श्री अनंत नाथ चालीसा लिरिक्स Shri Anantnath Chalisa Lyrics

श्री अनंत नाथ चालीसा लिरिक्स Shri Anantnath Chalisa Lyrics, Shri Anantnath Chalisa/Aarti Download PDF, Jain Bhagwan

भगवान श्री अनंत नाथ जी जैन धर्म के चौदहवें  तीर्थंकर थे। भगवान श्री अनंत नाथ जी का जन्म वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को अयोध्या में हुआ था। इनके पिता इक्ष्वाकु वंश के राजा सिंह सेन थे। इनकी माता का नाम सुयशा देवी था। भगवान श्री अनंत नाथ जी के शरीर का वर्ण सुवर्ण था। इनका प्रतिक चिन्ह बाज है। भगवान श्री अनंत नाथ जी ने यह संदेश दिया है कि जैसे बाज अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लक्ष्य केंद्रित रहता है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने लक्ष्य के प्रति केंद्रित रहना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति तक एकाग्र चित्त और शांत रहकर ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। भगवान श्री अनंत नाथ जी ने संदेश दिया है कि सत्य और अहिंसा का पथ ही सर्वोत्तम पथ है, इसलिए सत्य और अहिंसा के पथ का अनुसरण करना चाहिए। व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित रहना चाहिए। भोग विलासिता ना अपना कर ईश्वर की भक्ति के साथ लोक कल्याण करना चाहिए। भगवान श्री अनंत नाथ जी को चैत्र माह की शुक्ल पंचमी के दिन सम्मेद शिखर पर्वत पर मोक्ष प्राप्त हुआ। 
 

Latest Bhajan Lyrics

अनंतनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Anantnath Chalisa Lyrics Hindi

अनन्त चतुष्टय धारी अनन्त,
अनन्त गुणों की खान अनन्त।
सर्वशुध्द ज्ञायक हैं अनन्त,
हरण करें मम दोष अनन्त।
नगर अयोध्या महा सुखकार,
राज्य करें सिहंसेन अपार।
सर्वयशा महादेवी उनकी,
जननी कहलाई जिनवर की।
द्वादशी ज्येष्ठ कृष्ण सुखकारी,
जन्मे तीर्थंकर हितकारी।
इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर,
न्हवन करें मेरु पर जाकर।
नाम 'अनन्तनाथ' शुभ बीना,
उत्सव करते नित्य नवीना।
सार्थक हुआ नाम प्रभुवर का,
पार नहीं गुण के सागर का।
वर्ण सुवर्ण समान प्रभु का,
जान धरें मति-श्रुत-अवधि का।
आयु तीस लख वर्ष उपाई,
धनुष अर्घशन तन ऊंचाई।
बचपन गया जवानी आई,
राज्य मिला उनको सुखदाई।
हुआ विवाह उनका मंगलमय,
जीवन था जिनवर का सुखमय।
पन्द्रह लाख बरस बीते जब,
उल्कापात से हुए विरत तब।
जग में सुख पाया किसने-कब,
मन से त्याग राग भाव सब।
बारह भावना मन में भाये,
ब्रह्मर्षि वैराग्य बढाये।
'अनन्तविजय' सुत तिलक-कराकर,
देवोमई शिविका पधरा कर।
गए सहेतुक वन जिनराज,
दीक्षित हुए सहस नृप साथ।
द्वादशी कृष्ण ज्येष्ठ शुभ मासा,
तीन दिन का धारा उपवास।
गए अयोध्या प्रथम योग कर,
धन्य 'विशाख' आहार करा कर।
मौन सहित रहते थे वन में,
एक दिन तिष्ठे पीपल-तल में।
अटल रहे निज योग ध्यान में,
झलके लोकालोक ज्ञान में।
कृष्ण अमावस चैत्र मास की,
रचना हुई शुभ समवशरण की।
जिनवर की वाणी जब खिरती,
अमृत सम कानों को लगती।
चतुर्गति दुख चित्रण करते,
भविजन सुन पापों से डरते।
जो चाहो तुम मुयित्त पाना,
निज आतम की शरण में जाना।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित है,
कहे व्यवहार में रतनत्रय है।
निश्चय से शुद्धातम ध्याकर,
शिवपट मिलना सुख रत्नाकर
श्रद्धा करके भव्य जनों ने,
यथाशक्ति व्रत धारे सबने।
हुआ विहार देश और प्रान्त,
सत्पथ दर्शाये जिननाथ।
अन्त समय गए सम्मेदाचल,
एक मास तक रहे सुनिश्चल।
कृष्ण चैत्र अमावस पावन,
भोक्षमहल पहुंचे मनभावन।
उत्सव करते सुरगण आकर,
कूट स्वयंप्रभ मन में ध्याकर।
शुभ लक्षण प्रभुवर का 'सेही',
शोभित होता प्रभु-पद में ही।
हम सब अरज करे बस ये ही,
पार करो भवसागर से ही।
है प्रभु लोकालोक अनन्त,
झलकें सब तुम ज्ञान अनन्त।
हुआ अनन्त भवों का अन्त,
अद्भुत तुम महिमां है 'अनन्त'।

