श्रेयांसनाथ चालीसा लिरिक्स Shreyansanatha Chalisa Lyrics

श्रेयांसनाथ चालीसा लिरिक्स Shreyansanatha Chalisa Lyrics, Download Shreyansanatha Chalisa/Aarti.

भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर थे। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का जन्म शिवपुरी में इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा विष्णु था और इनकी माता का नाम वेणु देवी था। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का जन्म फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी के शरीर का वर्ण सुवर्ण था। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का प्रतीक चिह्न गेंडा है। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी ने संदेश दिया है कि शक्ति प्राप्त होने पर भी व्यक्ति को शक्ति का घमंड नहीं करना चाहिए और शांत रहना चाहिए। जिस प्रकार गेंडा शक्तिशाली होने के पश्चात भी शांत रहता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी शांत प्रकृति का होना चाहिए। फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान श्रेयांसनाथ जी ने शिवपुरी में दीक्षा ग्रहण की। दो महीने के कठोर तप के पश्चात उन्हें तंदूक वृक्ष के नीचे कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी को सम्मेद शिखर पर श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को निर्वाण प्राप्त हुआ। 

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भगवान श्री श्रेयांसनाथ चालीसा का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी ने संदेश दिया है कि जिस व्यक्ति ने सत्य को जान लिया है, उसके सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और वह अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति ही है, इसलिए मोक्ष प्राप्त करने के लिए सत्य, अहिंसा और धर्म के मार्ग को अपनाना चाहिए। 
 
निज मन में करके स्थापित,
पंच परम परमेष्ठि को।
लिखूं श्रेयान्सनाथ चालीसा,
मन में बहुत ही हर्षित हो।
जय श्रेयान्सनाथ श्रुतज्ञायक हो,
जय उत्तम आश्रय दायक हो।
माँ वेणु पिता विष्णु प्यारे,
तुम सिहंपुरी में अवतारे।
जय ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी प्यारी,
शुभ रत्नवृष्टि होती भारी।
जय गर्भकत्याणोत्सव अपार,
सब देव करें नाना प्रकार।
जय जन्म जयन्ती प्रभु महान,
फाल्गुन एकादशी कृष्ण जान।
जय जिनवर का जन्माभिषेक,
शत अष्ट कलश से करें नेक।
शुभ नाम मिला श्रेयान्सनाथ,
जय सत्यपरायण सद्यजात।
निश्रेयस मार्ग के दर्शायक,
जन्मे मति-श्रुत-अवधि धारक।
आयु चौरासी लक्ष प्रमाण,
तनतुंग धनुष अस्सी मंहान।
प्रभु वर्ण सुवर्ण समान पीत,
गए पूरब इवकीस लक्ष बीत।
हुआ ब्याह महा मंगलकारी,
सब सुख भोगों आनन्दकारी।
जब हुआ ऋतु का परिवर्तन,
वैराग्य हुआ प्रभु को उत्पन्न।
दिया राजपाट सुत 'श्रेयस्कर'
सब तजा मोह त्रिभुवन भास्कर।
सुर लाए 'विमलप्रभा' शिविका,
उद्यान 'मनोहर' नगरी का।
वहाँ जा कर केश लौंच कीने,
परिग्रह बाह्मान्तर तज दीने।
गए शुद्ध शिला तल पर विराज,
ऊपर रहा 'तुम्बुर वृक्ष' साज।
किया ध्यान वहाँ स्थिर होकर,
हुआ जान मन:पर्यय सत्वर।
हुए धन्य सिद्धार्थ नगर भूप,
दिया पात्रदान जिनने अनूपा।
महिमा अचिन्त्य है पात्र दान,
सुर करते पंच अचरज महान।
वन को तत्काल ही लोट गए,
पूरे दो साल वे मौन रहे।
आई जब अमावस माघ मास,
हुआ केवलज्ञान का सुप्रकाश।
रचना शुभ समवशरण सुजान,
करते धनदेव-तुरन्त आन।
प्रभु दिव्यध्वनि होती विकीर्ण,
होता कर्मो का बन्ध क्षीण।
'उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी' विशाल,
ऐसे दो भेद बताये काल।
एकसौ अड़तालिस बीत जाये
तब हुण्डा-अवसर्पिणी कहाय।
सुरवमा-सुरवमा है प्रथम काल,
जिसमें सब जीव रहें खुशहाल।
दूजा दिखलाते 'सुखमा' काल,
तीजा 'सुखमा दुरवमा' सुकाल।
चौथा 'दुखमा-सुखमा' सुजान,
'दूखम' है पंचमकाल मान।
'दुखमा-दुखमा' छट्टम महान,
छट्टम-छट्टा एक ही समान।
यह काल परिणति ऐसी ही,
होती भरत-ऐरावत में ही।
रहे क्षेत्र विदेह में विद्यमान,
बस काल चतुर्थ ही वर्तमान।
सुन काल स्वरुप को जान लिया,
भवि जीवों का कल्याण हुआ।
हुआ दूर-दूर प्रभु का विहार,
वहाँ दूर हुआ सब शिथिलाचार।
फिर गए प्रभु गिरिवर सम्मेद,
धारें सुयोग विभु बिना खेद।
हुई पूर्णमासी श्रावण शुक्ला,
प्रभु को शाश्वत निजरूप मिला।
पूजें सुर 'संकुल कूट' आन,
निर्वाणोत्सव करते महान।
प्रभुवर के चरणों का शरणा,
जो भविजन लेते सुखदाय।
उन पर होती प्रभु की करुणा,
'अरुणा' मनवाछिंत फल पाय ।

भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का मंत्र:
भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी के मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इनके मंत्र के जाप से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
भगवान श्री श्रेयांसनाथ जी का प्रभावशाली मंत्र:
ॐ ह्रीं अर्हं श्रेयान्सनाथाय नभः।  

श्री श्रेयांसनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shreyansanatha Chalisa Lyrics Hindi

युग की आदी में हुए, ऋषभदेव भगवान।
उनके चरणों में करूँ, बारम्बार प्रणाम।।१।।
गौतम गणधर देव को, वंदूँ मन वच-काय।
उनके जैसी ऋद्धियाँ, हमको भी मिल जाएँ।।२।।
शारद माता को नमूँ, जिनसे मिलता ज्ञान।
लिखने की शक्ती मिले, दूर होय अज्ञान।।३।।

श्री श्रेयांस जगत के स्वामी, कीर्ति तुम्हारी जग में नामी।।१।।
तुम हो ग्यारहवें तीर्थंकर, तुम हो प्रभु जग में श्रेयस्कर।।२।।
जो करते हैं भक्ति तुम्हारी, इच्छा पूरी होती सारी।।३।।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, सिंहपुरी नामक नगरी है।।४।।
वहाँ के राजा विष्णुमित्र थे, वे इक्ष्वाकुवंशि उत्तम थे।।५।।
वे रानी नंदा[१] के संग में, सुख-वैभव में पूर्ण मगन थे।।६।।
इक दिन महारानी रात्री में, नित्य की भांती सोई हुई थी।।७।।
रत्न पलंग पर सोते-सोते, रात्री के आखिरी प्रहर में।।८।।
महारानी ने सपने देखे, वे पूरे सोलह स्वप्ने थे।।९।।
उन स्वप्नों के नाम सुनो तुम, यदि संभव हो याद करो तुम।।१०।।
ऐरावत गज प्रथम स्वप्न में, देखा था जिनवरजननी ने।।११।।
दूजे में इक वृषभ दिखा था, सिंह तीसरे स्वप्न में देखा।।१२।।
चौथे स्वप्न में देखी लक्ष्मी, जिनका न्हवन करें दो हाथी।।१३।।
पंचम में दो मालाएँ थीं, छठे स्वप्न में पूर्ण चन्द्र भी।।१४।।
उगता हुआ सूर्य फिर देखा, आगे मीन-युगल देखा था।।१५।।
फिर आगे नवमें सपने में, जल से भरे कलश दो देखे।।१६।।
कमलों से युत सरवर देखा, यह था दशवाँ स्वप्न मात का।।१७ं।
आगे ग्यारहवें सपने में, इक समुद्र देखा माता ने।।१८।।
बारहवें में सिंहासन था, जो रत्नों से जटित अनूठा।।१९।।
तेरहवें में इक विमान को, देखा आते हुए स्वर्ग से।।२०।।
पुन: स्वप्न चौदहवाँ देखा, जिसमें इक नागेन्द्र भवन था।।२१।।
पन्द्रहवें सपने में माँ ने, रत्नों की राशी देखी थी।।२२।।
अन्तिम सोलहवें सपने में, धुएँ रहित अग्नी देखी थी।।२३।।
इन स्वप्नों को देख चुकीं जब, माँ की निद्रा भंग हुई तब।।२४।।
वो तो अतिशय आनन्दित थीं, उत्तर सुनने को आतुर थीं।।२५।।
प्रात: रानी राजमहल में, पहुँच गई पतिदेव निकट में।।२६।।
स्वप्नों का फल पूछा पति से, उनने कहा देवि! तुम सुन लो।।२७।।
बनोगी तुम तीर्थंकर जननी, तुम हो बहुत ही पुण्यशालिनी।।२८।।
वह दिन ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी का, गर्भकल्याणक प्रभु श्रेयांस का।।२९।।
पुन: सुनंदा माता ने तब, फाल्गुन कृष्ण एकादशि के दिन।।३०।।
त्रिभुवनगुरु को जन्म दिया था, तीन ज्ञानधारी वह सुत था।।३१।।
धीरे-धीरे युवा हुए जब, राज्यकार्य में लिप्त हुए तब।।३२।।
एक बार श्रेयांसनाथ प्रभु, ऋतु बसंत का परिवर्तन लख।।३३।।
वैरागी हो सब कुछ छोड़ा, त्यागमार्ग से नाता जोड़ा।।३४।।
दीक्षा लेकर करी तपस्या, पुन: नशे जब कर्म घातिया।।३५।।
तब वे केवलज्ञानी हो गए, घट-घट अन्तर्यामी हो गए।।३६।।
पुन: धर्मवर्षा के द्वारा, भव्य असंख्यों को था तारा।।३७।।
श्री श्रेयांसनाथ प्रभुवर के, चरणों में मेरा वन्दन है।।३८।।
प्रभु मेरा वन्दन स्वीकारो, भवसागर से पार उतारो।।३९।।
अब जग में भ्रमने की इच्छा, पूरी हो गई कहे ‘‘सारिका’’।।४०।।

