कृपा करो मुझपे हे भगवन शरण तेरे मैं आया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन शरण तेरे मैं आया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
भटकता था जो मन मेरा
चरण सेवा मैं पाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
ये सृष्टि है तेरी माया
तेरी रचना मनुष्य काया
बना लो दास हे भगवन
बना लो दास हे भगवन
मैं भी तो तेरा साया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
बुराई लाख इस तन में
मगर बसते हो तुम मन में
पकड़ लो हाथ अब मेरा
पकड़ लो हाथ अब मेरा
स्वजन से भी पराया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
निहारूं तेरी सूरत को
सजाऊं तेरी मूरत को
सुधारूं भूल को अपने
सुधारूं भूल को अपने
यही फरियाद लाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
भटकता था जो मन मेरा
चरण सेवा मैं पाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
शरण तेरे मैं आया हूँ
भटकता था जो मन मेरा
चरण सेवा मैं पाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
ये सृष्टि है तेरी माया
तेरी रचना मनुष्य काया
बना लो दास हे भगवन
बना लो दास हे भगवन
मैं भी तो तेरा साया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
बुराई लाख इस तन में
मगर बसते हो तुम मन में
पकड़ लो हाथ अब मेरा
पकड़ लो हाथ अब मेरा
स्वजन से भी पराया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
निहारूं तेरी सूरत को
सजाऊं तेरी मूरत को
सुधारूं भूल को अपने
सुधारूं भूल को अपने
यही फरियाद लाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
भटकता था जो मन मेरा
चरण सेवा मैं पाया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन
शरण तेरे मैं आया हूँ
कृपा करो मुझपे हे भगवन...//Bhajan By Dhiraj Kant. 8010788843, 9667836073.
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यह भजन एक साधक की करुण पुकार है, जहाँ उसका अंतर्मन अपनी असहायता और भटकाव से थककर भगवान की शरण में लीन हो गया है। मनुष्य जानता है कि यह संसार केवल ईश्वर की माया है और उसका यह शरीर मात्र उनकी ही रचना है, इसीलिए वह दीन भाव से निवेदन करता है कि हे प्रभु! मुझे अपना दास बना लो, मेरा हाथ थाम लो क्योंकि अपनों से भी पराया होकर मैं केवल तुम्हारा सहारा चाहता हूँ। अपने दोषों और बुराइयों का स्वीकार करते हुए साधक यह मानता है कि उसके हृदय में अंततः प्रभु ही विराजमान हैं, अतः उनका आशीर्वाद ही उसे सुधार सकता है। उसकी व्याकुलता केवल इतनी है कि वह अपनी भूलों का परिमार्जन कर प्रभु की चरण सेवा में ही अपने जीवन का सार खोज ले। यह भाव गहन आत्मसमर्पण का है, जहाँ साधक अपनी समस्त शक्तियों को प्रभु की कृपा और चरणों में अर्पित कर शरणागत हो जाता है।
Singer- Dhiraj Kant.
Lyrics- Dhananjay Singh "dheer".
Tabla- Jayprkash ji.
Lyrics- Dhananjay Singh "dheer".
Tabla- Jayprkash ji.
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Author - Saroj Jangir
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