भगवान श्री अनंत नाथ जी का मंत्र Bhagwan Shri Anantnath Ji Mantra Hindi

भगवान श्री अनंत नाथ जी के मंत्र का जाप करने से आध्यात्मिकता का विकास होता है। लोक कल्याण की भावना विकसित होती है और व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।
भगवान श्री अनंत नाथ जी का मंत्र:
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनन्तनाथाय नम:।  

श्री अनंत नाथ चालीसा लिरिक्स इन हिंदी Shri Anantnath Chalisa Lyrics in Hindi

श्री अनन्त जिनराज हैं, गुण अनन्त की खान।
अंतक का भी अंत कर, बने सिद्ध भगवान।।१।।
गुण अनन्त की प्राप्ति हित, करूँ अनन्त प्रणाम।
अनन्त गुणाकर नाथ! तुम, कर दो मम कल्याण।।२।।
विदुषी वागीश्वरी यदि, दे दें आशिर्वाद।
पूरा होवे शीघ्र ही, यह चालीसा पाठ।।३।।

श्री अनन्तजिनराज आप ही, तीनलोक के शिखामणी हो।।१।।
भव्यजनों के मनकमलों को, सूरज सम विकसित करते हो।।२।।
प्रभु तुम चौदहवें जिनवर हो, चौदह गुण से सहित सिद्ध हो।।३।।
देवोंकृत चौदह अतिशय भी, नाथ! तुम्हारे होते प्रगटित।।४।।
तुम चौदह पूर्वों के ज्ञाता, तुम दर्शन से मिलती साता।।५।।
गुणस्थान होते हैं चौदह, तुम हो प्रभु उनके उपदेशक।।६।।
मार्गणाएँ भी चौदह होतीं, उनके भी उपदेशक प्रभु जी।।७।।
नगरि अयोध्या में तुम जन्मे, पिता तुम्हारे सिंहसेन थे।।८।।
माता जयश्यामा की जय हो, महाभाग्यशाली जननी वो।।९।।
कार्तिक बदि एकम् तिथि आई, गर्भ बसे प्रभु खुशियाँ छाई।।१०।।
ज्येष्ठ बदी बारस में प्रभु ने, जन्म लिया सुर मुकुट हिले थे।।११।।
एक हजार आठ कलशों से, सुरपति न्हवन करें शचि के संग।।१२।।
कलश नहीं हैं छोटे-छोटे, एक कलश का माप सुनो तुम।।१३।।
गहराई है अठ योजन की, मुख पर इक योजन विस्तृत है।।१४।।
मध्य उदर में चउ योजन की, है चौड़ाई एक कलश की।।१५।।
यह तो केवल एक कलश का, ग्रन्थों में विस्तार बताया।।१६।।
ऐसे इक हजार अठ कलशे, सुरपति ढोरें प्रभु मस्तक पे।।१७।।
अन्य असंख्य इन्द्रगण भी तो, करते हैं अभिषेक प्रभू पर।।१८।।
कलश असंख्यातों हो जाते, प्रभु को विचलित नहिं कर पाते।।१९।।
वे तो मेरु सुदर्शन के सम, रहते अडिग-अवंâप निरन्तर।।२०।।
पुन: जन्म अभिषेक पूर्ण कर, स्वर्ग में वापस जाते सुरगण।।२१।।
मात-पिता प्रभु की लीलाएँ, देख-देख पूâले न समाएँ।।२२।।
प्रभु जी अब हो गए युवा थे, राजपाट तब सौंपा पितु ने।।२३।।
राज्यकार्य को करते-करते, पन्द्रह लाख वर्ष बीते थे।।२४।।
तभी एक दिन देखा प्रभु ने, उल्कापात हुआ धरती पे।।२५।।
तत्क्षण वे वैरागी हो गए, तप करने को आतुर हो गए।।२६।।
दीक्षा लेना था स्वीकारा, छोड़ दिया था वैभव सारा।।२७।।
इन्द्र पालकी लेकर आए, उसमें प्रभु जी को बैठाए।।२८।।
लेकर गए सहेतुक वन में, प्रभु बैठे पीपल तरु नीचे।।२९।।
पंचमुष्टि कचलोंच कर लिया, वस्त्राभूषण त्याग कर दिया।।३०।।
नम: सिद्ध कह दीक्षा ले ली, संग में इक हजार राजा भी।।३१।।
पुन: किया आहार प्रभू ने, पंचाश्चर्य किए देवों ने।।३२।।
चैत्र अमावस्या शुभ तिथि में, केवलज्ञान प्रगट हुआ प्रभु के।।३३।।
अंत में श्री सम्मेदशिखर पे, योग निरोध किया प्रभुवर ने।।३४।।
वहाँ परमपद प्राप्त कर लिया, वह थी चैत्र बदी मावस्या।।३५।।
वर्ण आपका सुन्दर इतना, सोने को भी फीका करता।।३६।।
सेही चिन्ह सहित प्रभुवर को, बारम्बार नमन करते हम।।३७।।
अर्जी एक लगानी हमको, अन्तिम पदवी पानी हमको।।३८।।
जब तक अर्जी नहीं लगेगी, तब तक भक्ती बनी रहेगी।।३९।।
अब जो इच्छा होय आपकी, करो ‘‘सारिका’’ नाथ! शीघ्र ही।।४०।।

