुकूल कभी परिस्थिति नहीं होने वाली है।
गुरु दाधा चेला चेला जल्या, बिरहा लागी आगि,
तिनका बपुडा उबरया गलि पुरे के लागि।
Guru Daadha Chela Chela Jalya, Biraha Laagee Aagi,
Tinaka Bapuda Ubaraya Gali Pure Ke Laagi.
दोहे की हिंदी में व्याख्या : विरह की अग्नि में गुरु और शिष्य दोनों जल गए हैं। अर्थात गुरु की गुरुता और शिष्य का शिसत्या दोनों ही समाप्त हो गए हैं। आत्मा में जो ब्रह्म का अंश है वह इस आग से बच गया है और ब्रह्म में विलीन हो गया है।
कलि का बाम्हन मसखरा ताहि न दीजै दान।
कुटुम्ब सहित नरकै चला, साथ लिया यजमान।
Kali Ka Baamhan Masakhara Taahi Na Deejai Daan.
Kutumb Sahit Narakai Chala, Saath Liya Yajamaan.
दोहे की हिंदी में व्याख्या : ब्राह्मणों पर व्यंग्य करते हुए साहेब की वाणी है की ऐसा ब्राह्मण जो मसखरा है, ईश्वर से जिसकी रूह नहीं लगी हुई है उसे दान देना व्यर्थ है क्योंकि वह ढोंग करके दान में मिली सामग्री/धन से अपने जीवन को चला रहा है जो उचित नहीं है। उसने दान को ही धंधा बना लिया है। कलियुग का ब्राहमण मसखरे की भाँती होता है और वह तत्व ग्यानी नहीं होता है, उसे ना तो ईश्वर की भक्ति से कुछ लेना देना होता है और नाहीं किसी को कोई शिक्षा देने से, उसे बस दान बटोरना है और अपना पेट पालना है, अतः कर्मकांड से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए, ईश्वर को किसी एजेंट की जरुरुत नहीं है। यह भटकाव भी तभी होता है जब व्यक्ति स्वंय भक्ति के प्रति इमानदार नहीं होता है, जब वह स्वंय इमानदार हो जाता है तब उसे किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती और वह खुदा से सीधे ही राफ्ता कायम कर पाने में सक्षम हो जाता है ।
साषित सन का जेवड़ा, भींगाँ सू कठठाई ।
दोई आशिर गुरु बाहिरा, बांध्या जमपुरि जाई ।
Saashit San Ka Jevada, Bheengaan Soo Kathathaee .
Doee Aashir Guru Baahira, Baandhya Jamapuri Jaee .
दोहे की हिंदी में व्याख्या : साषित (साक्य धर्म के अनुयाई) सन (मूँज) की रस्सी के समान हैं, जो भक्ति रस पीने पर और अधिक अहंकारी हो जाते हैं । गुरु के अभाव में (गुरु बहरा है) और राम नाम के (दो अक्षर) के अभाव में वे यम (काल) के द्वारा बाँध कर यमलोक ले जाए जाते हैं । यहाँ शक्ति की पूजा (साक्य) करने वाले व्यक्तियों पर व्यग्य किया गया है ।
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भक्ति बीज पलटै नहीं, जो जुग जाय अनन्त।
ऊँच नीच घर अवतरै, होय सन्त का सन्त।।
Bhakti Beej Palatai Nahin, Jo Jug Jaay Anant.
Oonch Neech Ghar Avatarai, Hoy Sant Ka Sant..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : भक्ति कभी निष्फल नहीं जाती है, भक्ति से ही आगे के मार्ग खुलते हैं, चाहे युग परिवर्तन हो जाय, हो सकता है वे ऊँचे या नीचे किसी भी कुल में जन्म लें लेकिन वे संत ही होते हैं और संत रूप में ही पुनः जन्म लेते हैं।
पडौसी सू रुषणा, तिल तिल सुख की हानि।
पंडित भए सरावगी, पानी पीवे छानि।।
Padausee Soo Rushana, Til Til Sukh Kee Haani.