श्री श्रेयांसनाथ का चालीसा, पढ़ना तुम भक्ती से।
दो बार नहीं, दस बार नहीं, चालीस बार पढ़ना इसको।।
यदि चालिस दिन तक पढ़ लोगे, तो जीवन मंगलमय होगा।
यह लालच नहीं है भव्यात्मन वास्तव में ऐसा ही होगा।।१।।
इस सदी बीसवीं में इक गणिनी ज्ञानमती माताजी हैं।
उनकी शिष्या मर्यादा-शिष्योत्तमा’ चन्दनामति जी हैं।।
जब मिली प्रेरणा उनकी तब ही, लिखा ये चालीसा मैंने।
इसको पढ़कर सब कार्योें की, सिद्धी होगी यह निश्चित है।।२।।

प्रभु श्रेयांस जी की आरती लिरिक्स Prabhu Shri Shreyanshnath Ji Ki Aarti

प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

स्वर्ण वर्णमय प्रभा निराली,
मूर्ति तुम्हारी है मनहारी।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

सिंहपुरी में जब तुम जन्में,
सुरगण जन्मकल्याणक करते।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

विष्णुमित्र पितु, नन्दा माता,
नगरी में भी आनन्द छाता।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

फाल्गुन वदि ग्यारस शुभ तिथि थी,
जब प्रभुवर ने दीक्षा ली थी।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

माघ कृष्ण मावस को स्वामी
कहलाए थे केवलज्ञानी।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

श्रावण सुदी पूर्णिमा आई,
यम जीता शिवपदवी पाई।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

श्रेय मार्ग के दाता तुम हो,
जजे ‘‘चंदनामति’’ शिवगति दो।।
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे।

आरती चौबीस भगवान् की Aarti Chaubisi Bhagvan Ki


ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्म सुपार्श्व की जय |
महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

चंद्र पुष्प शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य महाराज की जय |
महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

विमल अनंत धर्म जस उज्ज्वल, शांतिनाथ महाराज की जय |
महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

कुंथ अरह और मल्लि मुनिसुव्रत, नमिनाथ महाराज की जय |
महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

नेमिनाथ प्रभु पार्श्व जिनेश्वर, वर्द्धमान महाराज की जय |
महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

इन चौबीसों की आरती करके, आवागमन-निवार की जय |
महाराज की श्री जिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |

भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

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