श्री अनन्त जिनराज के, चालीसा का पाठ।
पढ़ने वालों को मिले, शिवपथ का वरदान।।१।।
गणिनी माता ज्ञानमती की शिष्या हैं प्रधान।
धर्म संवर्धिका चन्दना-मती मात विख्यात।।२।।
दिव्य प्रेरणा जब मिली, तभी रचा यह पाठ।
इसको पढ़कर भव्यजन, सिद्ध करें सब काज।।३।।
यदि जीवन में हो कोई, संकट और अशान्ति।
श्री अनन्तजिनराज जी, देवेंगे सुख-शान्ति।।४।। 

श्री अनन्तनाथ जी की आरती लिरिक्स हिंदी Shri Anantnath Ji Ki Aarti Hindi Me

करते हैं प्रभु की आरती, आतम की ज्योति जलेगी |
प्रभुवर अनंत की भक्ति,
सदा सोख्य भरेगी, सदा सोख्य भरेगी ||

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी |
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी |

हे सिंहसेन के राज दुलारे, जयश्यामा के प्यारे |
साकेतपूरी के तुम नाथ, गुणाकार तुम न्यारे ||
तेरी भक्ति से हर प्राणी में,
शक्ति जगेगी, प्राणी में शक्ति जगेगी |

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी |
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी |

वदि ज्येष्ठ द्वादशी में प्रभुवर, दीक्षा को धारा था |
चैत्री मावस में ज्ञान कल्याणक उत्सव प्यारा था ||
प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान,
आलोक भरेगी, ज्ञान आलोक भरेगी ||

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी |
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अंतर्यामी |

Shri Anantnath Ji Aarti Lyrics in Hindi

करते हैं प्रभू की आरति, आतमज्योति जलेगी।
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।

हे सिंहसेन के राजदुलारे, जयश्यामा प्यारे।
साकेतपुरी के नाथ, अनंत गुणाकर तुम न्यारे।।
तेरी भक्ती से हर प्राणी में शक्ति जगेगी,
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।

वदि ज्येष्ठ द्वादशी मे प्रभुवर, दीक्षा को धारा था,
चैत्री मावस में ज्ञानकल्याणक उत्सव प्यारा था।
प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान आलोक भरेगी,
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।

सम्मेदशिखर की पावन पूज्य धरा भी धन्य हुई
जहाँ से प्रभु ने निर्वाण लहा, वह जग में पूज्य कही।
उस मुक्तिथान को मैं प्रणमूँ, हर वांछा पूरेगी,
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।

सुनते हैं तेरी भक्ती से, संसार जलधि तिरते,
हम भी तेरी आरति करके, भव आरत को हरते।
चंदनामती क्रम-क्रम से, इक दिन मुक्ति मिलेगी,
प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।
 

भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

 

श्री अनंत नाथ चालीसा लिरिक्स Shri Anantnath Chalisa Lyrics


ऐसे ही अन्य मधुर भजन देखें

पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।

अपने पसंद का भजन खोजे

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url