Pandit Bhe Saraavagee, Paanee Peeve Chhaani..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : नीतिगत वाणी है की अपने पडौसी से कभी बैर नहीं पालना चाहिए, पडौसी से बैर हो जाने पर व्यक्ति की शान्ति भंग हो जाती है और वह नित्य ही दुखी रहता है। जैसे पंडित सरावगी(श्रावक-जैन साधू) की संगत में रहकर पानी को भी छान कर पीता है वैसे ही पडौसी का गहरा असर होता है, इसलिए कभी भी अपने पडौसी से बैर नहीं पालना चाहिए।
पंडित सेती कहि रह्या, भीतरि भेद्या नाहिं।
ओरू कों परमोधतां, गया मुहरक्यां मांहि।।
Pandit Setee Kahi Rahya, Bheetari Bhedya Naahin.
Oroo Kon Paramodhataan, Gaya Muharakyaan Maanhi..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : पंडित की हालत कैसी है, पंडित की हालत तो ऐसी है की वह दूसरों का नेता तो बन गया लेकिन स्वंय के विवेक को खो बैठा है। वह दूसरों की कोई बात सुनने को तैयार नहीं है, यही उसके विनाश का कारण बनता है। इसी कारण से उसमे जड़ता घर कर जाती है और वह स्वंय की जीवन को बर्बाद कर बैठता है।
चतुराई सुवें पढी, सोई पंजर मांहि।
फीरी प्रमोधे आंन को, आपण समझे नाहिं।।
Chaturaee Suven Padhee, Soee Panjar Maanhi.
Pheeree Pramodhe Aann Ko, Aapan Samajhe Naahin..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : दुनियादारी की चतुराई के सबंध में वाणी है की जैसे तोता चतुराई सीख लेता है लेकिन रहता पिंजरे के अन्दर ही है, उसकी चतुराई उसके स्वंय के कोई काम नहीं आती है, वह दूसरों को अवश्य प्रमोध कर सकता है लेकिन स्वंय के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है।
रासि पराई राषत, खाया घर का खेत।
औरों को परमोधतां, मुख में पड़िया रेत।
Raasi Paraee Raashat, Khaaya Ghar Ka Khet.
Auron Ko Paramodhataan, Mukh Mein Padiya Ret.
दोहे की हिंदी में व्याख्या : जो व्यक्ति दूसरों को ज्ञान बांटता फिरता है वह स्वंय ही ठोठ रह जाता है और उसके मुख में रेत ही पड़ती है, भाव है की व्यक्ति को स्वंय के कल्याण में अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए।
ते दिन गए अकार्थी, सांगत भाई न संत ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत।।
Te Din Gae Akaarthee, Saangat Bhaee Na Sant .
Prem Bina Pashu Jeevan, Bhakti Bina Bhagavant..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : व्यक्ति अपना जीवन ऐसे ही व्यर्थ में बिता देता है संत जन की संगत के अभाव में मनुष्य ईश्वर के विषय में जागरूक नहीं बन पाता है और प्रेम के बैगर वह पशु की भाँती ही रह जाता है। भक्ति के बिना कोई देवत्व की प्राप्ति कैसे कर सकता है, भाव है की बगैर भक्ति के मनुष्य पशु के समान ही होता है और वह अपना अनमोल जीवन व्यर्थ में खो देता है।
तारा मंडल बैंसी करि, चाँद बड़ाई खाई।
उदे भय जब सूर का, स्यूं तारां छिपि जाई।।
Taara Mandal Bainsee Kari, Chaand Badaee Khaee.
Ude Bhay Jab Soor Ka, Syoon Taaraan Chhipi Jaee..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : चन्द्रमाँ की बड़ाई तारा मंडल में ही होती है, लेकिन जब वह सूर्य के उदय होने पर अन्य तारों की भांती वह भी तारा ही बनकर रह जाता है। भाव है की जब व्यक्ति संतजन के/ ग्यानी जन के संपर्क में आता है तब कहीं उसको ज्ञान होता है की उसका ज्ञान सीमित है और उससे अधिक ज्ञान संतजन के पास है, अन्यथा वह अंधों में कानों के समान होता है।
कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय।।
Raam Bulaava Bhejiya, Diya Kabeera Roy.
Jo Sukh Saadhoo Sang Mein, So Baikunth Na Hoy..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : राम ने बुलावा भेज दिया है और अब रोने के अलावा कुछ भी बचा नहीं है, जो सुख साधू संत की संगती में है वह बैकुंठ में भी नहीं है ।
देशण को सब कोऊ भले, जिसे सीत के कोट।
रवि के उदे न दीसही, बंधे न जल की पोट।
Deshan Ko Sab Kooo Bhale, Jise Seet Ke Kot.
