कबीर यहु तौ एक है पड़दा दीया भेष मीनिंग Kabir Yahu To Ek Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )
कबीर यहु तौ एक है, पड़दा दीया भेष।भरम करम सब दूरि करि, सबहीं माँहि अलेष॥
Kabir Yahu To Ek Hai, Padada Diya Bhesh,
Bharam Karm Sab Duri Kari, Sabahi Mahi Alekh
Kabir Yahu To Ek Hai, Padada Diya Bhesh,
Bharam Karm Sab Duri Kari, Sabahi Mahi Alekh
कबीर यहु तौ एक है : सभी जीवात्मा एक है.
पड़दा दीया भेष : बाहर के द्रश्य ने इसमें भेद उत्पन्न कर दिया है, सभी के भेष प्रथक प्रथक हैं.
भरम करम सब दूरि करि : भ्रम जनित कर्मों को दूर करो.
सबहीं माँहि अलेष : सभी के मध्य उस अलख (इश्वर को देखो)
यहु तौ : जीवात्मा.
एक है : एक ही हैं, पृथक पृथक नहीं है.
पड़दा : पर्दा, भेद, अंतर, छिपाव.
दीया : पैदा किया है.
भेष : बाह्य आवरण.
भरम करम : भ्रम और कर्म.
सब दूरि करि : सभी को दूर करके.
सबहीं : सभी के अन्दर / हृदय में.
माँहि : के अन्दर.
अलेष : अलख, अलक्ष्य (इश्वर)
पड़दा दीया भेष : बाहर के द्रश्य ने इसमें भेद उत्पन्न कर दिया है, सभी के भेष प्रथक प्रथक हैं.
भरम करम सब दूरि करि : भ्रम जनित कर्मों को दूर करो.
सबहीं माँहि अलेष : सभी के मध्य उस अलख (इश्वर को देखो)
यहु तौ : जीवात्मा.
एक है : एक ही हैं, पृथक पृथक नहीं है.
पड़दा : पर्दा, भेद, अंतर, छिपाव.
दीया : पैदा किया है.
भेष : बाह्य आवरण.
भरम करम : भ्रम और कर्म.
सब दूरि करि : सभी को दूर करके.
सबहीं : सभी के अन्दर / हृदय में.
माँहि : के अन्दर.
अलेष : अलख, अलक्ष्य (इश्वर)
कबीर साहेब की वाणी है की सभी जीवात्मा उस पूर्ण परमात्मा का ही अंश हैं और सभी में परमात्मा वास करता है. बाह्य आवरण ने परदे के रूप में भेद उत्पन्न कर दिया है. बाह्य आवरण से आशय जैसे मनुष्य, जीव जंतु आदि, लेकिन सभी एक ही हैं.
सभी में वह अलक्ष्य है. उसे पहचानने की आवश्यकता है. अतः समस्त भ्रम जनित कर्मों का त्याग करके पूर्ण परमात्मा का अवलोकन करना होगा. सभी जीवो में वह परमात्मा ही वास करता है. उसे किसी मंदिर मस्जिद आदि में ढूँढने की आवश्यकता नहीं है. वह हृदय में और सभी जीव उसकी ही कृति हैं. सभी को समान मानकर उनसे श्रेष्ठ व्यवहार करो, यही सच्ची भक्ति है.
सभी में वह अलक्ष्य है. उसे पहचानने की आवश्यकता है. अतः समस्त भ्रम जनित कर्मों का त्याग करके पूर्ण परमात्मा का अवलोकन करना होगा. सभी जीवो में वह परमात्मा ही वास करता है. उसे किसी मंदिर मस्जिद आदि में ढूँढने की आवश्यकता नहीं है. वह हृदय में और सभी जीव उसकी ही कृति हैं. सभी को समान मानकर उनसे श्रेष्ठ व्यवहार करो, यही सच्ची भक्ति है.