Ravi Ke Ude Na Deesahee, Bandhe Na Jal Kee Pot.
दोहे की हिंदी में व्याख्या : कोहरे को देखने में सब साधू संत एक समान प्रतीत होते हैं, लेकिन सूर्य के प्रकट होने पर उस जल की पोटली नहीं बाँधी जा सकती है। ज्ञान के प्रकट होने पर अज्ञान का अन्धकार दूर हो जाता है।
तीरथ करि करि जग मुआ , ईंधै पाँणी न्हाइ।
रांमहि राम जपंतडा, काल घसीट्या जाइ ॥
Teerath Kari Kari Jag Mua , Eendhai Paannee Nhai.
Raammahi Raam Japantada, Kaal Ghaseetya Jai .
दोहे की हिंदी में व्याख्या : तीरथ कर कर के यह जग मर गया है और तीरथ के पानी में नहाता है, अपने पाप धोने के लिए लेकिन उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है, राम के नाम के जप की बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है, काल तभी घसीटा जाएगा जब राम नाम का जाप होगा।
काशी कांठे घर करे, नहावे निर्मळ नीर।
मुक्त नहि हरिनाम बिन, युं कहे दास।
Kaashee Kaanthe Ghar Kare, Nahaave Nirmal Neer.
Mukt Nahi Harinaam Bin, Yun Kahe Daas.
दोहे की हिंदी में व्याख्या : प्रतीकात्मक भक्ति, आडम्बर और बाह्य दिखावे पर साहेब की वाणी है की जो काशी में रहता है, और गंगाजल के निर्मल पानी में स्नान करता है वह बगैर हरी नाम के सुमिरण के हरी को प्राप्त नहीं हो सकता है भाव है मात्र तीर्थ करने, पूजा करने, गंगा जल में नहाने से व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है, यदि उसे हरी से मिलना है, हरी को प्राप्त होना, जनम मरण के चक्र से मुक्त होना है तो उसे हरी नाम के सुमिरण का आधार लेना ही पड़ेगा।
कबीर इस संसार कौं, समझाऊँ कै बार ।
पूँछ जो पकड़ै भेड़ की, उतरया चाहै पार।।
Kabeer Is Sansaar Kaun, Samajhaoon Kai Baar .
Poonchh Jo Pakadai Bhed Kee, Utaraya Chaahai Paar..
दोहे की हिंदी में व्याख्या : साहेब की वाणी है की यह संसार स्वंय तप नहीं करना चाहता है और चाहता है की कोई और उसे इस भाव सागर से पार लगा दे यह ऐसा ही है जैसे कोई भेड़ की पूंछ को पकड़ कर इस जगत से पार जाना चाहे। साहेब बार बार समझाते हैं लेकिन यह जीव समझने को तैयार नहीं है, वह बस यही सोचता है की आडम्बरों से उसे मुक्ति मिल जायेगी लेकिन यह सत्य से कोसों दूर है।
माया मिले मोहबती, कूड़े आखे बैण
कोई घाइल बेध्या नां मिले साईं हृदा सैण
Maaya Mile Mohabatee, Koode Aakhe Bain
Koee Ghail Bedhya Naan Mile Saeen Hrda Sain
दोहे की हिंदी में अर्थ : माया के प्रेमी बहुतेरे मिल जायेंगे जो अनर्गल वचन करते हैं, कूड़े कचरे के समान बोलते हैं। हरी के वचन से घायल कोई नहीं मिलता है। भाव है की नकली लोग बहुत हैं लेकिन सच्चे लोग बहुत ही कम मिलते हैं। जो साईं के वचनों पर चलते हैं वे ही सच्चे भक्त होते हैं।
सारा सूरा बहु मिलै , घायल मिलै न कोई ।
घायल ही घायल मिलै , तब राम भगति दिढ होइ॥
Saara Soora Bahu Milai , Ghaayal Milai Na Koee .
Ghaayal Hee Ghaayal Milai , Tab Raam Bhagati Didh Hoi.
दोहे की हिंदी में अर्थ : संसार में सूर वीर तो बहुत ही मिलते हैं लेकिन युद्ध में घायल नहीं मिलते हैं, ऐसे सूर वीर में अहंकार होता है वह सच्चे भाव से घायल नहीं होता है। ईश्वर भक्ति से घायल व्यक्ति को जब दुसरा कोई घायल व्यक्ति मिल जाता है तो भक्ति पूर्ण होती है, दृढ होती है।
प्रेमी ढूँढत में फिरू, प्रेमी मिलिया न कोय।
प्रेमी को प्रेमी मिले, तब विष अमृत होय।।
Premee Dhoondhat Mein Phiroo, Premee Miliya Na Koy.
Premee Ko Premee Mile, Tab Vish Amrt Hoy..
दोहे की हिंदी में अर्थ : इश्वर भक्त (प्रेमी) को खोजने का यतन है लेकिन सच्चा प्रेमी (भक्त) नहीं मिला है, जब प्रेमी को प्रेमी मिल जाता है तो विष भी अमृत में बदल जाता है, विषय वासना रूपी विष अमृत में तभी बदलता है जब भक्ति का/ प्रेम का रस पान करने वाले आपस में मिल जाएँ।
कबीर के दोहे हिंदी में : सभी दोहे देखे Kabir Ke Dohe Hindi Me (सभी दोहे देखें)
हम घर जाल्या आपणाँ लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
Ham Ghar Jaalya Aapanaan Liya Muraada Haathi.
Ab Ghar Jaalaun Taas Ka, Je Chalai Hamaare Saathi.
दोहे की हिंदी में अर्थ : साहेब की वाणी है की मिनी अपना घर (विषय वासनाओं) को जलती हुई लकड़ी (मुराडा) से जला कर समाप्त कर दिया है, जो व्यक्ति ऐसा करना चाहता है वह हमारे साथ चले। विषय वासनाओं को समाप्त करने के लिए दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है और इसीलिए साहेब कहते हैं की जिस में इतना सामर्थ्य है वह हमारे साथ चले।
कमोदिनी जलहरि बसै , चंदा बसे अकास।
जो जाही का भावता , सो ताही के पास।
Kamodinee Jalahari Basai , Chanda Base Akaas.
Jo Jaahee Ka Bhaavata , So Taahee Ke Paas.
दोहे की हिंदी में अर्थ : कमुदिनी (कुमोदिनी) जल में रहती है और चन्द्रमा आकाश में रहती है, लेकिन फिर भी चंद्रमा के उदय होने पर कुमोदिनी खिल जाती है । भाव है की जो जिसे अच्छा लगता है वह चाहे कितना भी दूर क्यों ना हो उसके निकट ही रहता है। भौतिक दूरियाँ आत्मा के नजदीक नहीं होती हैं।
कबीर गुरु बसे बनारसी, सिष समंदा तीर।
बिसारया नहीं बिसरे, जे गुण होई सरीर।।
Kabeer Guru Base Banaarasee, Sish Samanda Teer.
Bisaaraya Nahin Bisare, Je Gun Hoee Sareer..
दोहे की हिंदी में अर्थ : भौतिक दूरियों के सबंध में वाणी है की भले ही गुरु बनारस में बसता हो और शिष्य समुद्र के किनारे पर हो (बहुत दूर दूर हों) लेकिन यदि शरीर में गुण है तो (प्रेम भाव) वह दूरियाँ होने पर भी आपस में एक ही होते हैं, वे एक दुसरे को भुला (विस्मरण) नहीं कर पाते हैं।
जो है जाका भावता, जब-तब मिलिहैं आय।
तन-मन ताको सौंपिए, जो कबहुँ न छाँडि़ जाय॥
Jo Hai Jaaka Bhaavata, Jab-tab Milihain Aay.
Tan-man Taako Saumpie, Jo Kabahun Na Chhaandi Jaay.
दोहे की हिंदी में अर्थ : जो जिसको अच्छा लगता है, मन को भाता है, वह कभी भी आकर मिल सकता है, जिसने तन मन को सौंप दिया है वह दूर कभी नहीं जाता है । भाव है की भौतिक दूरियाँ कभी भी किसी के मिलने में बाधक नहीं होती हैं केवल मन का मिलाप होना चाहिए।
स्वामी सेवक एक हैं, जो मत मत मिलि जाय।
चतुराई रीझे नहीं, रीझे मन मन के भाय।
दोहे की हिंदी में अर्थ : स्वामी और सेवक का एक मत होने पर मन से मन का मिलाप हो जाता है, मालिक किसी चत्रुराई के कारण नहीं रीझते हैं, बस केवल मन से मन मिलने की बात है । भाव है की प्रेम सबसे सर्वोपरी है, प्रेम के आगे किसी चतुराई की आवश्यकता नहीं होती हैं।
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काइर हुवाँ न छूटिये, कछु सूरा तन साहि।
भरम भलका दूरि करि, सुमिरण सेल सँबाहि॥
Kair Huvaan Na Chhootiye, Kachhu Soora Tan Saahi.
Bharam Bhalaka Doori Kari, Sumiran Sel Sanbaahi.
दोहे की हिंदी में अर्थ : कायर बन जाने, कायरता को ग्रहण कर लेने से मुक्ति प्राप्त नहीं होने वाली है, मुक्ति प्राप्त करने के लिए शूरत्व का भाव होना आवश्यक है, अपने मन से भरम/ शंका का भाव दूर करके व्यक्ति को सुमिरण को संभालना चाहिए, सुमिरण का आधार लेना चाहिए। यहाँ रूपकातिश्योक्ति अलंकार का उपयोग किया गया है।
षूँड़ै षड़ा न छूटियो, सुणि रे जीव अबूझ।
कबीर मरि मैदान मैं, करि इंद्राँ सूँ झूझ॥
Shoondai Shada Na Chhootiyo, Suni Re Jeev Aboojh.
Kabeer Mari Maidaan Main, Kari Indraan Soon Jhoojh.
दोहे की हिंदी में अर्थ : अद्भुत वाणी है की जीव तुम किसी कोने (षूँड़ै ) में छिप कर/ गहरे स्थान में छिपकर, माया से छूट नहीं सकते हो, माया के जाल से मुक्त नहीं हो सकते हो, इसके लिए तुम्हे मैदान में उतारकर इन्द्रियों से जूझना पड़ेगा, युद्ध करना पड़ेगा। माया के जाल से तुम तभी मुक्त हो सकते हो जब इनके साथ युद्ध करके तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाओ (अहम् का विनाश होना)।
कबीर साईं सूरिवाँ, मन सूँ माँडै झूझ।
पंच पयादा पाड़ि ले, दूरि करै सब दूज॥
Kabeer Saeen Soorivaan, Man Soon Maandai Jhoojh.
Panch Payaada Paadi Le, Doori Karai Sab Dooj.
दोहे की हिंदी में अर्थ : सच्चा भक्त कौन है ? सच्चा भक्त और सूरमा वही है जो अपने मन से युद्ध करता है और पाँचों इन्द्रियों (पंच पयादा) से लोहा लेता है, और द्वेत भाव को दूर करता है। द्वेत भाव तभी समाप्त हो जाता है, जब शंका का अंत हो जाता है।
काएँ चिणावै मालिया, लाँबी भीति उसारि।
घर तौ साढ़ी तीनि हाथ, घणौ तौ पौंणा चारि॥
Kaen Chinaavai Maaliya, Laanbee Bheeti Usaari.
Ghar Tau Saadhee Teeni Haath, Ghanau Tau Paunna Chaari.
दोहे की हिंदी में अर्थ : माया पर कबीर साहेब की वाणी है की माया के कारण तुम लम्बे चौड़े महल मालिया बनाते हो, लम्बी और ऊँची दीवारें खड़ी कर लेते हो, लेकिन तुम्हारी देह तो तीन हाथ या ज्यादा से ज्यादा पौने चार हाथ जितनी ही है। भाव है की तुम्हे बहुत अधिक संचय करने की जरूरत नहीं है तुम उतना ही संचय करो जितना तुम्हे आवश्यकता हो, अधिक संचय की प्रवृति से मनुष्य अनैतिक कार्यों में लिप्त हो जाता है और हरी के मार्ग से विमुख हो जाता है।
आज कहै हरि काल्हि भजौगा, काल्हि कहे फिरि काल्हि।
आज ही काल्हि करंतड़ाँ, औसर जासि चालि॥
Aaj Kahai Hari Kaalhi Bhajauga, Kaalhi Kahe Phiri Kaalhi.
Aaj Hee Kaalhi Karantadaan, Ausar Jaasi Chaali.
दोहे की हिंदी में अर्थ : हरी भजन में आलस किस बात का, तुम आज कहते हो की हरी का सुमिरण कल करेंगे और कल कहते हो की आने वाले कल में हरी का सुमिरण करेंगे, आजकल करते हुए यह अवसर बीत जाता है और हरी का सुमिरण कभी हो नहीं पाता है। मानव जीवन ही एक तरह का अवसर है जिसे व्यर्थ में खोना चाहिए। आज कल करते हुए मानव जीवन व्यर्थ में ही बर्बाद हो जाता है।
कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं ध्रंम।
कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रंम॥
Kabeer Man Phoolya Phirai, Karata Hoon Main Dhramm.
Koti Kram Siri Le Chalya, Chet Na Dekhai Bhramm.
दोहे की हिंदी में अर्थ : मनुष्य खुश है क्योंकि वह धर्म से विहीन कार्यों में लिप्त रहता है। वह करोंड़ों कर्मों का बोझ सर पर रखकर लादकर जा रहा है और वह अपने भरम को नहीं देखता है। प्राणी के अन्दर जो अहंकार है वह उसे कुछ भी सत्य और असत्य का भान नहीं होने देता है। उसे भ्रम है की वह जो कर रहा है वह पूर्ण रूप से सही है लेकिन यही उसका भ्रम उसे अनैतिक कार्यों में लिप्त रखता है।
मोर तोर की जेवड़ी, बलि बंध्या संसार।
काँ सिकडूँ बासुत कलित, दाझड़ बारंबार॥
Mor Tor Kee Jevadee, Bali Bandhya Sansaar.
Kaan Sikadoon Baasut Kalit, Daajhad Baarambaar.
दोहे की हिंदी में अर्थ : यह संसार मेरी तेरी (मोह माया) की रस्सी से ही बलपूर्वक बंधा है, रिश्ते नाते के चक्कर में फंसा रहता है, जिस कुटुंब कबीले की मोह माया में जीव व्यर्थ के चक्कर में पड़ता है, लेकिन इस अग्नि में जलने का लाभ क्या होता है, कुछ भी नहीं
कथणीं कथी तो क्या भया, जे करणी नाँ ठहराइ।
कालबूत के कोट ज्यूँ, देषतहीं ढहि जाइ॥
Kathaneen Kathee To Kya Bhaya, Je Karanee Naan Thaharai.
Kaalaboot Ke Kot Jyoon, Deshataheen Dhahi Jai.
दोहे की हिंदी में अर्थ : यदि कथनी को करनी में तब्दील नहीं किया तो ऐसे कथनी और विचारों/वाणी का क्या लाभ होगा, कुछ भी नहीं, जब कथनी और करणी का भेद समाप्त होगा तभी जाकर उसका परिणाम प्राप्त होगा। केवल कथनी तो कालबूत (मीट्टी) के किले के समान है जो देखते ही देखते ढह जाता है, उसका कोई आधार नहीं होता है।
निरमल बूँद अकास की, पड़ि गइ भोमि बिकार।
मूल विनंठा माँनबी, बिन संगति भठछार॥
Niramal Boond Akaas Kee, Padi Gai Bhomi Bikaar.
Mool Vinantha Maannabee, Bin Sangati Bhathachhaar.
दोहे की हिंदी में अर्थ : आकाश में पानी की बूंद शुद्ध होती है, लेकिन वह धरती पर गिरकर अशुद्ध हो जाती है। ऐसे ही मनुष्य बगैर संतजन की संगती के भट्टे की राख के समान ही रह जाता है, उसका कोई मूल्य नहीं रहता है। संतजन की संगती में मनुष्य के दोष दूर होते हैं अन्यथा वह स्वंय के जीवन को भट्टे की राख में बदल कर रख देता है।
मूरिष संग न कीजिए, लोहा जलि न तिराइ
कदली सीप भवंग मुषी, एक बूँद तिहुँ भाइ॥
Moorish Sang Na Keejie, Loha Jali Na Tirai
Kadalee Seep Bhavang Mushee, Ek Boond Tihun Bhai.
कदली सीप भवंग मुषी, एक बूँद तिहुँ भाइ॥
Moorish Sang Na Keejie, Loha Jali Na Tirai
Kadalee Seep Bhavang Mushee, Ek Boond Tihun Bhai.
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: लोहे के सहारे से जल में पार नहीं जाया जा सकता है, लोहा स्वंय तो डूबता ही है, उस पर रखी दूसरी वस्तु को भी अपने साथ ही डुबो देता है। ऐसे ही मुर्ख व्यक्ति का साथ / संगत नहीं करनी चाहिए, वह स्वंय तो भव सागर में डूबता है और अपने संगी/साथी को भी लेकर डूब जाता है। वस्तु एक ही है जल लेकिन वह कदली, सीप और सर्प के मुख में पड़कर अलग अलग रूप धारण कर लेती है। स्वाति नक्षत्र की बूंद कदली(केला) में पड़कर कपूर, सीप के मुंह में पड़कर मोती और सांप के मुंह में पड़कर विष में बदल जाती है। भाव है की जो जैसी संगती में रहता है वह वैसे ही अपना स्वभाव और गुणों को बदल लेता है।
हरिजन सेती रूसणाँ, संसारी सूँ हेत।
ते नर कदे न नीपजै, ज्यूँ कालर का खेत॥
Harijan Setee Roosanaan, Sansaaree Soon Het.
Te Nar Kade Na Neepajai, Jyoon Kaalar Ka Khet.
दोहे की हिंदी में अर्थ : संत जनों से विमुख होना और संसारी (माया जनित व्यवहार करने वाले) से प्रेम करने वाले व्यक्ति का हाल बहुत ही बुरा होता है वह कभी विकास नहीं कर पाता है और उसकी स्थिति वैसे ही होती है जैसे बंजर भूमि में कुछ भी पैदा नहीं होता है। इसमें उपमा (कालर का खेत) अलंकार का उपयोग किया गया है।
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मारी मरूँ कुसंग की, केला काँठै बेरि।
वो हालै वो चीरिये, साषित संग न बेरि॥
Maaree Maroon Kusang Kee, Kela Kaanthai Beri.
Vo Haalai Vo Cheeriye, Saashit Sang Na Beri.
दोहे की हिंदी में अर्थ : जैसे केला बैर के संगत में पड़कर नष्ट हो जाता है वैसे ही आत्मा कुसंगत में पड़कर समाप्त हो जाती है, जैसे बैर की संगती के कारण केले के पत्ते चीर दिए जाते हैं वैसे ही शाक्य धर्म के अनुयायी जो हरी से विमुख हो जाते हैं वे स्वंय को समाप्त कर लेते हैं।
मेर नसाँणी मीच की, कुसंगति ही काल।
कबीर कहै रे प्राँणिया, बाँणी ब्रह्म सँभाल॥
Mer Nasaannee Meech Kee, Kusangati Hee Kaal.
Kabeer Kahai Re Praanniya, Baannee Brahm Sanbhaal.
दोहे की हिंदी में अर्थ : अपनापन/मेरापन मरण की निशानी है और यह मनुष्य को समाप्त कर देती है, जीव की कुसंगति ही उसके मरण की निशानी होती है। जीव को अपनी वाणी से हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए। मोह और माया, रिश्ते नाते सभी मुक्ति के मार्ग में बाधक हैं।
कबीर मधि अंग जेको रहै, तौ तिरत न लागै बार।
दुइ दुइ अंग सूँ लाग करि, डूबत है संसार॥
Kabeer Madhi Ang Jeko Rahai, Tau Tirat Na Laagai Baar.
Dui Dui Ang Soon Laag Kari, Doobat Hai Sansaar.
दोहे की हिंदी में अर्थ : जो व्यक्ति मध्यम मार्ग अपनाता है वह इस संसार से पार होने में देर नहीं लगाता है और भव सागर से पार उतर जाता है, जो दुई (द्वेत) भाव रखता है वह अवश्य ही इस संसार के मार्ग में डूब जाता है, मुक्ति को प्राप्त नहीं होता है।
कबीर दुविधा दूरि करि, एक अंग ह्नै लागि।
यहु सीतल वहु तपति है दोऊ कहिये आगि॥
Kabeer Duvidha Doori Kari, Ek Ang Hnai Laagi.
Yahu Seetal Vahu Tapati Hai Dooo Kahiye Aagi.
दोहे का हिंदी में अर्थ : मन की दुविधा, संदेह दूर करके आत्मा को परमात्मा के शरण में जाना चाहिए। सांसारिक अग्नि जलाती है वहीँ भक्ति की अग्नि शीतलता देती हैं, दोनों ही अग्नि ही हैं।
आगे सीढ़ी सांकरी, पाछे चकनाचूर।
परदा तर की सुंदरी रही ढाका तें दूर ।
Aage Seedhee Saankaree, Paachhe Chakanaachoor.
Parada Tar Kee Sundaree Rahee Dhaaka Ten Door .
दोहे का हिंदी में अर्थ : आगे आनेवाली सीढ़ी सांकरी (संकरी) है और पीछे जाने की टूट चुकी है। ऐसी स्थिति में परदे में रहने वाली सुंदरी धक्का मुक्की से दूर रहती है। जिसे भक्ति की लगन लगी है वह भक्ति के अलावा किसी भी स्थिति को पसंद नहीं करती हैं।
हद्द चले सो मानवा, बेहद चले सो साध
हद्द बेहद दोउ तजे ताकर मता अगाध
Hadd Chale So Maanava, Behad Chale So Saadh
Hadd Behad Dou Taje Taakar Mata Agaadh
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: जो हद में चलता है, वह मानव है और जो बेहद में चलता है वह संत है, साधू है। हद्द और बेहद्द दोनों को जो छोड़ देता है उसका मत बहुत ही गहरा है।
अनल अकासां घर किया, मधि निरंतर बास।
बसुधा व्योम बिरकत रहे, बिनठा हर बिस्वास।।
Anal Akaasaan Ghar Kiya, Madhi Nirantar Baas.
Basudha Vyom Birakat Rahe, Binatha Har Bisvaas..
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: अनल पक्षी की भाँती साधक ने अपने शरीर रूपी घर को भस्म कर आकाश को ही अपना घर बना लिया है। यह पृथ्वी और व्योम (आकास) दोनों से ही प्रथक होता है। यह द्वेत और अद्वेत दोनों से ही दूर होता है।
भूखा भूखा क्या करै, कहा सुनावै लोग।
भांडा घड़ि जिनि मुख दिया, सोई पूरण जोग॥
Bhookha Bhookha Kya Karai, Kaha Sunaavai Log.
Bhaanda Ghadi Jini Mukh Diya, Soee Pooran Jog.
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: जीव को मैं भूखा हूँ, मैं भूखा हूँ ऐसी रट अन्य के समक्ष नहीं लगानी चाहिए। ऐसा कहकर वह जगहंसाई ही करता है। इस शरीर को (भांडा) गढ़ कर जिसने इसका मुख बनाया है वह इसे भरने/भूख को मिटाने में सक्षम है इसलिए हरी नाम का सुमिरण करना चाहिए। हरी का नाम ही सभी प्रकार की आवश्कताओं को पूर्ण करता है उसके लिए किसी के समक्ष हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है।
रचनहार कूँ चीन्हि लै, खैबे कूँ कहा रोइ।
दिल मंदिर मैं पैसि करि, तांणि पछेवड़ा सोइ॥
Rachanahaar Koon Cheenhi Lai, Khaibe Koon Kaha Roi.
Dil Mandir Main Paisi Kari, Taanni Pachhevada Soi.
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: जीव को अपने रचनाकार को पहचान लेना चाहिए और उदर पूर्ति/खाने (खैबे) के लिए रोने की जरूरत नहीं है। अपने हृदय में ईश्वर का वास है इसे समझो और दिल में प्रवेश करके चादर तान करके सो जाओ। भाव है की अपनी चिंताओं को ईश्वर के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए।
राम नाम करि बोहड़ा, बांही बीज अधाइ।
अंति कालि सूका पड़ै, तौ निरफल कदे न जाइ॥
Raam Naam Kari Bohada, Baanhee Beej Adhai.
Anti Kaali Sooka Padai, Tau Niraphal Kade Na Jai.
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: इस शरीर की जुताई राम के नाम से करनी चाहिए, इस शरीर में राम नाम के बीज की बुआई कर दो, फिर यदि सुखा भी पड़ जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। भाव है की सम्पूर्ण शरीर से राम नाम का सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।
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Author - Saroj Jangir
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